बांग्लादेश में सिर्फ हिंदू ही नहीं, उनकी संपत्ति और मंदिर भी खतरे में हैं। आलम यह है कि ‘इस्लामी आतंक’ के कारण बांग्लादेश से हर साल 2,30,000 हिंदू पलायन कर जाते हैं। कट्टरपंथी मुसलमान हिंदुओं की संपत्ति के साथ हिंदू मंदिरों पर भी कब्जा कर रहे हैं। चटगांव जिले के सीताकुंड स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ चंद्रनाथ मंदिर के बाद कट्टरपंथी अब दिनाजपुर जिले के कांतानगर में स्थित कांताजी मंदिर पर कब्जा करने का मामला सामने आया है। कांताजी मंदिर राधा-माधव संप्रदाय का मुख्य मंदिर है, जो दुनियाभर में हिंदुओं के बीच प्रसिद्ध है।
जिहादी तत्व मंदिर की जमीन कब्जा कर उस पर तिमंजिला मस्जिद बना रहे हैं। हिंदुओं के विरोध के बाद जब यह मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठा, तो खाना-पूर्ति करते हुए प्रशासन ने 24 मार्च को मंदिर की भूमि पर ‘सभी प्रकार के निर्माण कार्योंं’ पर रोक लगा दी। लेकिन अतिक्रमण हटाने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई है। हिंदू मंदिरों पर इस्लामी खतरे को देखते हुए अल्पसंख्यकों का प्रमुख संगठन बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई ओइक्या परिषद सहित तमाम हिंदू संगठन सरकार से चंद्रनाथ मंदिर और कांताजी मंदिर को तीर्थस्थल घोषित करने की मांग कर रहे हैं। लेकिन उनकी आवाज की अनसुनी की जा रही है।
18वीं सदी में निर्मित कांताजी मंदिर टेराकोटा वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह न केवल विश्व स्तर पर बांग्लादेश का प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप में यूनेस्को-सूचीबद्ध स्थल भी है। इस वर्ष 1 मार्च को दिनाजपुर-1 के नवनिर्वाचित विधायक जकारिया जका ने मंदिर की भूमि पर अवैध मस्जिद की नींव रखी थी और अगले ही दिन से निर्माण कार्य शुरू हो गया। हिंदुओं ने इसका विरोध किया तो विवाद बढ़ा। इसके बाद यह मामला देश-विदेश की मीडिया में आया तो आनन-फानन में प्रशासन ने मस्जिद निर्माण पर रोक लगा दी। लेकिन यह रोक दिखावे के लिए थी। वास्तव में मस्जिद का निर्माण कार्य और तेज कर दिया गया। आखिरकार 23 दिन बाद दिनाजपुर के डिप्टी कमिश्नर शकील अहमद ने 24 मार्च को विवादित स्थल का दौरा किया और कांताजी मंदिर की भूमि पर किसी भी तरह के निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया।
कट्टरपंथी मुसलमान दक्षिण-पश्चिमी चटगांव में 1,020 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित चंद्रनाथ मंदिर की जमीन पहले ही कब्जा कर चुके हैं और अब वहां मस्जिद बनाने की योजना बना रहे हैं। इस पहाड़ी का नाम चंद्रनाथ है और इसीलिए शक्तिपीठ का नाम चंद्रनाथ मंदिर पड़ गया। मान्यता है कि माता सती का दाहिना हाथ इसी पहाड़ी पर गिरा था। इस मंदिर का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। इस मंदिर का पहला उल्लेख त्रिपुरा साम्राज्य के माणिक्य राजवंश के इतिहास ‘राजमाला’ में हुआ है।
हिंदुओं के लिए पवित्र इस चंद्रनाथ पहाड़ी पर दो झरने और कुछ जलधाराएं भी हैं, जो पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। पहले यहां केवल हिंदू श्रद्धालु ही आते थे, लेकिन बीते कुछ वर्ष से मुसलमान भी इस पहाड़ी पर ट्रैकिंग के लिए आने लगे। इसके बाद मुल्ला-मौलवियों की आवाजाही शुरू हुई। फिर देखते-देखते पहाड़ी पर कई मुसलमानों ने होटल खोल लिए और यहां आने वाले आगंतुकों को गोमांस परोसने लगे। इनमें कई रसूख वाले हैं, जिनके सत्तारूढ़ अवामी लीग से नजदीकी संबंध हैं। इसलिए हिंदू चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। पहाड़ी पर इस्लामी सभाएं होती हैं और उनमें हिंदुओं के खिलाफ जहर उगला जाता है। बीफ पार्टी तो सामान्य बात हो गई है।
जिहादी कब्जे में मंदिरों की जमीन
