पिछले माह भारत अपना 100 टन सोना वापस ले आया, जो बैंक आफ इंग्लैंड की तिजोरियों में रखा हुआ था। भारत इसके एवज में ब्रिटिश बैंक को शुल्क भुगतान कर रहा था। अब भारत ने न केवल पैसे की बचत की है, बल्कि सोने को पूरी तरह अपने नियंत्रण में ले लिया है।
2014 तक भारतीय रिजर्व बैंक का स्वर्ण भंडार 557 टन था, जो अब बढ़कर 822 टन हो गया है। मौजूदा बाजार मूल्यांकन के अनुसार, इस सोने की कीमत लगभग 5.9 लाख करोड़ रुपये (लगभग 70 अरब अमेरिकी डॉलर) है। इस 822 टन सोने में से 308 टन भारत में था, जबकि शेष 514 टन बैंक आफ इंग्लैंड, आईएमएफ आदि के पास रखा गया था। अब बैंक आफ इंग्लैंड से 100 टन सोना वापस लाने के बाद देश में कुल स्वर्ण भंडार 408 टन हो गया है।
दुनिया में उथल-पुथल के बीच कई देशों में सोना खरीद को लेकर होड़ मची हुई है। रुस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद से इसमें और वृद्धि हुई है। इनमें प्रमुख और दुनिया के स्वर्ण भंडार वाले शीर्ष 10 देशों में शामिल भारत और चीन ने अपनी सोने की होल्डिंग में क्रमश: 22 टन और 71 टन की वृद्धि की है। इन प्रमुख देशों के अलावा कई अन्य छोटे देश भी हैं, जो इस होड़ में शामिल हैं। इसका प्रमुख कारण है भू-राजनीतिक परिदृश्य, जिसमें दो बातें प्रमुख हैं-
पहला, अमेरिका द्वारा स्विफ्ट (सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशंस) का हथियार की तरह इस्तेसमाल करना और दूसरा, अमेरिकी डॉलर में रखी गई रूस की संपत्ति को अमेरिका द्वारा जब्त करना। अमेरिका की इस हरकत से दुनिया भर के केंद्रीय बैंकरों और सरकारों के मन में डर बैठ गया है कि विषम परिस्थितियों में अमेरिका ही नहीं, कोई भी देश उनकी संपत्तियों को जब्त कर सकता है। इसलिए केंद्रीय बैंकरों और सरकारों को, जिन्होंने अपना विदेशी मुद्रा भंडार अमेरिकी डॉलर और वित्तीय परिसंपत्तियों को डॉलर के रूप में रखा है, अपने रुख पर पुनर्विचार के लिए मजबूर होना पड़ा।
अमेरिका द्वारा स्विफ्ट को हथियार बनाने से उत्पन्न पहली चिंता पर गहराई से विचार करना जरूरी है। स्विफ्ट एक इंटरबैंक मैसेजिंग नेटवर्क है, जिसका उपयोग दुनिया के अधिकांश बैंक संदेश भेजने के लिए करते हैं। इसका काम बैंकों के बीच सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए एक सुरक्षित प्रणाली प्रदान करना है। दुनिया के 200 देशों के 11,000 से अधिक वित्तीय संस्थान इस प्रणाली का उपयोग प्रतिवर्ष 150 खरब डॉलर के लेन-देन के लिए करते हैं। यानी स्विफ्ट संदेश के जरिए दुनिया में हर दिन लगभग 5 खरब डॉलर का लेन-देन होता है। लेकिन अमेरिका ने अपनी विदेश नीति और भू-राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए स्विफ्ट का बड़े पैमाने पर उपयोग या दुरुपयोग किया है। अमेरिका ने जब भी किसी देश पर पाबंदी लगाई, उसने उस देश के बैंकों और वित्तीय संस्थानों को स्विफ्ट से बाहर करने के लिए स्विफ्ट को आदेश जारी किया। नतीजा, उन देशों के कारोबार को वैश्विक व्यापार में स्वतंत्र रूप से शामिल होने से रोक दिया गया।
