1971 की बेइज्जती नहीं भूला पाकिस्तान, बांग्लादेश में तख्तापलट का भुनाएगा मौका, क्या इंदिरा गांधी की गलती बन गई नासूर
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1971 की बेइज्जती नहीं भूला पाकिस्तान, बांग्लादेश में तख्तापलट का भुनाएगा मौका, क्या इंदिरा गांधी की गलती बन गई नासूर

पाकिस्तान और आईएसआई बांग्लादेश को अस्थिर करने का कोई मौका भी नहीं छोड़ेंगे, क्योंकि 1971 की लड़ाई की बेइज्जती वे कभी नहीं भूलेंगे। ट्रॉयल चलता तो बांग्लादेश में पाकिस्तान के घातक मंसूबों और क्रूरता को आज की पीढ़ी जानती

by Sudhir Kumar Pandey
Aug 6, 2024, 02:07 pm IST
in विश्व, विश्लेषण
बांग्लादेश में तख्तापलट हो गया है। दंगाइयों ने बांग्लादेश के संस्थापक मुजीबुर रहमान की मूर्ति हथौड़े से तोड़ी। शेख हसीना ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है।

बांग्लादेश में तख्तापलट हो गया है। दंगाइयों ने बांग्लादेश के संस्थापक मुजीबुर रहमान की मूर्ति हथौड़े से तोड़ी। शेख हसीना ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है।

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जिस कट्टरता और अमानवीयता की वजह से 1971 में पाकिस्तान से संघर्ष कर बांग्लादेश अलग देश बना था, वही अब कट्टरता की ओर पूरी तरह से बढ़ गया है। बांग्लादेश के संस्थापक और बंगबंधु के नाम से मशहूर मुजीबुर रहमान की प्रतिमा को कट्टरपंथियों और मजहबी उन्मादियों ने हथौड़े से तोड़ दिया। उस पर मूत्र विसर्जन भी किया। यह घटना बताने के लिए काफी है कि बांग्लादेश में उन्माद और कट्टरता किस कदर बढ़ गई। सामान्य छात्र या युवा इस तरह की हरकत नहीं करेगा। स्वाभाविक तौर पर इसके पीछे कट्टरपंथी संगठन शामिल होंगे।

शेख हसीना को अपना देश एक बार फिर छोड़ना पड़ा। एक थ्योरी तख्तापलट के पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ बता रही है। एक थ्योरी चीन की भी सामने आ रही है। जिस छात्र संगठन (छात्र शिविर) ने आंदोलन की अगुवाई की वह बांग्लादेश में प्रतिबंधित कट्टर इस्लामिक संगठन जमात ए इस्लामी से जुड़ा है। इसी जमात से जुड़े लोगों ने पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर 1971 में ऑपरेशन सर्चलाइट के बहाने बांग्लादेशियों (उस समय पूर्वी पाकिस्तान) का नरसंहार किया था। क्रूरतम अत्याचार किए थे। बांग्लादेश की आजादी में भारत ने बड़ी भूमिका निभाई। उस समय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी। उनकी रणनीति काम आई, लेकिन युद्ध के बाद उनका एक फैसला बांग्लादेश के लिए नासूर बन गया।

पाकिस्तान और आईएसआई बांग्लादेश को अस्थिर करने का कोई मौका भी नहीं छोड़ेंगे, क्योंकि 1971 की लड़ाई की बेइज्जती वे कभी नहीं भूलेंगे। पाकिस्तान की सेना ने भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। वह सत्तर का दशक था और उस समय भी पाकिस्तान ने कई दुष्चक्र चले थे। अब शेख हसीना सरकार के खिलाफ भी दुष्चक्र चला गया। आरक्षण आंदोलन का बहाना था, मुख्य मकसद तो शेख हसीना को सत्ता से हटाना था। कथित आंदोलन में छात्र संगठन के नाम पर युवाओं को आगे किया गया और इन युवकों में कट्टरपंथी ज्यादा हैं।

कारगिल के अमर बलिदानी विजयंत थापर के पिता कर्नल वीएन थापर (सेवानिवृत) ने बांग्लादेश को और पाकिस्तान की सेना को करीब से देखा है। पाकिस्तानी और आईएसआई की मक्कारी से वह भलीभांति वाकिफ हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 की हुई जंग में वह भारतीय सेना की तरफ से चटगांव में थे। बांग्लादेश में हुए घटनाक्रम पर वह कहते हैं कि बांग्लादेश में हुई अस्थिरता का पाकिस्तान सौ प्रतिशत फायदा उठाएगा। 1971 के युद्ध में उसका जितना नुकसान हुआ था, वह उसे भुनाएगा।

