यह जीत इस बात का स्पष्ट संकेत है कि केरल के शैक्षणिक परिसर बड़े पैमाने पर अभाविप के केसरिया ध्वज का स्वागत करने के लिए तैयार हो चुके हैं। एसएफआई 1977 से केरल के कॉलेज परिसरों में एकतरफा दबदबा बनाए हुए थी।
वामपंथियों का गढ़ माने जाने वाले केरल के कॉलेज परिसरों में इस बार भगवा झंडा लहराया है। कासरगोड स्थित केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) ने शानदार प्रदर्शन कर तीन सीटों पर जीत दर्ज की है। हाल ही में संपन्न विश्वविद्यालय और राज्य के विभिन्न हिस्सों में इसके केंद्रों में छात्र संघ चुनावों में अभाविप ने कई स्थानों पर जीत दर्ज की है। यहां 27 विभागों के 53 कक्षा प्रतिनिधि पदों पर चुनाव कराए गए थे, जिसमें 16 सीटों पर अभाविप को विजय मिली है। इन 53 निर्वाचित प्रतिनिधियों के मतों से अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष (पुरुष और महिला), सचिव, दो संयुक्त सचिव, चार कार्यकारी परिषद सदस्यों जैसी सामान्य सीटों के लिए 10 उम्मीदवारों का निर्वाचन होता है। इसमें अभाविप तीन सीटों (उपाध्यक्ष, संयुक्त सचिव और कार्यकारी परिषद सदस्य) पर विजय प्राप्त करने में सफल रही।
वहीं, वामपंथी स्टूडेंट फेडरेशन आफ इंडिया (एसएफआई) ने अध्यक्ष, सचिव और एक कार्यकारी परिषद सदस्य तथा कांग्रेस से संबद्ध भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (एनएसयूआई) के खाते में चार सीटें आई, जिनमें उपाध्यक्ष, संयुक्त सचिव और दो कार्यकारी परिषद सदस्य शामिल हैं। एसएफआई, अभाविप, एनएसयूआई, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग नियंत्रित मुस्लिम स्टूडेंट्स फेडरेशन (एमएसएफ), आल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एआईएसए), फ्रैटरनिटी मूवमेंट और आंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एएसए)— इन सभी ने छात्रसंघ का चुनाव लड़ा था।
यह जीत इस बात का स्पष्ट संकेत है कि केरल के शैक्षणिक परिसर बड़े पैमाने पर अभाविप के केसरिया ध्वज का स्वागत करने के लिए तैयार हो चुके हैं। एसएफआई 1977 से केरल के कॉलेज परिसरों में एकतरफा दबदबा बनाए हुए थी। राज्य में अभाविप एकमात्र ऐसा संगठन है, जिसने आपातकाल की ज्यादतियों के खिलाफ पूरी ताकत से लड़ाई लड़ी थी। उस समय एसएफआई ने (अपनी मातृ संस्था माकपा की तरह) आपातकाल के खिलाफ उंगली तक नहीं हिलाई थी। लेकिन उसने यह यह झूठ जरूर प्रचारित किया कि एसएफआई ने आपातकाल विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया।
इस झूठे प्रचार में कम्युनिस्टों द्वारा अपनी स्थापना के बाद से ही संचालित की जा रही पारंपरिक प्रचार मशीनरी ने पूरा सहयोग किया। यह एक सार्वभौमिक तथ्य है कि दुनिया के किसी भी हिस्से में कम्युनिस्ट सफेद झूठ बोलने में सर्वाधिक कुशल होते हैं। वे अपनी बात को सही साबित करने के लिए झूठ बोलने की किसी भी हद तक जाने से नहीं हिचकिचाते।
