ताइवान में लाई के राष्ट्रपति पद संभालने के फौरन बाद चीन के लड़ाकू जहाजों ने ताइवान की आसमानी सीमाओं के आसपास मंडराना शुरू कर दिया, सीमा के पास चीन ने युद्धाभ्यास किया और उसके जहाजों ने समंदर में ताइवान को घेरते हुए गश्त बढ़ा दी
अमेरिका का आकलन है कि कम्युनिस्ट विस्तारवादी चीन ताइवान पर हमला बोलने की तैयारी कर रहा है। ताइवान की सीमाओं पर चीन की बढ़ती हलचलों और तेवरों से रक्षा विशेषज्ञों को लग रहा है कि ताइवान में नए राष्ट्रपति लाई का पद पर आना चीन की योजनाओं के लिए एक बड़ी अड़चन खड़ी कर सकता है इसलिए चीन ने धमकियां देना बढ़ा दिया है। इस सबके बीच अमेरिका ने ताइवान मामलों पर नजर रखने के लिए एक नये राजनयिक को जिम्मेदारी सौंपी है।
स्वशासित टापू देश ताइवान को विस्तारवादी चीन ‘अपना इलाका’ बताता है और अंतत: मुख्यभूमि में मिलाना चाहता है। इस बारे में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी कई बार परोक्ष रूप से जरूरत पड़ी तो सैन्य कार्रवाई करने के संकेत दे चुके हैं। इसलिए वे नहीं चाहते कि चीन की मर्जी के बिना कोई देश ताइवान से कूटनीतिक रिश्ते बनाए। लेकिन अमेरिका की नीति इसके ठीक उलट है। गत सप्ताह ताइवान के नए राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल का वहां जाना विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की मंशा जाहिर कर देता है।
ताइवान में लाई के राष्ट्रपति पद संभालने के फौरन बाद चीन के प्रति आक्रामक रवैया अपनाने के संकेत दिए थे। उसके बाद से ही चीन के लड़ाकू जहाजों ने ताइवान की आसमानी सीमाओं के आसपास मंडराना शुरू कर दिया, सीमा के पास चीन ने युद्धाभ्यास किया और उसके जहाजों ने समंदर में ताइवान को घेरते हुए गश्त बढ़ा दी।
ऐसे घटनाक्रमों के बीच अमेरिका का ताइवान मामलों के लिए नए प्रतिनिधि की नियुक्ति बहुत कुछ बताती है। ताइवान में अमेरिकी इंस्टीट्यूट राजधानी ताइपे में बाकायदा दूतावास के नाते कार्यरत है। अमेरिका के नए प्रतिनिधि रेमंड ग्रीन जल्दी ही वहां मौजूद सैंड्रा औडकिर्क की जगह लेने वाले हैं।
यहां देखने वाली बात यह भी है कि यह वही अमेरिका है जो 1979 में ताइवान के साथ राजनयिक संबंध खत्म करके चीन के साथ राजनयिक संबंध बना चुका था, वह स्थिति तत्कालीन सोवियत संघ के विरुद्ध अमेरिकी मोर्चे के लिए कारगर मालूम दी थी। लेकिन तो भी अमेरिका ताइवान के साथ बिना औपचारिक संबंध होने के उसका सबसे बड़ा साथी बना रहा। तब 1979 में ही एक संधि पारित हुई थी जिसके अंतर्गत अमेरिका ताइवान को किसी भी हमले से बचाने के लिए जिम्मेदार बना था।
इधर इतने सालों के दौरान चीन ताइवान पर आंखें तरेरते हुए उसे अपना हिस्सा बताता रहा और ताइवान की अंदरूनी राजनीति में चीन समर्थक नेशनलिस्ट पार्टी उभरती चली गई। आज इस पार्टी का संसद में बहुमत है और इसी ने गत दिनों चीन के पक्ष को मजबूत करने वाला ऐसा प्रस्ताव पास किया है कि राष्ट्रीय सोच वाला आम ताइवानी इसके विरोध में सड़कों पर आ गया। दसियों हजार लोगों ने परसों संसद के सामने विशाल प्रदर्शन किया।
गत सप्ताह ताइवान के पए राष्ट्रपति लाई चिंग-ते ने पदभार संभालने के फौरन बाद अपने भाषण में बीजिंग को साफ कहा था कि हमले की धमकी देना बंद कर दे। उन्होंने कहा था कि ताइवान एक स्वतंत्र, संप्रभु देश है।
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