वैदिक और उत्तर वैदिक काल में भारत का आध्यात्मिक प्रभाव पूर्व में थाईलैंड, इंडोनेशिया, जावा, सुमात्रा, बोर्नियो आदि देशों में और पश्चिम की ओर ईरान, इराक ही नहीं, अपितु सुदूर यूरोप तक रहा है। इसकी झलक पिछले दिनों भी देखने को मिली। पोलैंड और लिथुआनिया के कुछ कलाकारों ने भारत के विभिन्न तीर्थस्थलों के दर्शन कर यह संदेश दिया कि उनकी और भारत की संस्कृति एक रही है। कुछ समय पहले लिथुआनिया के ‘रोमूवा’ समुदाय के एक संगीत दल को भारत आमंत्रित किया गया, जिसका नेतृत्व वहां की गुरुमाता डॉ. इनिया ट्रिंकेनेने ने किया। इस दल के लिए आवास और भोजन की व्यवस्था संस्कार भारती के कार्यकर्ताओं के घरों में रखी गई।
इस दल ने चेन्नै, बेंगलुरु, इंदौर, वाराणसी, आगरा, मथुरा और दिल्ली में सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। इसके साथ ही भारतीय संगीत की छटा भी बिखेरी गई। प्रत्येक कार्यक्रम का समापन लिथुआनिया की कलाकार सुश्री वेत्रा द्वारा ‘वंदे मातरम्’ के संपूर्ण गायन से किया जाना सभी के लिए एक रोमांचक अनुभव था। इसी क्रम में कुछ समय पूर्व पौलेंड के स्लाविक समुदाय के एक दल ‘दुनायोवी’ का सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम रचा गया। स्लाविक समुदाय मुख्यत: पोलैंड, चेक गणराज्य, स्लोवाकिया, यूक्रेन, क्रोएशिया और दक्षिणी रूस में बसा हुआ है।
स्लाविक सांस्कृतिक दल के कार्यक्रम क्रमश: मथुरा, वाराणसी और हरिद्वार में आयोजित किए गए। दल द्वारा अपनी एक घंटे की सांगीतिक प्रस्तुति में प्रकृति, नदी, ऋतु, देवी-देवता एवं पूर्वज आदि विषयक गीतों का गायन किया गया। इस दल के सदस्यों को श्रीकृष्ण जन्मभूमि के दर्शन भी कराए गए। इन कार्यक्रमों में संस्कार भारती के अखिल भारतीय संगीत विधा संयोजक अरुण कुमार शर्मा और अन्य कार्यकर्ताओं की बड़ी भूमिका रही।
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