हरियाणा और पंजाब के शंभू बॉर्डर से किसान पिछले दो दिनों से दिल्ली कूच का प्रयास कर रहे हैं, परंतु अभी तक उन्हें सफलता नहीं मिल पाई है। कई जगह किसानों व सुरक्षा बलों के बीच टकराव भी हुआ है और कई लोग घायल हुए हैं। पिछले किसान आंदोलन से सबक सीखते हुए हरियाणा व केंद्र सरकार ने अपनी ओर से सुरक्षा के अभेद्य प्रबंध किए हैं और यह प्रबंध इस आंदोलन में शामिल दो विवादित संगठनों के चलते अधिक किए गए हैं। वहां पर किसानों और पुलिस के बीच झड़प हुई है।
हरियाणा पुलिस व केंद्र सरकार का प्रयास है कि किसान मार्च को दिल्ली के बॉर्डर तक पहुंचने से पहले ही रोका जाए। इसके बाद भी अगर किसान मार्च, दिल्ली की सीमा पर पहुंच जाता है, तो उसे किसी भी सूरत में राष्ट्रीय राजधानी में प्रवेश नहीं करने दिया जाए। उत्तर प्रदेश से लगते बॉर्डर पर भी दिल्ली पुलिस ने कड़े इंतजाम किए हैं। इस मार्च में शामिल भारतीय किसान यूनियन (क्रांतिकारी) के अध्यक्ष सुरजीत सिंह फूल और उनके साथियों पर दिल्ली व हरियाणा पुलिस के अलावा केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों की भी नजर है।
आरोप है कि इस संगठन के लोगों ने 5 जनवरी, 2022 को बठिंडा से सड़क मार्ग के जरिए फिरोजपुर जा रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का काफिला रोक दिया था। इसी तरह का दूसरा समूह, पंजाब किसान मजदूर संघर्ष समिति का है। इसका नेतृत्व सरवन सिंह पंढेर कर रहा है और वह इस किसान आंदोलन का भी सर्वेसर्वा बन कर सामने आया है। आरोप है कि इस समूह के कार्यकर्ताओं ने साल 2021 में गणतंत्र दिवस पर लाल किला में ट्रैक्टर घुसा दिए थे। लाल किला की प्राचीर पर लगे तिरंगे का अपमान किया गया था। इन दोनों समूहों पर सुरक्षा एजेंसियों की खास नजर है।
यह भी पता चला है कि उक्त समूहों में कुछ ऐसे लोगों को तैयार किया जा रहा है जो बिना ट्रैक्टर के दिल्ली में प्रवेश कर उपद्रव मचा सकें। इसके लिए दिल्ली के सभी बॉर्डर के अलावा, 100 से ज्यादा ऐसे रास्ते हैं, जहां एनसीआर के जिलों से दिल्ली में प्रवेश किया जा सकता है, वहां पर पुलिस एवं खुफिया एजेंसियों की नजर है। इन रास्तों से ट्रैक्टर, दिल्ली में नहीं आ सकता, लेकिन दोपहिया वाहन से और पैदल आवाजाही संभव है। दिल्ली से लगते सिंघु बॉर्डर, टीकरी बॉर्डर, गाजीपुर बॉर्डर और ढांसा बॉर्डर पर पहले ही कई लेयर की बैरिकेडिंग की गई हैं।
फरीदाबाद, पलवल की ओर से दिल्ली के प्रवेश मार्ग पर भी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई है। गृह मंत्रालय की तरफ से दिल्ली पुलिस को स्पष्ट हिदायत दी गई है कि किसान मार्च या उसमें शामिल लोग, दिल्ली के भीतर न पहुंचने पाएं। इसी कारण दिल्ली पुलिस के सीनियर अफसरों को बॉर्डर एवं चुनींदा प्वाइंटों की जिम्मेदारी सौंपी गई है। विगत किसान आंदोलन के दौरान सुरक्षा एजेंसियां आंदोलन में शामिल खालिस्तानी व नक्सली तत्वों आंदोलन से दूर नहीं कर पाई थीं, जिसका परिणाम लाल किले की शर्मनाक घटना के रूप में निकला। लगता है कि सरकार अबकी बार कोई जोखिम नहीं लेना चाहती और सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध इसकी गवाही भरते भी दिखाई देते हैं।
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