हिन्दी पद्य साहित्य में ‘महाकाव्य’ के रूप में गोस्वामी तुलसीदास कृत ‘श्री राम चरित मानस’ विस्तृत मानवीय सम्बन्धों, सम्वेदनाओं एवं अनुभूतियों का अनूठा महाग्रन्थ है। भारत वर्ष की सनातन परम्परा, नैतिक मूल्यों, समर्पित आस्था तथा व्यवहारिक संकल्पनाओं को अपने में समेटे यह महाग्रन्थ सम्पूर्ण मानवता के सन्दर्भ में धर्म एवं कर्म के क्रियान्वयन के जिस वैश्विक अवधारणा को प्रस्तुत करता है उसके विराट सत्य एवं विहंगम परिदृश्य का एक विलक्षण महालेख है यह महाग्रन्थ। साहित्य में काव्य के परिप्रेक्ष्य में वर्णित मात्रा, भार, भाषा, व्याकरण, संस्कार, संस्कृति, रस, छन्द, अलंकार, बिम्ब, रूपक, भाव, अभिव्यंजना सहित विभिन्न सम्बन्धित अव्यवों का जीवन्त प्रारूप है ‘तुलसी रामायण’।
श्री राम कथा की कालजयी प्रस्तुति की शृंखला में संस्कृत भाषा में महर्षि वाल्मीकि, अवधी भाषा में गोस्वामी तुलसीदास तथा अपनी अद्भुत भावपूर्ण गायकी से इसे शाश्वत जीवन्त करने वाले गायक मुकेश इस वृहद कथानक के ऐसे तीन स्तम्भ हैं जो अनन्त काल तक इसके सम्वर्धन तथा प्रसार-प्रचार के चिर वाहक रहेंगे। भारत के प्रथम वैश्विक गायक मुकेश द्वारा ‘तुलसी रामायण’ का प्रथम पुष्प अर्पित-समर्पित किए हुए इस वर्ष ‘राम नवमी’ में पाँच दशक अर्थात् गौरवशाली पचास वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने अयोध्या में सम्वत् 1631 तदनुसार 09 अप्रैल सन 1574 ‘राम नवमी’ के शुभ दिवस पर ‘श्री राम चरित मानस’ महाकाव्य सृजन का श्री गणेश किया था। वर्ष 1973 में ‘श्री राम चरित मानस’ के सृजन को चार सौ वर्ष पूर्ण हो रहे थे। इस उपलक्ष्य में राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ‘महाग्रन्थ’ के अवतरण पर तब ‘चतुश्शती समारोह’ का आयोजन किया गया था।
भारत सरकार द्वारा तत्कालीन केन्द्रीय पर्यटन एवं नागरिक उड्डयन मन्त्री डॉ. कर्ण सिंह ने इस वृहद आयोजन हेतु वर्ष भर के कार्यक्रमों की परिकल्पना, अवधारणा, संयोजन एवं निस्तारण को अन्तिम रूप दिया था। वर्ष 1970 में ही डॉ. कर्ण सिंह ने भारत की अग्रणी रेकार्ड कम्पनी ‘एच एम वी’ के तब के ‘नेशनल रेकार्डिंग मैनेजर’ विजय किशोर दुबे को कहा था कि इस हेतु वो भी सांगीतिक प्रस्तुति द्वारा कुछ विशिष्ट करें। इसी विशिष्ट प्रस्तुति को ध्यान में रख कर ‘एच एम वी’ ने ‘श्री राम चरित मानस’ के ‘चतुश्शती समारोह’ पर ‘तुलसी रामायण’ को स्वरबद्ध कर उसे एक संग्रह के रूप में प्रस्तुत करने का वृहद कार्य प्रारम्भ किया था।
‘तुलसी रामायण’ की योजना तथा इस हेतु गायक का चयन करने की प्रक्रिया पर चर्चा करते हुए विजय किशोर दुबे ने स्वयं मुझे साक्षात्कार में बताया था कि इसके लिए उपयुक्त स्वर का चयन करना तब हमारे लिए एक चुनौती थी। देश भर में सभी महत्वपूर्ण गायक-गायिकाओं के नामों को हमने देखा-सुना-परखा। शास्त्रीय, सुगम और लोक संगीत के सभी गायक कलाकारों सहित सिनेमा के भी गायकों के नाम पर विचार-विमर्श हुआ पर किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पा रही थी। चयन की दीर्ध प्रक्रिया और कई स्तरों पर विमर्श के पश्चात् जिस गायक के नाम पर सर्व सम्मति बनी वो थे मुकेश। यह नाम ही ऐसा था जो तब सिनेमा और