इस बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश से एक सप्ताह के भीतर रिकॉर्ड 50 लाख से अधिक शिवभक्त हरिद्वार पहुंचे हैं। मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, मेरठ, बागपत, बिजनौर, बुलंदशहर, गाजियाबाद, नोएडा, अलीगढ़, मथुरा, आगरा, मुरादाबाद, बरेली सहित आसपास के जिलों से हर रोज भारी संख्या में कांवड़ियों के हरिद्वार, ब्रजघाट (हापुड़), कछला घाट (बदायूं-कासगंज) और नरौरा घाट पहुंचने का क्रम जारी है। पहले भी महिलाएं पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली से बड़ी संख्या में कांवड़ लेकर हरिद्वार जाती रही हैं, लेकिन इस बार उनकी संख्या अधिक है। इनमें 60 से 75 वर्ष की महिलाएं भी शामिल हैं। दिल्ली की अलका और साधना 11 वर्ष से लगातार कांवड़ यात्रा कर रही हैं। पिलखुआ की पूनम चौहान ने कुछ वर्ष पहले अपनी बहन के बीमार बेटों के स्वस्थ होने के लिए मन्नत मांगी थी। उसके बाद से वह हर साल कांवड़ यात्रा कर रही हैं। महिला कांवड़ियों का कहना है कि महादेव की प्रार्थना और पूजा हमेशा फलदायी होती है।
नए युग के श्रवण कुमार
दृश्य 1 : कांवड़ियों के जत्थों में छोटे-छोटे बच्चे भी दिखे, जो अपने माता-पिता और बड़े बुजुर्गों की सलामती के लिए कंधों पर भारी-भरकम कांवड़ लेकर निकले। इनमें दिल्ली का 11 वर्षीय नैतिक और उसकी 8 वर्षीया बहन नैन्सी भी थे। दोनों भाई-बहन अपने माता-पिता की लंबी आयु के लिए हरिद्वार से पैदल गंगाजल लेकर आए। रास्ते में जिसने भी इन बच्चों को कांवड़ ले जाते देखा, उन पर अपना स्नेह लुटाया। नैतिक 22 लीटर गंगाजल लेकर आया। बम भोले का जयघोष करके दोनों का गला बैठ चुका था, लेकिन उनके चेहरों पर थकान का नामोनिशान तक नहीं था।
दृश्य 2 : बेटों को तो अक्सर माता-पिता को कांवड़ में बैठा कर तीर्थ यात्रा कराने ले जाते देखा या सुना होगा। लेकिन बेटा-बहू को बुजुर्ग माता-पिता को कंधों पर कांवड़ यात्रा कराते शायद नहीं देखा होगा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में पहासू गांव के राजकुमार की मां सरोज देवी की इच्छा थी कि इस बार वह भी कांवड़ यात्रा करें। लेकिन एक तो अधिक उम्र और ऊपर से व्याधि, इसलिए वह पैदल नहीं चल सकती थीं। मां की इच्छा पूरी करने के लिए रामकुमार और उनकी पत्नी ने विशेष पालकी बनाई और अनूपशहर गंगाघाट से गांव के शिव मंदिर तक 6 दिन में 65 किमी. मां को कांवड़ यात्रा कराई।
7 सहेलियां
हरिद्वार से कांवड़ लेकर मुजफ्फरनगर के भोपा स्थित सेवा शिविर में पहुंची 7 सहेलियां भी चर्चा के केंद्र में रहीं। इनमें पलवल (हरियाणा) की 70 वर्षीया ऊषा देवी भी थीं, जो सातवीं बार कांवड़ लेकर आर्इं। उन्होंने कहा कि भोले बाबा ने उनके परिवार को सब कुछ दिया है, इसलिए इस बार उन्होंने देश की एकता और अखंडता के लिए कांवड़ यात्रा की। ऊषा देवी सहेलियों के साथ जूनागढ़, द्वारकापुरी, जगन्नाथ, गोरखनाथ, सोमनाथ, वृंदावन, मथुरा-गोवर्धन सहित 17 तीर्थस्थलों की यात्रा कर चुकी हैं। वे गुजरात के जूनागढ़ में गिरनार पर्वत की चोटी पर स्थित दत्तात्रेय तीर्थ की 10,000 सीढ़ियां चढ़ चुकी हैं। इस बार उन्होंने अपनी सहेलियों बिमला, कमला, श्यामवती, जयदेई, बती, रामादेवी के साथ कांवड़ यात्रा की।