कर्नल थापर कहते हैं कि बांग्लादेश में कट्टरपंथी तत्व की तादाद बहुत है। छात्रों को भड़काना आसान है और इनमें आधे तो कट्टरपंथी हैं। आईएसआई मजहब का फायदा उठा रही है। पाकिस्तान कश्मीर और पंजाब में गड़बड़ी फैला रहा है। कश्मीर में आतंकी भेजता है तो पंजाब में ड्रग्स का आतंक फैलाए हुए है। खालिस्तान अलगाववादियों और पाकिस्तान का गठजोड़ सामने आ ही चुका है। मुंबई हमले में पाकिस्तान पूरी दुनिया बेनकाब हो चुका है। बांग्लादेश के रास्ते घुसपैठिये और रोहिंग्या दिल्ली तक आ जाते हैं। अब बांग्लादेश में जो नई सरकार बनेगी उसकी नजदीकी शेख हसीना सरकार में प्रतिबंधित किए गए कट्टरपंथी संगठन जमात ए इस्लामी और पाकिस्तान से होगी। ऐसे में बांग्लादेश में इन दोनों की पकड़ मजबूत होगी तो पाकिस्तान पूर्व के रास्ते भी भारत में घुसपैठ कराने की पूरी कोशिश करेगा। ऐसे में सीमावर्ती राज्यों को वोटबैंक की जगह राष्ट्र को प्रथम रखना होगा। आप इसे ऐसे देख सकते हैं कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश दौरे पर थे तो उस दौरान कट्टरपंथियों ने माहौल खराब करने की कोशिश की थी और उस समय शेख हसीना की सरकार थी। वह अपनी नीतियों के चलते भारत के करीब थीं। अब बांग्लादेश में कट्टरपंथियों की पकड़ और मजबूत होगी। बांग्लादेश में कट्टरपंथ के बढ़ने की बड़ी वजह पाकिस्तान है। जमात भी कट्टरता फैलाता है।

71 की जंग के बाद हमने अपने पत्ते सही से नहीं चले

1971 की जंग को याद करते हुए कर्नल थापर कहते हैं कि युद्ध के बाद हमने अपने पत्ते सही से नहीं चले। 71 के युद्ध के दौरान जब वह चटगांव में थे तो पाकिस्तानी सेना मजाक करती थी कि थापर साहब अभी इन्हें ले लो और पांच से दस साल बाद बताना कि क्या हाल है। इंदिरा गांधी की भी एक बड़ी गलती थी। कर्नल थापर बताते हैं कि 1971 की लड़ाई में 195 युद्ध अपराधी (वॉर क्रिमिनल्स)  घोषित किए गए थे। इन अपराधियों ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में बड़ा अत्याचार किया था। इन पर बांग्लादेश में ट्रायल चलाया जा सकता था। इंदिरा गांधी ने सभी युद्धबंदियों को पाकिस्तान को सौंपने पर  सहमति जताई थी। इन 195 वॉर क्रिमिनल्स का निर्णय बांग्लादेश पर छोड़ा गया। लेकिन पाकिस्तान बेइमान ठहरा, उसने कार्रवाई की बात कहते हुए इन्हें रिहा करवा लिया। इन क्रूर वॉर क्रिमिनल्स पर केस चलता तो पाकिस्तान की कट्टरता पूरी दुनिया में उसी समय बेनकाब हो जाती। बांग्लादेश के लोगों को अपने ऊपर हुए अत्याचार पर न्याय मिलता और पाकिस्तान के खिलाफ वहां माहौल हमेशा बना रहता, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। युद्ध बंदियों के साथ इन वॉर क्रिमिनल्स का छूटना, इंदिरा गांधी की गलती की तरफ भी इशारा करता है। वह समय इंडिया इज इंदिरा और इंदिरा इज इंडिया वाला भी था।

मुसीबत पैदा करेंगे घुसपैठिये

अब बांग्लादेश में कट्टरपंथियों को मौका मिल गया है। वे भारत में घुसपैठ की पूरी कोशिश करेंगे। कर्नल थापर कहते हैं कि भारत को इस पर कड़ा स्टैंड लेना चाहिए। बीएसएफ वहां तैनात रहे। जरूरत पड़े तो अन्य फोर्स को भी भेजें। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भी बयान सामने आया था कि बांग्लादेश से आने वाले शरणार्थियों के लिए उनके दरवाजे खुले रहेंगे। हालांकि उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर वह केंद्र के साथ हैं। केंद्र को सीमा पर कड़े इंतजाम करने होंगे, नहीं तो ये घुसपैठिये अंदर आ जाएंगे और हमारे लिए, देश के लिए मुसीबत पैदा कर देंगे।

1973 का समझौता, पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय न्यायालय भी गया

