लगभग 15 दिन बाद (इस रपट के लिखे जाने तक) भी कोलकाता में न्याय की मांग करता आंदोलन थमा नहीं है। सबसे बड़ी बात यह है कि जो लोग आंदोलन में भाग ले रहे हैं, उन्हें कोई बुला नहीं रहा। लोग स्वयं आ रहे हैं और उस डॉक्टर बिटिया, जिसकी बर्बरता से हत्या कर दी गई, के साथ न्याय करने की मांग कर रहे हैं।
दूसरी ओर 22 अगस्त को सर्वोच्च न्यायालय ने भी पश्चिम बंगाल सरकार को खूब खरी-खोटी सुनाई। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस कांड में लापरवाही बरतने पर ममता सरकार को जमकर फटकार लगाई। पीठ ने कहा कि सुबह 10.10 बजे (9 अगस्त) अप्राकृतिक मौत की बात सामने आई। शव उठाते समय पुलिस को पता था कि यह अप्राकृतिक मौत है। इसके बावजूद रात में 11.45 बजे एफ.आई.आर. दर्ज कराई गई। पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार के वकील कपिल सिब्बल को भी नहीं बख्शा और फटकार लगाते हुए उन्हें जिम्मेदारी के साथ जवाब देने को कहा।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति परदीवाला ने कहा कि यह मामला बेहद चौंकाने वाला है, सदमा देने वाला है। मैंने अपने 30 साल के करियर में ऐसा मामला नहीं देखा है। इस मामले में कोलकाता पुलिस का व्यवहार शर्मनाक है। पीठ ने कहा कि घटनास्थल पर कई महत्वपूर्ण सबूत थे, लेकिन उन्हें संरक्षित करने में देर की गई। इस कारण प्रमाणों के मिट जाने की आशंका है।
सुनवाई के दौरान न्यायालय में कपिल सिब्बल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के बीच झड़प भी हुई। तुषार मेहता ने कहा कि घटना की सूचना 10.10 बजे ही मिली, जबकि अप्राकृतिक मृत्यु का मामला रात 11.45 बजे दर्ज हुआ। इतनी देरी गलत ही नहीं, बल्कि अमानवीय है।
वहीं सीबीआई ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि राज्य पुलिस ने पीड़िता के माता-पिता से पहले कहा कि यह आत्महत्या का मामला है, फिर उसने कहा कि यह हत्या है। सीबीआई ने यह भी बताया कि पीड़िता के दोस्त ने मामले में तथ्य छुपाए जाने का संदेह व्यक्त किया और वीडियोग्राफी पर जोर दिया।
इस पर न्यायालय ने दुष्कर्म-हत्या की घटना के बारे में पहली प्रविष्टि दर्ज करने वाले कोलकाता पुलिस के अधिकारी को अगली सुनवाई पर हाजिर होकर यह बताने का निर्देश दिया कि प्रविष्टि किस समय दर्ज की गई। न्यायालय ने यह भी कहा कि यह बहुत आश्चर्यजनक बात है कि अप्राकृतिक मौत का मामला दर्ज होने से पहले मृतक का पोस्टमार्टम कर दिया गया। सर्वोच्च न्यायालय की इन टिप्पणियों से आंदोलनकारी बेहद खुश हैं। कोलकाता में आंदोलन करने वाले कह रहे हैं कि पुलिस को जो करना चाहिए था, वह नहीं किया और जो नहीं करना था, वह किया। इसलिए लोग गुस्से में हैं।’’
सरकार विरोधी रैलियों और सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों को देखते हुए लोगों का कहना है कि अपने 13 वर्ष के कार्यकाल में ममता बनर्जी पहली बार दबाव महसूस कर रही हैं। कोलकाता की मनीषा कुमारी का मानना है कि ममता की उलटी गिनती शुरू हो गई है। उन्होंने कहा, ‘‘रोजाना हजारों महिलाएं पश्चिम बंगाल सरकार और कोलकाता पुलिस के विरोध में आवाज बुलंद कर रही हैं। यह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए खतरे की घंटी है, क्योंकि महिलाओं का एक बड़ा वर्ग उनके पक्ष में रहता आया है। अब वह वर्ग ममता से नाराज है।’’
गृहिणी आनंदी घोष तो मनीषा से एक कदम आगे की बात कह रही हैं। उन्होंने कहा, ‘‘पश्चिम बंगाल की महिलाओं ने ममता बनर्जी की सरकार को उखाड़ फेंकने का संकल्प ले लिया है। एक महिला मुख्यमंत्री के राज में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। चाहे संदेशखाली हो या फिर कोलकाता, हर जगह महिलाओं को मारा जा रहा है, उनके साथ वह सब किया जा रहा है, जिनके बारे में लिखा भी नहीं जा सकता।’’
शायद महिलाओं के इस रुख को देखते हुए ही ममता बनर्जी की पार्टी के नेता भी कोलकाता कांड पर सरकार को घेर रहे हैं। अन्य नेताओं की बात तो छोड़िए, ममता के भतीजे और उनके उत्तराधिकारी माने जा रहे सांसद अभिषेक बनर्जी ने 14 अगस्त की रात को आर. जी. कर मेडिकल कॉलेज पर हुए हमले की निंदा करते हुए कोलकाता के पुलिस आयुक्त को 24 घंटे के अंदर सभी आरोपियों को गिरफ्तार करने को कहा था। उनकी इस बात पर कई नेता दंग रह गए थे। इसके बाद से अभिषेक बनर्जी इस मामले पर पूरी तरह चुप हैं।
अभिषेक की तरह टीएमसी के राज्यसभा सांसद सुखेंदु शेखर राय और पूर्व सांसद शांतनु सेन ने भी अपनी ही सरकार को घेरा है। सुखेंदु शेखर राय ने कोलकाता पुलिस और आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य के कार्यों पर सवाल उठाया है। यही नहीं, उन्होंने अमित शाह को एक पत्र भी भेजा है। इसमें उन्होंने मांग की है कि पीड़िता के परिजन को सरकारी नौकरी और 50 लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी जाए।
पूर्व सांसद शांतनु सेन भी ममता बनर्जी को मुश्किल में डाल रहे हैं। सेन ने बहुत ही बेबाकी से कहा कि गत तीन वर्ष से आर. जी. कर मेडिकल कॉलेज में अनियमितताओं की शिकायतें मिल रही थीं। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ लोग स्वास्थ्य विभाग में होने वाली गड़बड़ियों की जानकारी ममता बनर्जी तक नहीं पहुंचने दे रहे हैं। पार्टी को उनका यह बयान पसंद नहीं आया। यही कारण है कि पार्टी ने उन्हें प्रवक्ता पद से हटा दिया है। इस पर शांतनु ने कहा कि मैंने पार्टी या किसी नेता के विरुद्ध कोई टिप्पणी नहीं की थी। इसलिए मैं अपने बयान पर अब भी अडिग हूं। शांतनु सेन के साथ उनकी पत्नी काकोली सेन ने भी कोलकाता बलात्कार कांड की निंदा की है।
इन नेताओं के बयानों को हल्के में नहीं लिया जा सकता। ये सभी ममता के खासमखास हैं। इसके बाद भी ये लोग विपक्षी नेता की तरह बात कर रहे हैं। यह ममता बनर्जी के लिए ठीक नहीं है। कहीं कोलकाता बलात्कार कांड ममता पर भारी न पड़ जाए।
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