20 मई को ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की हेलिकॉप्टर की दुर्घटना में मृत्यु हो गई। इसे लेकर कई देशों ने सांत्वना व्यक्त की और भारत जैसे कई देशों ने एवं संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी शोक व्यक्त करते हुए एक मिनट का मौन रखा। मगर जैसे ही यह समाचार वायरल हुआ, वैसे ही सोशल मीडिया पर इसका विरोध होना आरंभ हो गया। ईरान के कई नागरिकों ने लिखा कि उन्हें इस बात का बहुत दुख है कि उस रईसी जिसे कि तेहरान का कसाई कहा जाता है, उसे लेकर ऐसा सम्मान दिया गया।
राष्ट्रपति रईसी को तेहरान का कसाई क्यों कहा जाता है और क्यों उनके मरने पर ईरान में एक बहुत बड़ा वर्ग प्रसन्न है, वह आतिशबाजी कर रहा है। क्या ऐसे जख्म हैं, जो केवल ईरान के वे ही लोग देख पा रहे हैं, जो ईरान के राष्ट्रपति के अत्याचारों का शिकार हुए हैं? क्योंकि पिछले कुछ समय से ईरान में लड़कियों को लेकर जो आंदोलन चल रहे हैं। उनमें अभी तक लोगों को फांसी देना जारी है। मगर यह भी बात सत्य है कि तेहरान का कसाई केवल इस बात को लेकर नहीं कहते होंगे?
कसाई का अर्थ बहुत अलग होता है। कसाई का मतलब अपनी इच्छानुसार मारना। तो रईसी ने कैसे और कब लोगों को मारा और क्या आधिकारिक रेकॉर्ड्स कहते हैं? ईरान और ईराक के बीच आठ वर्षों तक चला युद्ध वर्ष 1988 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के रेसोल्यूशन 598 को अपनाने के बाद समाप्त हुआ था। हालांकि युद्ध समाप्त होने की आधिकारिक घोषणा हुई थी, परंतु उसके बाद राजनीतिक कैदियों की मृत्यु का एक नया दौर ईरान ने देखा था। ईरान प्रीमियर वेबसाइट पर एंड्रू हन्ना का एक लेख यह विस्तार से बताता है कि कैसे रईसी ने तेहरान के कसाई की भूमिका निभाई थी।
ईरान और ईराक के आठ वर्ष के युद्ध समाप्त होने के बाद ईरान के सर्वोच्च नेता खुमैनी ने एक फतवा जारी किया। जुलाई 1988 में उन्होंने यह हुकूम दिया कि विपक्ष को समर्थन देने वाले सभी लोगों को और “अल्लाह के खिलाफ युद्ध छेड़ने” वाले सभी को मौत की सजा दी जाए। उसके बाद कहा जाता है कि खुमैनी ने एक दूसरा फतवा जारी करते हुए कम्युनिस्ट एवं वाम दलों के सभी नेताओं पर ध्यान केंद्रित किया और उनपर अपना धर्म छोड़ने का आरोप लगाया।
27 वर्षीय रईसी उस समय उस “डेथ कमिटी” में चार सदस्यों में सबसे छोटे थे, जो खुमैनी के फतवे के बाद बनाई गई थी। इस फतवे में कहा गया कि “इस्लाम के दुश्मनों” का खात्मा किया जाए। ईरान की जेलें उस समय युवा वामपंथियों से भरी हुई थीं, जिनके विषय में कहा जाता है कि वे ईराक आधारित पीपल्स मुजाहिदीन ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ ईरान या मुजाहिंदीन ए खलक के सदस्य थे। खुमैनी ने कहा कि इन सभी कैदियों को विशेष दंड दिया जाना चाहिए।
6000 लोगों की हत्या की
ऐसा कहा जाता है कि 5,000 से 6,000 लोगों को चुन-चुनकर मारा गया था, मगर यह संख्या लोग काफी कम बताते हैं। कुछ साइट्स का कहना है कि यह संख्या 10,000 तक थी। हयूमेन राइट वाच के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि पीपल्स मुजाहिदीन ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ ईरान या मुजाहिंदीन ए खलक ने ईरान सरकार को गिराने का प्रयास किया और फिर ईरान की सेना ने इसका विरोध किया, सत्य प्रतीत नहीं होता है क्योंकि कई लोगों का मानना है कि यह पीपल्स मुजाहिदीन ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ ईरान या मुजाहिंदीन ए खलक के पहले से ही बंदी बने हुए सदस्यों को मारने के लिए एक बहाना था।
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इसके अनुसार वर्ष 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद से ही राजनीतिक विरोधियों का दमन चालू हो गया था, मगर 1988 में कत्लेआम किया गया। जैसे ही ईरान और ईराक के बीच आठ वर्षीय युद्ध समाप्त हुआ वैसे ही इन कैदियों को एक जगह से दूसरी जगह भेजा जाने लगा और उन्हें अकेला किया जाने लगा। कमिटी ने कई प्रश्न तैयार किए थे।
usatoday की स्टोरी के अनुसार एमनेस्टी इंटरनेशनल के ईरान के विशेषज्ञ एलिस औरबछ के अनुसार तेहरान में काम कर रहे रईसी उन ऐसे लोगों में से थे, जिन्होंने इन हत्याओं को अंजाम दिया था। ये हत्याएं इस सीमा तक की गई थीं, कि खुमैनी के डेप्यूटी ग्रांड अयातुल्ला हुसैन अली मोंटेजेरी ने यह कहते हुए आपत्ति व्यक्त की थी कि इन लोगों को पहले ही सजा दी गई है, इसलिए हत्याएं क्यों करना। एमनेस्टी इंटरनेशनल के अनुसार रईसी ने इन हत्याओं को ईरान सरकार की “सबसे महान उपलब्धियों” में से एक बताया था। हालांकि, इस कत्लेआम को अभी तक ईरान की सरकार ने माना नहीं है और वह इनकार करती है कि इतने लोग मारे गए थे। उसका कहना है कि मात्र एक हजार राजनीतिक बंदियों की हत्याएं उसने कराई थीं।
लेकिन ऐसे कई लोगों के वक्तव्य हैं, वर्ष 2000 में प्रकाशित अयातुल्ला हुसैन अली मोंटेजेरी के संस्मरण, सरकारी दृष्टिकोण से सामूहिक फांसी/कत्लेआम का सबसे विश्वसनीय विवरण प्रस्तुत करते हैं। मोंटेज़ेरी, 1988 में, ईरान में सर्वोच्च रैंकिंग वाले सरकारी अधिकारियों में से एक थे, सर्वोच्च नेता के रूप में अयातुल्ला खुमैनी के नामित उत्तराधिकारी थे, और सर्वोच्च रैंकिंग वाले ऐसे अधिकारी थे जिन्होनें इस सरकारी कत्लेआम का विरोध किया था।
इसके बाद उन्हें घर में नजरबंद कर दिया गया था और खुमैनी की वर्ष 1989 में मौत के बाद अली खमैनी के हाथ में सत्ता आ गई थी। रईसी को खमैनी का स्वाभाविक उत्तराधिकारी माना जा रहा था।
तेहरान का कसाई अर्थात बुचर ऑफ तेहरान के मारे जाने का जश्न कई लोग मना रहे हैं। और सोशल मीडिया पर लोग यह प्रश्न भी कर रहे हैं कि आखिर ऐसे व्यक्ति के मारे जाने पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद कैसे शोक व्यक्त कर सकती है?
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