अगस्त, 1973 में भारत और पाकिस्तान ने दिल्ली समझौते पर हस्ताक्षर किए। समझौते के तहत युद्धबंदियों की रिहाई का रास्ता बना। 195 पाकिस्तानियों पर बांग्लादेश ने नरसंहार और मानवता के खिलाफ अपराध करने का आरोप लगाया था। इन्हें युद्ध अपराधी माना था। भारत ने इसका निर्णय बांग्लादेश पर छोड़ दिया था। इस मुद्दे को लेकर पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भी गया और बाद में उसने यह कहा कि भारत से उसकी बातचीत हो चुकी है और इस मामले को सूची से हटा दिया जाए। इस पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (हेग) की वेबसाइट (icj-cij.org/case/60) पर जो जानकारी मिलती है, उसके मुताबिक – मई 1973 में, पाकिस्तान ने 195 पाकिस्तानी युद्धबंदियों के संबंध में भारत के खिलाफ कार्यवाही शुरू की, जिन्हें पाकिस्तान के अनुसार, भारत ने बांग्लादेश को सौंपने का प्रस्ताव दिया था। इसके बारे में कहा गया था कि उन पर नरसंहार और मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए मुकदमा चलाने का इरादा था। भारत ने कहा कि इस मामले में न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का कोई कानूनी आधार नहीं है और पाकिस्तान का आवेदन कानूनी प्रभाव के बिना है। पाकिस्तान ने भी अनंतिम उपायों के संकेत के लिए अनुरोध दायर किया है, न्यायालय ने इस विषय पर टिप्पणियाँ सुनने के लिए सार्वजनिक बैठकें आयोजित कीं; सुनवाई में भारत का प्रतिनिधित्व नहीं था। जुलाई 1973 में, पाकिस्तान ने शुरू होने वाली बातचीत को सुविधाजनक बनाने के लिए न्यायालय से उसके अनुरोध पर आगे विचार स्थगित करने के लिए कहा। कोई भी लिखित याचिका दायर करने से पहले, पाकिस्तान ने अदालत को सूचित किया कि बातचीत हो चुकी है, और अदालत से कार्यवाही को बंद करने का रिकॉर्ड करने का अनुरोध किया। तदनुसार, 15 दिसंबर 1973 के एक आदेश द्वारा मामले को सूची से हटा दिया गया।

अप्रैल 1974 में फिर मुलाकात

भारत-बांग्लादेश और पाकिस्तान ने अप्रैल 1974 में दिल्ली में एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें बांग्लादेश ने कहा कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने बांग्लादेश के लोगों से अतीत की गलतियों के लिए माफी मांगने की बात कही है और इसको ध्यान में रखते हुए बांग्लादेश ने क्षमादान के रूप में मुकदमे को आगे न बढ़ाने का निर्णय लिया। इस तरह 195 वॉर क्रिमिनल्स को भी पाकिस्तान को सौंप दिया गया। बताया जाता है कि बांग्लादेश ने यह निर्णय इसलिए लिया क्योंकि पाकिस्तान ने 200 से अधिक बांग्लादेशी अधिकारियों को बंधक बना रखा था।

यदि ये युद्ध अपराधी पाकिस्तान को नहीं सौंपे जाते और इन पर बांग्लादेश में ही ट्रॉयल चलता तो आज की पीढ़ी को भी पाकिस्तानियों द्वारा बांग्लादेश में किए गए नरसंहार और दुष्कर्मों का पता चलता। लेकिन, क्रूरता फैलाने वाले पाकिस्तान को लौटा दिए गए। जमात और कट्टरपंथ पर अंकुश नहीं लग पाया। बांग्लादेश के संस्थापक और शेख हसीना के पिता मुजीबुर रहमान की 15 अगस्त 1975 को हत्या कर दी गई। इसके बाद बांग्लादेश में कट्टरपंथ जड़े जमाने लगा। इसका क्रूर रूप शेख हसीना को सत्ता से हटाने के घटनाक्रम में दिखा। बंगबंधु से इतनी नफरत कि उनकी प्रतिमा पर वार किया गया। प्रधानमंत्री आवास में कट्टरपंथियों की भीड़ घुस गई और वे वो सामान लहराते दिखे जिनकी सभ्य समाज कल्पना भी नहीं कर सकता है।

ये थी क्रूरता

पाकिस्तान की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में घोर अत्याचार किया था। आजादी की मांग को कुचलने के लिए मार्च 1971 में ऑपरेशन सर्चलाइट को अंजाम दिया। यह दुनिया के इतिहास का क्रूरतम नरसंहार और अत्याचारों मे से एक माना जाता है। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम का कट्टरपंथी जमात ए इस्लामी ने भी विरोध किया था। पाकिस्तानी सेना को जमात का साथ मिला था। पाकिस्तानी सैनिकों और उनके सहयोगियों ने क्रूरता की हदें पार कर दी थीं। हजारों महिलाओं का बलात्कार किया गया। बुजुर्गों और महिलाओं को बेटियों और बहुओं के साथ बलात्कार होते देखने के लिए मजबूर किया गया। पाकिस्तानी दरिंदों ने बच्चों को हवा में उछाला और बंदूक में लगे चाकू से छेद दिया। लाखों बांग्लादेशी भागकर भारत आए। इसके बाद भारत ने कदम उठाया और बांग्लादेश का जन्म हुआ। पाकिस्तान की सेना ने भारत के सामने हथियार डाल दिए। पाकिस्तान अपमान का घूंट पीकर रह गया था। यही अपमान उसे सालता रहता है और जीवनभर सालता रहेगा।

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