वह तारीख थी 7 नवंबर और वर्ष था 1966। उस दिन गोपाष्टमी थी। गोरक्षा महाभियान समिति की देखरेख में सुबह आठ बजे से ही नई दिल्ली में संसद के बाहर लोग जुटने शुरू हो गए थे। समिति के संचालक स्वामी करपात्री जी महाराज ने चांदनी चौक स्थित आर्य समाज मंदिर से अपना सत्याग्रह आरंभ किया। उनके साथ जगन्नाथपुरी, ज्योतिष्पीठ और द्वारकापीठ के शंकराचार्य, वल्लभ संप्रदाय की सातों पीठ के पीठाधिपति और लाखों की संख्या में गोभक्त थे। संसद से लेकर चांदनी चौक तक भारी भीड़ थी।
जम्मू-कश्मीर से लेकर केरल तक के लोग गोहत्या बंद कराने के लिए कानून बनाने की मांग लेकर संसद के समक्ष जुटे थे। उन दिनों इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं और गुलजारी लाल नंदा गृहमंत्री। गोहत्या रोकने के लिए इंदिरा सरकार केवल आश्वासन दे रही थी। सरकार के झूठे वायदों से उकता कर संत समाज ने संसद के बाहर प्रदर्शन करने का निर्णय लिया।
ये भी पढ़ें – RSS की गतिविधियों में शामिल होंगे सरकारी कर्मचारी, 58 साल पहले जारी किया गया असंवैधानिक आदेश वापस
दोपहर एक बजे जुलूस संसद भवन पहुंच गया और संतों के भाषण शुरू हो गए। करीब तीन बजे का समय होगा, जब आर्य समाज के स्वामी रामेश्वरानंद भाषण देने के लिए खड़े हुए। उन्होंने कहा, ‘‘यह सरकार बहरी है। यह गोहत्या को रोकने के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाएगी। इसे झकझोरना होगा।’’ इतना सुनना था कि गोभक्त हरकत में आ गए। उन्होंने संसद भवन को घेर लिया। पुलिस ने लाठी चलाना और अश्रुगैस छोड़ना शुरू कर दिया। भीड़ और आक्रामक हो गई। इतने में अंदर से गोली चलाने का आदेश हुआ और पुलिस ने भीड़ पर गोलीबारी शुरू कर दी। संसद के सामने की पूरी सड़क खून से लाल हो गई। सैकड़ों गोभक्त मारे गए। इसके बाद सरकार ने इस घटना को दबाने की कोशिश की।
‘‘यह सरकार बहरी है। यह गोहत्या को रोकने के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाएगी। इसे झकझोरना होगा।’’
-स्वामी रामेश्वरानंद , आर्य समाज
शहर की टेलीफोन लाइन काट दी गई। ट्रक बुलाकर मृत, घायल, जिंदा-सभी को उसमें ठूंसा जाने लगा। पूरी दिल्ली में कर्फ्यू लागू कर दिया गया। शंकराचार्य को छोड़कर लगभग 50,000 गोभक्तों को तिहाड़ जेल में डाल दिया गया। करपात्री जी महाराज ने जेल से ही सत्याग्रह शुरू कर दिया। जेल में नागा साधु भी थे। नागा साधु छत के नीचे नहीं रहते, इसलिए उन्होंने तिहाड़ जेल के आंगन में ही अपना डेरा जमा लिया। ठंड के कारण साधुओं ने लकड़ी के सामान को तोड़ कर जलाना शुरू किया।
इंदिरा गांधी ने गुलजारी लाल नंदा पर इस गोलीकांड की जिम्मेदारी डाली। उनकी जगह यशवंत राव बलवतंराव चव्हाण को गृहमंत्री बना दिया गया। पद संभालते ही चव्हाण तिहाड़ जेल गए और उन्होंने नागा साधुओं को आश्वासन दिया कि उनके अलाव के लिए लकड़ी की व्यवस्था की जा रही है। जब लकड़ी से भरे ट्रक जेल के अंदर पहुंचे, तब साधु शांत हुए। लगभग एक महीने बाद लोगों को जेल से छोड़ा गया।
ये भी पढ़ें – नेहरू ने दी इस्तीफे की धमकी, वादे से मुकरीं इंदिरा गांधी, संसद परिसर में निर्दोष गोभक्तों पर चलवाई गोलियां
जेल से निकल कर भी करपात्री जी सत्याग्रह करते रहे। पुरी के शंकराचार्य और प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जी का आमरण-अनशन कई महीने चला। बाद में सरकार ने इस आंदोलन को समाप्त करने के लिए छल का सहारा लिया। चव्हाण ने करपात्री जी से भेंट की और उन्हें भरोसा दिलाया कि अगले संसद सत्र में गोहत्या बंदी कानून बनाने के लिए अध्यादेश लाया जाएगा और इसे कानून बना दिया जाएगा। लेकिन देश का दुर्भाग्य कि आज भी गोहत्या बंदी कानून को अखिल भारतीय स्वरूप नहीं मिला है।
टिप्पणियाँ