गायन के अन्य क्षेत्रों में पवित्रता एवं पावनता का प्रतीक माना जाता था। भावों, अनुभूतियों एवं सम्वेदनाओं का जो अलौकिक भण्डार ‘मानस’ में निहित था उसे अपनी वाणी से सार्थकता प्रदान करने का कौशल मुकेश की वाणी द्वारा ही सम्भव था। सो मुकेश अब ‘तुलसी रामायण’ के मुख्य स्वर हेतु चयनित हो चुके थे। सन्त तुलसीदास के महाकाव्य ‘श्री राम चरित मानस’ को सम्पूर्ण रूप में जस का तस प्रस्तुत करना एक दुरूह कार्य था इसलिए यह निश्चय किया गया कि इसके प्रत्येक काण्ड को इस प्रकार सम्पादित एवं संकलित किया जाए जिससे इसकी कथा भी यथावत बनी रहे, इसमें समस्त महत्वपूर्ण घटना क्रम भी क्रमवार सम्मिलित रहें और इसका प्रारूप भी परिवर्तित न हो। ‘मानस’ के सम्पादन और संकलन का दायित्व कवि-गीतकार पं. नरेन्द्र शर्मा को सौंपा गया तथा इसे संगीतबद्ध करने का कार्य संगीतकार मुरली मनोहर स्वरूप के सुपुर्द किया गया। अवधी भाषा, इसके व्याकरण और उच्चारण को विधिवत आत्मसात करने हेतु तब ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’, वाराणसी के हिन्दी विभाग के प्रो. चन्द्रशेखर पाण्डेय की सेवाएँ ली गयी थी। प्रो. पाण्डेय का कार्य यह सुनिश्चित करना था कि गायन में प्रत्येक शब्द का उच्चारण शुद्ध एवं स्पष्ट हो तथा वह लोक शैली के अनुकूल हो। ‘तुलसी रामायण’ के लिए मुकेश का चयन ऐसे समय में हुआ था जब वो सिने गीत-संगीत में नित उच्च कोटि के गीत प्रस्तुत कर रहे थे। उनके गीतों की लोकप्रियता चरम पर थी। मुकेश की प्रकृति ही ऐसी थी कि वे अपने एक-एक गीत को पूर्ण मनोयोग से प्रस्तुत करने के प्रति कृतसंकल्पित रहते थे। ऐसे में ‘श्री राम’ की भक्ति भाव से आराधना करना मुकेश के लिए किसी चुनौती से कम नहीं था। जब ‘रामायण’ गायन का प्रस्ताव उनके समक्ष आया तो उन्होंने इसे ईश्वर का आशीष मान कर विनीत भाव से इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। एक आध्यात्मिक इतिहास जो गोस्वामी तुलसीदास ने रचा था उसी को अपने स्वर्णिम कण्ठ से भावपूर्ण वाणी के साँचे में ढाल कर मुकेश ने ‘तुलसी रामायण’ को जन-जन तक पहुँचाया है।
‘राम नवमी’ के दिन तदनुसार बुधवार 11 अप्रैल 1973 को ‘श्री राम चरित मानस’ के ‘चुतुश्शती समारोह’ अर्थात् तुलसी रामायण लेखन के चार सौ वर्ष पूर्ण होने के समारोह के उद्घाटन दिवस पर गायक मुकेश के पावन स्वर में ‘तुलसी रामायण’ का प्रथम लॉंग प्ले रेकार्ड का विधिवत विमोचन किया गया। ‘बाल काण्ड’ भाग प्रथम एवं द्वितीय के साथ ही रामायण के आठों काण्ड को आठ रेकार्ड में अंकित करने की शृंखला का श्री गणेश हो चुका था। ‘जो सुमिरत सिधि होई गन नायक करिबर बदन, करऊ अनुग्रह सो बुद्धी रासी सुभ गुन सदन’ में स्वयं को ध्यान मग्न कर मुकेश ‘राम नवमी’ के पावन दिवस पर श्री राम के जन्म का विवरण प्रस्तुत करते हैं। आँग्ल तिथि 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व प्रभु श्री राम का जन्म अयोध्या नगर में हुआ था। महर्षि वाल्मीकि द्वारा राम जन्म की तिथि को गोस्वामी तुलसीदास ने ‘श्री राम चरित मानस’ में अवधी भाषा में लिपिबद्ध करते हुए लिखा है – ’नौमी तिथि मधुमास पुनीता सुकल पक्ष अभिजित हरि प्रीता, मध्य दिवस अति सीत न घामा