अमेरिका ने ईरान के विरुद्ध भी इसका प्रयोग किया, पर इसमें उसे बहुत कम सफलता मिली। फिर रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ तो अमेरिका ने रूस पर प्रतिबंध थोप दिया। ऐसी स्थिति में स्विफ्ट का एकमात्र विकल्प उन देशों या किसी तीसरे देश की मुद्राओं में लेन-देन करना है, जो दोनों देशों के लिए पारस्परिक रूप से सुविधाजनक है। भारत-रूस व्यापार में बिल्कुल यही हुआ। भारत ने रूस से कच्चा तेल भारतीय रुपये, यूएई दिरहम और चीनी युआन में खरीदा। इस खरीद में स्विफ्ट नेटवर्क को बाइपास किया गया था। इसी तरह, चीन ने रूस से कच्चा तेल और गैस युआन व क्रिप्टोकरेंसी में खरीदा।
ऐसी स्थिति में जिन देशों को अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है या उन पर प्रतिबंध लगने की संभावना है, वे अपने विदेशी मुद्रा भंडार का एक हिस्सा सोने के रूप में रखना पसंद कर रहे हैं। इसी तरह भारत और चीन जैसे देश, जिन्होंने रूस और ईरान के साथ बेधड़क व्यवहार किया है, उनके लिए भी अमेरिकी डॉलर के मुकाबले सोना अधिक सुरक्षित है। जब अमेरिका को लगा कि स्विफ्ट को हथियार बनाना पर्याप्त नहीं है, तो उसने रूसी सरकार, रूसी कंपनियों और कुलीन वर्गों के स्वामित्व वाली अमेरिकी डॉलर मूल्यवर्ग की संपत्तियों को जब्त कर लिया।
इससे सभी गैर-नाटो देशों में व्यापक भय फैल गया। कमजोर अर्थव्यवस्था के कारण छोटे देशों के पास न तो कोई विकल्प है और न ही कई मुद्र्राओं व सोने जैसी वस्तुओं में अपने विदेशी मुद्र्रा भंडार को बदलने का सामर्थ्य। हालांकि, भारत और चीन जैसे बड़े देशों ने अमेरिकी डॉलर में अपना जोखिम कम करके और सोने की होल्डिंग्स बढ़ाकर अपने विदेशी मुद्र्रा भंडार में विविधता लाना शुरू कर दिया है। यहां तक कि ब्राजील जैसे छोटे ब्रिक्स राष्ट्र ने भी अपनी सोने की हिस्सेदारी में मामूली वृद्धि की।
अमेरिका द्वारा अमेरिकी डॉलर के रूप में रूस की संपत्तियों को जब्त किया तो दुनिया के देशों में खलबली मच गई। यह कबूतरों के बीच बिल्ली छोड़ देने जैसा है। भारत द्वारा बैंक आॅफ इंग्लैंड में जमा 100 टन (1 लाख किलो) सोना वापस लाने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह हो सकता है। इसलिए पूरी संभावना है कि भारत सरकार और आरबीआई अपना सोने का भंडार बैंक आॅफ इंग्लैंड या अन्य जगह रखने के बजाए धीरे-धीरे उसे वापस लाकर अपना नियंत्रण रखेगा ताकि आपात स्थिति में उसे दूसरों की दया पर निर्भर न रहना पड़े।
ऐसा इसलिए, क्योंकि भारत एंग्लो अमेरिकी डीप स्टेट की साजिशों और भारत के खिलाफ उसके एजेंडे के प्रति असुरक्षित बना हुआ है। यदि सोना अमेरिकी फेडरल रिजर्व या बैंक आॅफ इंडिया के पास है, तो भारत के समक्ष संबंधित सरकारों द्वारा उस सोने को फ्रीज किए जाने का खतरा है। ऐसी स्थिति में यह स्पष्ट है कि भारत सरकार और रिजर्व बैंक ने महसूस किया होगा कि देश हित में उचित यही रहेगा कि बाहर रखे गए अपने सोने के भंडार का नियंत्रण अपने पास रखा जाए ताकि उसके खोने का डर न रहे। अन्यथा विषम वैश्विक परिस्थिति में किसी भी समय कुछ भी हो सकता है।
यदि इस तर्क को समझना है, तो यह विश्वास करना सुरक्षित होगा कि भारत धीरे-धीरे और लगातार अगले कुछ वर्षों में बैंक आॅफ इंग्लैंड और अमेरिकी फेडरल रिजर्व के पास मौजूद अपने सभी सोने को वापस भारत में स्थानांतरित कर लेगा। संक्षेप में कहें तो, विदेशी देशों से अपने सोने की सुरक्षा के लिए यह भारत सरकार का एक बड़ा कदम है।
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