‘जब 2500 वर्ष पूर्व जीसस और 1500 वर्ष पूर्व मोहम्मद के जन्म पर इस देश में विवाद नहीं हुआ तो फिर अपने ही घर में हमारे आराध्य प्रभु श्रीराम के जन्म को लेके इतनी शंका क्यों उत्पन्न हुई।’ ये कहना है इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस कमलेश्वर नाथ का। ये बात उन्होंने 2 मई को डॉ अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय केन्द्र मेंअपनी पुस्तक ‘यरनिंग फॉर राम मंदिर एंड फुलफिलमेंट’के लोकार्पण के मौके पर कही।
उन्होंने राम मंदिर के लिए 500 वर्षों के संघर्ष के इतिहास का जिक्र करते हुए कहा कि वाल्मीकि रामायण और गोस्वामी तुलसीदास के रामचरित मानस की वैज्ञानिकों द्वारा भी पुष्टि की जा चुकी है। इस मौके पूर्व जस्टिस ने दशकों तक रामजन्म भूमि के लिए चलने वाली वाली जटिल न्यायिक प्रक्रिया, जिसमें गवाहों, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के द्वारा किए गए उत्खनन एवं कोर्ट में पेश होने वाले प्रमाणिक दस्तावेजों एवं जगतगुरु रामभद्राचार्य जी के श्लोक के माध्यम से मौखिक साक्ष्यों जिन्हें न्यायालय में प्रस्तुत किया गया, उसका विधिवत उल्लेख किया।
चट इस मौके पर श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने वर्ष 1962 के उस मुकदमे का जिक्र किया, जिसे मुस्लिमों ने राम मंदिर के खिलाफ दायर किया था। इसके अलावा उन्होंने ये भी बताया कि राम मंदिर निर्माण के लिए 1983 में चलाया गया आंदोलन विश्व हिन्दू परिषद के जिम्मे आता है। चंपतराय बताते हैं कि उस दौरान जब आंदोलन को शुरू किया गया तो इस बात की जरूरत महसूस हुई कि सर्वप्रथम इस विषय पर भारतीय जनमानस को शिक्षित करने की आवश्यकता है तत्पश्चात ही इस आंदोलन को सुदृढ़ बनाया जा सकता है। उन्होंने 1986 का जिक्र किया, जिसमें सर्वप्रथम मंदिर के ताले को खोलने की अनुमति मिली थी।
चंपत राय ने बताया कि उस दौरान राम मंदिर के प्रमुख पक्षकार देवकीनंदन जी थे, जिन्होंने समय समय पर दृढ़ता से न्यायालय में अपना पक्ष रखा। देवकीनंदन जी ने अशोक सिंघल जी से कमलेश्वर नाथ गुप्ता जी का परिचय करवाया जिसके बाद कमलेश्वर नाथ जी ने अपना जीवन प्रभु श्रीराम को समर्पित कर न्यायालय में मंदिर निर्माण के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। उन्होंने अनुवाद कार्य में लगी शोधार्थि मनीषा का भी जिक्र किया जिनके द्वारा किए गए अनुवाद और शोध प्रक्रिया में लगे वकीलों के लिए साक्ष्यों और समझ विकसित करने के कार्यों में काम आ रहे थे।
आक्रमणकारियों ने मंदिरों को तोड़ा
इस मौके पर उपस्थित राष्ट्रीय स्वयंस्वक संघ के सरकार्यवाह डॉ कृष्ण गोपाल जी ने अपने उद्बोधन में विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा भारत और भारतीय संस्कृति पर किए गए हमले का जिक्र किया। साथ ही हिन्दुओं के अंदर के भावों और टूटे हुए मंदिरों के पुनर्निर्माण के सतत प्रक्रिया का भी जिक्र किया। साथ ही कारसेवा में अपना योगदान देने वाले कारसेवकों का उल्लेख भी सरकार्यवाह ने किया। कृष्ण गोपाल जी का उद्बोधन दार्शनिक पक्षों पर प्रकाश डालने वाला था, जिसमें उन्होंने राम के द्वारा स्थापित आदर्शों का उल्लेख किया , उन्होंने कैकेई , मंथरा , रावण , निषाद राज , भरत , लक्ष्मण आदि के जीवन प्रसंगों से वर्तमान परिदृश्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि पश्चिमी दर्शन अधिकार बोध को महत्व देते हैं एवं भारतीय दर्शन कर्तव्य बोध को महत्व देते हैं एवं वर्तमान समय में हम कर्तव्य बोध से अधिकार बोध की तरफ बड़ रहे हैं जो हमारे समाज के लिए चिंता का विषय है।
नेहरू ने दिया था राम लला की मूर्ति को हटाने का आदेश
वहीं जस्टिस भंवर सिंह , जो राम मंदिर के मामले में स्थापित तीन सदस्यीय बेंच के जजों में से एक हैं, ने बताया सोलहवीं शताब्दी में राम चबूतरे को हिंदुओं को सौंपने की वकालत की परंतु उस दौर के मुसलमान अकबर को काफिर मानने लगे एवं बाद में अकबर ने अपने फैसला वापस ले लिया। उन्होंने उत्खनन को लेकर बोला कि एक पक्ष नहीं चाहता था कि खुदाई हो , क्योंकि उसे डर था अगर खुदाई में कुछ भी प्राप्त हुआ तो उनका दावा कमज़ोर हो सकता है। उन्होंने जी.पी.आर मशीन के इस्तेमाल का भी सुझाव दिया जिसके माध्यम से मैगनेटिक सर्वे किया जा सके एवं छह माह तक इस सर्वे के चलने के पश्चात जो साक्ष्य पाए गए उसमें वहां हिन्दू मंदिर के ढ़ांचे होने के स्पष्ट प्रमाण मिले।
उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का भी जिक्र किया जिन्होंने उस समय के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के.के.नायर को मुख्यमंत्री के माध्यम से वहां से राम लला की मुर्ती हटाने के लिए आदेश दिया परंतु के.के.नायर जी ने शालीनतापूर्वक नौकरी की परवाह किए बगैर इसे अस्वीकार कर दिया।
पुस्तक के लोकार्पण पर बोलते हुए नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन के चेयरमैन न्यायामूर्ति अरूण कुमार मिश्रा अपनी स्पीच को भारतीय संविधान एवं रामराज्य के ऊपर केंद्रित रखा। उन्होंने प्राचीन इतिहास का जिक्र करते हुए कहा कि रामराज्य के समय सभी सुखी थे , कोई दीन-हीन नहीं था , कोई दरिद्र नहीं था , सभी ज्ञान से परिपूर्ण थे , लोग छल – कपट , द्वेष, इर्ष्या से मुक्त थे। हमारे संविधान का मूल उद्देश्य ही हमें रामराज्य की ओर लेकर चलने वाला है। उन्होंने समतामूलक समाज, वसुधैव कुटुंब, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर की परिकल्पना पर आधारित समाज का भी जिक्र किया। उन्होंने विनयशीलता, सत्यमेव जयते, अनुच्छेद 21 जैसे विषयों पर भी अपने विचार रखे एवं इनकी तुलनात्मक विश्लेषण रामराज्य से किया। उन्होंने राम , लक्ष्मण एवं महात्मा गांधी के दर्शन पर भी प्रकाश डाला जिसके पालन से समाज में जरूरी नैतिक मूल्यों एवं रामराज्य जैसी व्यवस्थाओं की पुनर्स्थापना की जा सके।िाोू
टिप्पणियाँ