‘सनातन धर्म की एड्स, डेंगू और मलेरिया से तुलना करने की आपकी समझ ये दिखाती है कि इसको लेकर आपकी सोच कितनी खतरनाक है। संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को इस तरह के विभाजनकारी बयानबाजी से बचना चाहिए।’ ये बात मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे और राज्य के मंत्री उदयनिधि स्टालिन को लेकर कही। कोर्ट ने उन्हें इसके लिए कड़ी फटकार लगाई।
इसके साथ ही कोर्ट ने उदयनिधि स्टालिन के बयान पर नाराजगी जताते हुए कहा कि वैचारिक मतभेद होने के बावजूद जनता के बीच समाज को बांटने वाले नहीं, बल्कि जोड़ने वाले बयान दिए जाने चाहिए। अपने फैसले में हाई कोर्ट की जस्टिस अनीता सुमंत ने कहा कि राज्य के अन्य नेताओं के बयानों और सनातन धर्म को मिटाने का आह्वान वाले सम्मेलन में शामिल होने पर नाराजगी जताई। कोर्ट का कहना है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और संविधान सभी लोगों के लिए सरकार देने की आजादी देने की बात करता है।
वारंटो जारी करने से किया इनकार
हालांकि, मद्रास हाई कोर्ट ने उदयनिधि स्टालिन, पीके शेखरबाबू और नीलगिरी के सांसद ए राजा के खिलाफ वारंटो जारी करने से इनकार कर दिया। जस्टिस सुमंत ने इन तीनों राजनेताओं को सनातन धर्म को लेकर टिप्पणियां करने के मामले में फैसला देते हुए इन्हें इनके निर्वाचित पदों से हटाने की मांग को ठुकरा दिया। उन्होंने कहा कि तीनों नेताओं के खिलाफ दायर याचिकाओं में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर की जांच की जा रही है। लेकिन अभी तक उनका दोष सिद्ध नहीं हो सका है।
गौरतलब है कि डीएमके के नेताओं द्वारा सनातन धर्म को गाली देने और उसे खत्म करने की बात करने के मामले में हिन्दू मुन्नानी संगठन के सदस्य टी मनोहर, जे किशोर कुमार औऱ वीपी जयकुमार ने याचिका दायर की थी। इसी पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ये टिप्पणी की।
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