सुंदरगढ़ और पानपोष सबडिवीजन को मिलाकर गांगपुर राज्य था। यह गांगपुर राज्य की मादरी कालो की कर्मभूमि थी। गांगपुर राज्य का पश्चिमी भाग छोटानागपुर मालभूमि एवं महावीर कालो पर्वतमालाओं का मध्यवर्ती भाग कृषि उपयोगी था। गांगपुर राज्य छोटानागपुर, जोशपुर, संबलपुर, वामरा, बढ़ाई, सिंहभूमि से घिरा हुआ था। 1881 में यह राज्य छोटानागपुर कमिश्नरी के अंतर्गत आ गया था। गांगपुर जनजाति बहुत क्षेत्र था।
मादरी कालो का जन्म गांगपुर राज्य के कुरेईवगा गांव में 1848 ईस्वी में हुआ था। इनके पिता का नाम कालो तथा माता का नाम हारावती था। लक्ष्मण कालो एक संपन्न, क्षमतावान और प्रज्ञा के सुख—दुख के साथी थे। मादरी कालो का क्रीड़ास्थल महावीर पर्वत था।
मादरी कालो की देवी—देवताओं पर अगाध श्रद्धा तो थी ही साथ ही वह अस्त्र—शस्त्र चलाने में भी माहिर थे। वे तंत्र—मंत्र में भी विश्वास रखते थे। उनका विवाह वृन्दावती के साथ हुआ था। उस समय बहुविवाह का प्रचलन था तो उनका दूसरा विवाह जनजाति समाजिक परंपरा के अनुसार तुलसी नाम की एक और कन्या के साथ हुआ। मादरी कालो गरीबों के प्रति सहानुभूति रखते थे, इस कारण वह राज्य के कर्मचारियों को पंसद नहीं आते थे।
उस समय रघुनाथ शेखर देव गांगपुर राज्य के राजा थे। रघुनाथ शेखर देव के नाबालिग होने के कारण उनकी माता राजकाज का संचालन करती थीं। माता की मृत्यु के बाद उनके रघुनाथ शेखर देव के चाचा गजराज शेखर देव को राज्य परिचालन का दायित्व मिला। लेकिन उन्होंने अपने निजी स्वार्थ के कारण राजा के प्रति षडयंत्र करना शुरू कर दिया।
गजराज शेखर देव ने जनता ने कर की सीमा दोगुनी से भी ज्यादा कर दी। इसके कारण जनता को परेशानी होने लगी। इसके चलते सभी स्थानीय जमींदारों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। उस समय देश में अंग्रेजों का शासन था। सभी जमींदारों ने मिलकर राजा के खिलाफ छोटा नागपुर की कमिश्नरी में अर्जी दी लेकिन उससे कुछ हासिल नहीं हुआ। अंग्रेज भी राजा से मिले हुए थे।
मादरी कालो भी अंग्रेजों और राजा की इस नीति का विरोध करते थे। वह लोगों में बहुत लोकप्रिय थे इस कारण उनके शत्रुओं की संख्या भी बढ़ गई थी। उनके प्रमुख शत्रु भागवतिया साहू थे। कर की अदायगी ज्यादा होने के कारण लोग कर नहीं दे रहे थे। मादरी कालो भी जनता के साथ थी। इस कारण उनसे जमींदारी छीनकर उनके शत्रु भागवतिया साहू को दे दी गई।
मादरी कालो ने इसका विरोध किया पर राजा ने उनकी कोई बात नहीं सुनी। उन्होंने राजा और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया। उन्होंने नारा दिया” अधिक कर नहीं देंगे, अन्याय से बेगारी से काम नहीं करेंगे”, प्रजा पर जुल्म नहीं होने देंगे। उसी समय देश में रेल लाइनें बिछाए जाने का काम शुरू हो चुका था। इसके लिए अंग्रेजों को अधिक श्रम करने वाली जनजातियों की आवश्कता थी, लेकिन उन्हें काम करने के बदले में उचित पारिश्रमिक नहीं मिलता था।
राजशक्ति और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई के लिए मादरी कालो ने प्रज्ञा को संगठित किया। उनके इस विद्रोह में लोग उनके साथ हो लिए। आंदोलन तीव्र होता चला गया। 1894 में अंग्रेजों के पिट्ठू राजा ने सेना के माध्यम से आंदोलन को दबाने का प्रयास किया। उसने कालो को दबाने के लिए उनके परिवार और गांव के लोगों पर जुल्म ढाने शुरू कर दिए लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला।
राजा ने आंदोलन को दबाने के लिए कमिश्नरी से सहयोग मांगा तो अंग्रेजों तत्काल उसे अंग्रेजी सेना उपलब्ध करवा दी। अंग्रेजों ने लालच देकर कालो के साथ के कुछ लोगो को अपने साथ मिला लिया। एक दिन वह महावीर पर्वत पर अपने आराध्य देवता की पूजा कर रहे थे तो अंग्रेजों को इसकी सूचना मिल गई। अंग्रेजों की सेना ने राजा के सिपाहियों के साथ मिलकर उस जगह को चारों तरफ से घेर लिया। 1897 में मादरी कालो को बंधक बना लिया गया। उनकी गिरफ्तारी के कारण आंदोलन समाप्त हो गया।
कारावास में उन पर असहनीय अत्याचार किए गए। इसके कारण उनके दोनों पैर बेकार हो गए और चलने से मोहताज हो गए। 1910 में उन्हें उसी स्थिति में रिहा कर दिया गया लेकिन 1914 में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। प्रजा के हित में लिए उन्होंने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। जनजाति समाज के लोग स्वभाव से ही स्वाभिमानी होते हैं। इसी को आत्मसात करने वाले मादरी कालो विप्लव के महानायक थे।
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