पावन काल लोक विश्रामा’ जिसे मुकेश की पुलक भरी वाणी बाँचती हुयी क्रमवार विभिन्न प्रसंगों को अपने स्वर में समेटे अनेकों दृश्य-परिदृश्य को जीवन्त करते हुए आगे बढ़ती है। पद, दोहा, चौपाई, सोरठा जैसे काव्य के विभिन्न रूपों में बँध कर ‘मानस’ में वर्णित घटना क्रम का जो सजीव चित्रण सन्त तुलसीदास ने किया है उसे अपनी अद्भुत भावपूर्ण वाणी से सुशोभित करके मुकेश ने जो आध्यात्मिक अलख जगाई है वह अद्वितीय है। ‘श्री राम चरित मानस’ महाकाव्य साहित्य, संगीत, राग-रागिनी, अनुभूतियों, सम्वेदनाओं, नौ रस सहित कला की समस्त विधाओं का आलोक समाया हुआ है। मुकेश की वाणी में मानवीय सम्बन्धों की सूक्ष्म एवं विराट अभिव्यंजनाओं की आदर्श अभिव्यक्ति है ‘रामायण’ महाकाव्य का महागायन।
‘तुलसी रामायण’ में मुकेश की मुखर मर्मज्ञ मानस गान के विभिन्न चरणों का श्रवण करना अत्यन्त आनन्ददायी है। ‘बाल काण्ड’ में पिता के रूप में राजा दशरथ की व्यथा ‘एक बार भूपति मन माही भए ग्लानि मोरे सुत नाही’ में समाई व्याकुलता और पीड़ा की अकुलाहट को पढ़ कर जाना तो जा सकता है पर उसे अनुभूत करने के लिए मुकेश की वाणी में इसे श्रवण करना आवश्यक है। एक अन्य प्रसंग में मुनि विश्वामित्र संग उनके आश्रम गमन करते हुए श्री राम की दृष्टि जब शिला बनी गौतम नारी अहिल्या पर पड़ती है तब ‘गौतम नारी श्राप बस उपल देह धरी धीर, चरन कमल रज चाहति कृपा करहुँ रघुबीर’ के रूप में मुकेश की मार्मिक अभिव्यक्ति वह सब कुछ व्यक्त कर देती है जो परिदृश्य में रचा-बसा है। ‘धनुष यज्ञ’ के प्रसंग में द्वीप द्वीप के राजाओं द्वारा धनुष भंग करने की समस्त चेष्टाओं में सभी के असफल होने पर व्यथित राजा जनक का उदबोधन ‘अब जनि कोउ माखै भटमानी, बीर बिहीन मही मैं जानी, तजहु आस निज निज गृह जाहू, लिखा न बिधी बैदेहि बिबाहु’, एक पिता की छटपटाहट का चरमोत्कर्ष है। जनक के इस विषादपूर्ण वक्तव्य को सुन कर मुनि विश्वामित्र का राम से किया गया स्नेहमयी आग्रह ‘बिस्वामित्र समय सुभ जानी बोले अति स्नेहमय बानी, उठहु राम भंजहु भव चापा मेटहु तात जनक परितापा’ अन्ततः जनक के क्षोभ का अन्त करता है।
राम विवाह सम्पन्न होने के पश्चात् ‘अयोध्या काण्ड’ में वर्णित श्री राम कथा के विभिन्न प्रसंग सम्बन्धित सन्दर्भ के साथ मुकेश की वाणी में और भी मोहक रूप में हमारे समक्ष आए हैं। ‘जब से राम ब्याही घर आए, नित नव मँगल मोध बधाए, रिधि सिधि संपती नदी सुहाई, उमगि अवध अंबुधि कहूँ आइ’ की अभिव्यक्ति उस उत्सव का दृश्य समक्ष उपस्थित करती है जो पारिवारिक जीवन एवं समाज के प्रति उत्तर दायित्व के निर्वहन को प्रेरित करती है। राजा दशरथ की उक्ति ‘रघुकुल रीति सदा चली आई प्रान जाहुँ बरु बचनु न जाई’ में एक विश्वास है, एक प्रतिज्ञा है, दृढ़ता है तथा पुरुषार्थ के पौरुष का पराक्रम निहित है। मुकेश ने इसी विशास को अपनी प्रस्तुति में जिस दृढ़ता के संग ‘तुलसी रामायण’ के माध्यम से हमारे समक्ष परोसा है। व्यथा और असमर्थता का एक और अध्याय ‘जियए मीन बरु बारि बिहीना, मनी बिनु फनिक जियए दुख दिना, कहऊ सुभाऊ न छलु मन माही, जीवन मोर राम बिनु नाहीं’ में रच दिया गया है।
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