कासरगोड स्थित केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) ने शानदार प्रदर्शन कर तीन सीटों पर जीत दर्ज की है। हाल ही में संपन्न विश्वविद्यालय और राज्य के विभिन्न हिस्सों में इसके केंद्रों में छात्र संघ चुनावों में अभाविप ने कई स्थानों पर जीत दर्ज की है। यहां 27 विभागों के 53 कक्षा प्रतिनिधि पदों पर चुनाव कराए गए थे, जिसमें 16 सीटों पर अभाविप को विजय मिली है।
आपातकाल के बाद और विशेषकर जनता विद्यार्थी मोर्चा (जेवीएम) के गठन के बाद के दो-तीन वर्ष के दौरान, जब तक जनता पार्टी का अस्तित्व रहा, अभाविप ने कैंपस चुनाव नहीं लड़ने तथा रचनात्मक गतिविधियों व राष्ट्रीय मुद्दों के सकारात्मक प्रचार पर ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया था। इन तीन वर्षों में एसएफआई को कैंपस में अपनी स्थिति मजबूत करने का सुनहरा अवसर मिला।
1975 तक यानी आपातकाल से पहले केरल के शैक्षणिक परिसरों पर कांग्रेस-नियंत्रित केरल छात्र संघ (केएसयू) का नियंत्रण था, जो एनएसयूआई की केरल शाखा थी। लेकिन आपातकाल की समाप्ति के बाद राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस पार्टी के विभाजन और राज्य में पार्टी में तीव्र गुटबाजी के कारण केएसयू को गंभीर झटका लगा। उस समय राज्य में ऐसे कई संगठन थे, जो केंद्र में सत्तारूढ़ जनता पार्टी (1977-1979) से संबद्ध थे। उनके कारण अभाविप को नुकसान हो रहा था। इसलिए खुद को स्थापित करने के लिए एसएफआई ने तिकड़मी चालें चलीं।
बाद में जब माकपा ने पूरे राज्य में रा.स्व.संघ के खिलाफ हत्या की मुहिम छेड़ी तो एसएफआई ने शैक्षणिक परिसरों से इसकी शुरुआत की। वामपंथियों के हिंसक हमले में अभाविप के कई कार्यकर्ता मारे गए और कई गंभीर रूप से घायल हुए। हालत यह थी कि यदि चुनावों में अभाविप के कार्यकर्ता विजयी होते थे, तो एसएफआई के गुंडे घातक हथियारों से उन पर हमले करते थे। ऐसी एक घटना पथनमथिट्टा के मन्नार के देवासवोम बोर्ड कॉलेज में सितंबर 1996 में हुई थी। इसे एसएफआई मजबूत गढ़ का माना जाता था। अभाविप ने वहां एक सीट जीती थी, जो सामान्य सीट नहीं थी। लेकिन एसएफआई को यह मंजूर नहीं था। इसलिए एसएफआई के गुंडों ने अभाविप कार्यकर्ताओं पर हमला कर दिया। उन्हें पकड़ कर पास की नदी में फेंक दिया और जब वे तैरकर बचने की कोशिश कर रहे थे, तो एसएफआई के गुंडों ने उन पर भारी पत्थर और ईटें फेंकीं।
जब नदी में कपड़े धो रहीं कुछ महिलाओं ने साड़ी फेंक कर उन्हें बचाने की कोशिश की तो, गुंडों ने उन पर भी पथराव किया। इस कारण नदी में डूबने से अभाविप के तीन कार्यकर्ताओं की मृत्यु हो गई। यही नहीं, कुछ कॉलेजों में तो एसएफआई के गुंडे दूसरे संगठनों के उम्मीदवारों को नामांकन भी नहीं करने देते। चूंकि अधिकांश कॉलेज शिक्षक भी माकपा समर्थक या माकपा द्वारा नियुक्त हैं, इसलिए एसएफआई के गुंडों को इसमें जरा भी परेशानी नहीं होती।

हिंसक स्थितियों के कारण उसे धारा के विपरीत तैरना पड़ता है। अभाविप ने अपने राष्ट्रवादी मिशन को पूरे जोश के साथ आगे बढ़ाने का संकल्प लिया है, चाहे उसका परिणाम कुछ भी हो। अभाविप कार्यकर्ता जानते हैं कि उनका जीवन खतरे में है। वे बखूबी जानते हैं कि यह एक लंबी लड़ाई है, फिर भी वे कानून और हथियार अपने हाथ में लिए बिना हिंसा से लड़ते हैं।
