अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के केंद्र सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने वैध करार दे दिया है। लेकिन विपक्ष अक्सर जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को लेकर एक झूठ फैलाता है कि जब अनुच्छेद 370 केंद्रीय मंत्रिमंडल में पेश किया गया था तो उस दौरान उन्होंने इसका विरोध नहीं किया था। ये पूरी तरह से निराधारत तथ्य है। हकीकत तो ये है कि 370 को लेकर मंत्रिमंडल में कोई चर्चा तो दूर की बात है, इसे वास्तव में कभी वहां पेश ही नहीं किया गया। ऐसे विपक्ष का डॉ मुखर्जी पर लगाया आरोप पूरी तरह से निराधार हो जाता है।
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिर्फ संविधान सभा और अंतरिम सरकार का हिस्सा थे। इस सरकार में वो रसद आपूर्ति मंत्री थे और इसी के चलते केवल जम्मू कश्मीर के विषय में डिफेंस कमेटी की मीटिंग में शामिल हुए थे। खास बात ये है कि साल 1947 में ये बैठकें हुई थी और उस दौरान अनुच्छेद 370 जैसा कुछ था ही नहीं। असल, 370 से जुड़ा जो ड्राफ्ट था वो शुरुआत में केवल पंडित नेहरू, शेख अब्दुल्ला, आयंगर और मौलाना आजाद के ही चारों तरफ घूम रहा था। अचानक से इसकी खबर सरदार पटेल को लग गई। उन्हें ये आभास हो गया कि 370 की आड़ में कश्मीर में अलगाववाद को बढ़ावा देने की कोशिशें की जा रही हैं, तो उन्होंने तुरंत इसके प्रावधानों में बदलाव करवा दिया।
खास बात ये है कि 370 को लागू करने के लिए नेहरु के साथ मिलकर शेख अब्दुल्ला ने एक चाल चली और अनुच्छेद 370 के बारे में संविधान सभा को 16 अक्टूबर 1949 को बताया और इसके ठीक अगले दिन इसे सभा में पेश कर दिया गया। ये सब अचानक से किया गया, जिससे इस पर चर्चा करने का किसी को समय ही नहीं मिल पाया।
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दूसरी बात ये कि अक्टूबर 1949 तक संविधान का निर्माण लगभग पूरा हो चुका था और उसमें केवल प्रस्तावना जैसे जरूरी काम शेष रह गए थे। सबसे अहम बात ये कि संविधान के जिस मूल ड्राफ्ट को डॉ बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने तैयार किया था उसमें 370 का जिक्र तक नहीं किया गया था। ऐसे में संविधान सभा के किसी भी सदस्य को इसके बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी।
सरदार पटेल के विरोध के बावजूद नेहरू ने 370 का किया था समर्थन
देश में अनुच्छेद 370 को लागू करने के लिए शेख अब्दुल्ला ने सबसे पहले मांग की थी। उन्होंने इस मामले में 3 जनवरी 1949 को सरदार पटेल को एक पत्र लिखा और कहा कि पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर के मुस्लिमों को पूर्ण स्वतंत्रता देने की पेशकश की है। पाकिस्तान का कहना है कि उसके हस्तक्षेप के बिना भी हम जम्मू कश्मीर का संविधान बना सकते हैं। शेख ने चालाकी दिखाते हुए सरदार पटेल को अपने जाल में फंसाना चाहा और कहा कि भारत को पाकिस्तान के इस प्रस्ताव को बेअसर करने के लिए जम्मू कश्मीर को संवैधानिक स्वतंत्रता देने की घोषणा करनी चाहिए।
सरदार पटेल शेख अब्दुल्ला की चाल को समझ गए और इसे मानने से साफ इंकार कर दिया। जब सरदार के सामने अब्दुल्ला की दाल नहीं गली तो उन्होंने यही प्रस्ताव पंडित नेहरू के सामने रखा। इस पर जब नेहरू ने आपात बैठक बुलाई तो उसमें भी सरदार पटेल ने इसका विरोध किया।
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सरदार पटेल के अड़ंगे से परेशान शेख अब्दुल्ला ने 14 अप्रैल 1949 को स्कॉट्समैन के पत्रकार माइकल डेविडसन को इंटरव्यू देकर जम्मू कश्मीर के विभाजन की मांग की। इससे परेशान नेहरू ने सरदार पटेल पर शेख की बातों को मानने का दबाव बनाया। लेकिन जब सरदार असरदार बने रहे तो मई 1949 में पंडित नेहरू जम्मू कश्मीर चले गए और शेख अब्दुल्ला के साथ कई सारे समझौतो कर डाले। इसकी भनक तक सरदार पटेल को नहीं लगी। उन्होंने इसके प्रावधानों को तैयार करने की जिम्मेदारी आयंगर को दी।
सरदार पटेल को भनक लगे बिना ही तैयार कर दिया 370 का ड्राफ्ट
अनुच्छेद 370 को लेकर ड्राफ्ट तैयार करने की जिम्मेदारी गोपालस्वामी आयंगर औऱ शेख अब्दुल्ला ने मिलकर तैयार किया। लेकिन जब इसके बारे में सरदार बल्लभ भाई पटेल को बताया गया तो उन्होंने इसे मानने से साफ इंकार कर दिया। सरदार पटेल के हस्तक्षेप के बाद इसका एक नया मसौदा तैयार किया गया, लेकिन उसे शेख ने मानने से इंकार कर दिया। इसके बाद आयंगर ने कुछ परिवर्तनों के साथ इसे फिर से शेख को भेजा, लेकिन इस बार सरदार पटेल ने इसे मानने से इंकार कर दिया।
इसके बाद इसमें आखिरी परिवर्तन 17 अक्टूबर को 1749 को संविधान सभा में पेश किया गया। शेख ने इसका विरोध किया और आयंगर को पत्र लिखकर संविधान सभा से इस्तीफा देने की धमकी दी। हालांकि, सरदार पटेल के आगे किसी की नहीं चली। 370 के पहले ड्राफ्ट में सारी शक्तियां शेख के पास थीं, जिसे बदलवाकर पटेल ने शेख अब्दुल्ला की अंतरिम सरकार की जगह यूनियन ऑफ इंडिया जोड़ दिया। सरदार पटेल का यही वो कदम था, जिसके कारण अनुच्छेद 370 हटाया जा सका। हालांकि, एक बार वर्ष 1964 में भी इसे हटाने का प्रयास किया गया था, लेकिन वो सफल नही हो सका।
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सरदार पटेल के सपने को प्रधानमंत्री मोदी ने किया साकार
सरदार पटेल अनुच्छेद 370 को लागू करने के पक्ष में नहीं थे, वो एक देश, एक विधान और एक प्रधान की डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के कथन को मानते थे। एक बार उसने वी शंकर ने पूछा था कि आखिर उन्होंने बचे हुए अनुच्छेद 370 को क्यों बचा रहने दिया तो उन्होंने बहुत ही अच्छा जबाव दिया। सरदार पटेल ने कहा था कि न तो गोपालस्वामी आयंगर और न ही शेख अब्दुल्ला स्थायी हैं। ये भारत सरकार की ताकत और हिम्मत पर भविष्य निर्भर करेगा। अगर हमें अपनी ताकत पर भरोसा नहीं होगा तो हम एक राष्ट्र कभी नहीं बन पाएंगे। आखिरकार सरदार पटेल के कथन को सत्य साबित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 अगस्त 2019 को इसे हटा ही दिया। मोदी सरकार के इश फैसले पर अब देश के सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी है।
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