41 वर्ष से जलाभिषेक
बिहार में ‘कृष्णा बम’ नाम से प्रसिद्ध मुजफ्फरपुर की 72 वर्षीया कृष्णा देवी ने इस बार 41वीं कांवड़ यात्रा पूरी की। वह हर वर्ष पैदल सुल्तानगंज से गंगाजल लेकर देवघर स्थित वैद्यनाथ धाम जाती हैं। उनकी सुरक्षा में पुलिस तैनात रहती है, क्योंकि उनके पैर छूने, सेल्फी लेने के लिए लोगों में होड़ लगी रहती है। पहली बार 1976 में बाबा गरीबनाथ का जलाभिषेक करने वाली कृष्णा बम 1982 में देवघर गई थीं। तब से वह लगातार डाक बम के रूप में सुलतानगंज से गंगाजल लेकर बाबा वैद्यनाथ का जलाभिषेक करती आ रही हैं। 2023 में पहली बार वह कांवड़ यात्रा नहीं कर सकीं, क्योंकि उनका पैर टूट गया था। वह 2019 में पाकिस्तान स्थित कटासराज मंदिर भी जा चुकी हैं।
सेवा में जुटी पुलिस
2017 के बाद से उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा बिल्कुल बदल गई। पहले कांवड़ यात्रा तरह-तरह के प्रतिबंधों में जकड़ी हुई थी, लेकिन योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद इसमें बदलाव आया। इस बार तो राज्य पुलिस ने पूर्वी उत्तर प्रदेश से पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक कांवड़ियों की सुरक्षा में कोई कसर नहीं छोड़ी। जगह-जगह पुलिस के जवान कांवड़ियों पर पुष्प वर्षा भी करते दिखे। सिपाही से लेकर आला अफसर तक कांवड़ियों की सेवा में जुटे हैं। खासतौर से सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, शामली, बागपत, बुलंदशहर, हापुड़, गाजियाबाद, नोएडा, बिजनौर में पुलिस मुस्तैद रही और सेवा शिविर लगाकर कांवड़ियों की सहायता में दिन-रात जुटी रही। खुद डीजीपी प्रशांत कुमार कांवड़ यात्रा की निगरानी करते रहे। मेरठ, मुजफ्फरनगर में एटीएस कमांडो तैनात किए गए थे। कांवड़ मार्गों पर किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पुलिस बल तैनात थे। असामाजिक तत्वों पर भी नजर रखी जा रही थी ताकि कांवड़ियों के वेश में कोई भी अशांति न फैला सके।
विज्ञान-अध्यात्म का मिलन
कांवड़ यात्रा में देश के वैज्ञानिक और इंजीनियर भी पीछे नहीं रहे। पिछले वर्ष मध्य प्रदेश के इंदौर स्थित राजा रमन्ना सेंटर आफ एडवांस्ड टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों-इंजीनियरों की टीम ने कांवड़ यात्रा की थी। संस्थान के 150 वैज्ञानिकों-इंजीनियरों के दल ने ओंकारेश्वर से नर्मदा नदी का पवित्र जल लेकर इंदौर के कैट परिसर स्थित सुखेश्वर महादेव का अभिषेक किया था। इन्होंने 2007-08 में कांवड़ यात्रा शुरू की थी। शुरू में 10-12 वैज्ञानिक ही शामिल होते थे, पर अब यह संख्या 150 हो गई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि विज्ञान के माध्यम से चीजों की खोज होती है, जबकि अध्यात्म के माध्यम से स्वयं को खोजा जाता है। विज्ञान सीमित है, लेकिन ईश्वर असीमित हैं। उन्हें पाने के लिए जिस शक्ति से जुड़ना जरूरी है, उसके लिए हृदय में आस्था जरूरी है।
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