कैंपस राजनीति एसएफआई कार्यकर्ताओं के लिए एक तरह से व्यावहारिक राजनीति में स्नातक होने के लिए एक प्रशिक्षण मैदान है। यह उनके लिए पंचायत, नगरपालिका और नगर निगम जैसे स्थानीय स्वशासी निकायों में पार्षद बनने और विधायकों या सांसदों के पदों तक पहुंचने का एक अवसर भी होता है। जहां अभाविप कार्यकर्ता संगठनात्मक कार्य के साथ-साथ पढ़ाई भी करते हैं, वहीं एसएफआई कार्यकर्ताओं को इसकी कोई परवाह नहीं होती।
एसएफआई कार्यकर्ताओं पर प्रवेश, परीक्षा उत्तीर्ण करने, यहां तक कि पीएचडी हासिल करने और सरकारी नौकरी पाने के लिए लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में हेरफेर करने पर कई आरोप लगे हैं। उन पर कॉलेज में शिक्षक नियुक्त करने के भी कई आरोप लगे हैं। ऐसे कुछ मामले तो अदालतों में आने के बाद ही सामने आए।
एसएफआई की चुनावी हिंसा और मतदान में धांधली के खिलाफ अभाविप और केएसयू कार्यकर्ता शिकायत करते रहे हैं। दरअसल, माकपा जब सत्ता में होती है, तो यह धांधली बढ़ जाती है।
एसएफआई कार्यकर्ताओं को अपने पार्टी कैडर से शारीरिक ही नहीं, राजनीतिक और कानूनी समर्थन भी मिलता है। केरल में माकपा या तो सत्ता में होती है या प्रमुख विपक्षी दल। इसलिए एसएफआई को हमेशा राजनीतिक संरक्षण मिलता रहता है और वह ऐसे मामलों को पुलिस तक पहुंचने ही नहीं देती। माकपा जब सत्ता में रहती है, तो एसएफआई की हिंसा पर पुलिस नरम रुख अपनाती है, जब माकपा विपक्ष में रहती है, तो एसएफआई और माकपा पुलिस को डराने के लिए बाहुबल का प्रयोग करती है।
राज्य में अभाविप एकमात्र ऐसा संगठन है, जिसने आपातकाल की ज्यादतियों के खिलाफ पूरी ताकत से लड़ाई लड़ी थी। उस समय एसएफआई ने (अपनी मातृ संस्था माकपा की तरह) आपातकाल के खिलाफ उंगली तक नहीं हिलाई थी। लेकिन उसने यह यह झूठ जरूर प्रचारित किया कि एसएफआई ने आपातकाल विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया।
सच तो यह है कि पुलिस भी इनके राजनीतिक प्रतिशोध से डरती है। कुछ वर्ष पहले एसएफआई के लोगों ने पलक्कड़ के विक्टोरिया कॉलेज में महिला प्रिंसिपल की सेवानिवृत्ति के दिन उनके लिए एक प्रतीकात्मक कब्र बनाई थी। वहीं, एर्नाकुलम के महाराजा कॉलेज में प्रिंसिपल की कुर्सी छीन कर कॉलेज के गेट पर आग के हवाले कर दी थी।
केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय में अभाविप की जीत को राज्य में मौजूद उपरोक्त परिदृश्य के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। अभाविप राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए विपरीत परिस्थितियों से लड़ रही है। इन हिंसक स्थितियों के कारण उसे धारा के विपरीत तैरना पड़ता है। अभाविप ने अपने राष्ट्रवादी मिशन को पूरे जोश के साथ आगे बढ़ाने का संकल्प लिया है, चाहे उसका परिणाम कुछ भी हो। अभाविप कार्यकर्ता जानते हैं कि उनका जीवन खतरे में है। वे बखूबी जानते हैं कि यह एक लंबी लड़ाई है, फिर भी वे कानून और हथियार अपने हाथ में लिए बिना हिंसा से लड़ते हैं।
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