कट्टरपंथी पहले ही बांग्लादेश के कई हिंदू मंदिरों की जमीनों पर कब्जा कर चुके हैं, जिन्हें मुक्त कराने के लिए वे लंबे समय से सरकार से गुहार लगा रहे हैं। इनमें प्रमुख हैं- ढाकेश्वरी मंदिर (ढाका), आदिनाथ मंदिर (महेशखाली), कॉक्स बाजार भवानीपुर शक्तिपीठ (भवानीपुर), जेशोरेश्वरी काली मंदिर (श्यामनगर), बाबा लोकनाथ ब्रह्मचारी आश्रम (बरोदी), नारायणगंज काल भैरव मंदिर व ब्राह्मणबरिया पुठिया मंदिर परिसर (राजशाही) और ढाका के शेरपुर उपजिला स्थित बोगरा रमणा काली मंदिर। बांग्लादेश पूजा उत्सव परिषद के उपाध्यक्ष और बांग्लादेश हिंदू, बौद्ध, ईसाई ओइक्या परिषद के संयुक्त सचिव मनिंद्र कुमार नाथ का कहना है कि इन तमाम मंदिरों के अलावा देशभर के अन्य हिंदू तीर्थ स्थलों की हजारों एकड़ जमीन जिहादियों के कब्जे में है। 1908 में ढाकेश्वरी मंदिर के पास 20 बीघा जमीन थी, जो अवैध कब्जे के बाद सिकुड़ कर अब मात्र 7.5 बीघा रह गई है। इसी तरह, कांताजी मंदिर के पास 156 एकड़ से अधिक जमीन थी, लेकिन अभी लगभग 63 एकड़ जमीन ही बची है। शेष जमीन मुसलमानों ने कब्जा ली है। मंदिर की 6.48 एकड़ जमीन पर अब मस्जिद खड़ी की जा रही है। मंदिर की जमीन को कब्जा मुक्त कराने के लिए कई प्रयास किए गए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति
बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि 1951 में वहां 22 प्रतिशत हिंदू थे, जो 2022 में घटकर 7.5 प्रतिशत रह गए हैं। वहीं, मुसलमानों की आबादी बढ़कर 91 प्रतिशत से अधिक हो गई है, जो 1951 में 76 प्रतिशत थी। हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन के अनुसार, बांग्लादेश से हर साल 2.30 लाख हिंदू पलायन करते हैं। धार्मिक उत्पीड़न के कारण 1964 से 2013 के बीच 1.10 करोड़ हिंदू पलायन कर गए। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, 2011 की जनगणना से पता चला कि 2000 से 2010 के बीच 10 लाख हिंदू ‘गायब’ हो गए।
बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई ओइक्या परिषद के एक वरिष्ठ पदाधिकारी का कहना है कि पहाड़ी पर आने वाले मुसलमान जानबूझकर अल्लाह हू अकबर और ला इलाहा इल्लल्लाह जैसे उत्तेजक इस्लामी नारे लगाते हैं और हिंदुओं से दुर्व्यवहार करते हैं। इस कारण दोनों पक्षों के बीच अक्सर झड़प होती रहती है। पिछले वर्ष दिसंबर के उत्तरार्ध में भी झड़प हुई थी। अप्रैल 2023 से कुछ मौलवियों ने हर शुक्रवार को मंदिर के पास नमाज पढ़ना शुरू कर दिया।
अब सुनने में आया है कि उनकी योजना पहाड़ी पर मस्जिद बनाने की है। इसके लिए एक झूठी कहानी फैलाई जा रही है कि पहाड़ी पर एक मस्जिद थी, जिसे तोड़कर हिंदुओं ने मंदिर बना दिया। मस्जिद बनाने की योजना बनाने वाले जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश और हिफाजत-ए-इस्लाम बांग्लादेश से संबद्ध हैं। जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश का देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के साथ गठबंधन है, जबकि हिफाजत-ए-इस्लाम बांग्लादेश का जुड़ाव सत्तारूढ़ अवामी लीग से है।
चटगांव के एक बड़े व्यापारी धनंजय दास कहते हैं कि हिन्दुओं का अपने ही धर्मस्थल पर जाना खतरे से खाली नहीं रहा है। मुसलमान उत्तेजक मजहबी नारे तो लगाते ही हैं, हिंदुओं को गालियां भी देते हैं। वे हिंदू तीर्थयात्रियों से दुर्व्यवहार करते हैं और अक्सर उन्हें ‘मालौंस’ (बांग्लादेश में हिंदुओं के लिए एक अपमानजनक शब्द) बुलाते हैं। वह कहते हैं, ‘‘अब तो ऐसा लगता है कि कट्टरपंथी मुसलमान किसी भी समय पहाड़ी पर कब्जा कर लेंगे।’’
हिंदू संगठन सरकार से इस पहाड़ी को तीर्थस्थल घोषित करने, गोमांस और मांसाहारी भोजन पकाने-बेचने पर प्रतिबंध लगाने के साथ हिंदू तीर्थयात्रियों का उत्पीड़न रोकने के लिए पुलिस तैनात करने की मांग कर रहे हैं। लेकिन हिंदुओं की इस मांग को बांग्लादेश की ‘पंथनिरपेक्ष’ सरकार शायद ही पूरा करेगी, क्योंकि हिंदुओं की गुहार पर सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने के बाद ही इस्लामी कट्टरपंथियों का मनोबल बढ़ा है और वे पहले से अधिक आक्रामक हो रहे हैं।
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