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‘‘विश्व विजय के लिए हिंदू समाज संगठित होकर करे कार्य’’- सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले

आज हिंदू धर्म, हिंदू समाज, इतिहास और संस्कृति अर्थात हिंदुत्व पुनरुत्थान के दौर से गुजर रहा है। हिंदुओं में एक नई जागृति दिख रही है। साथ ही दुनिया भर में हिंदुओं और अन्य मतों का पालन करने वालों के बीच हिंदुत्व के बारे में जानने की जिज्ञासा बढ़ी है। वैश्विक मंच पर हिंदू की पहचान सशक्त हो रही है।

by WEB DESK and दत्तात्रेय होसबाले, सरकार्यवाह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
Dec 3, 2023, 06:28 am IST
in विश्व, संघ
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले

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‘भारत आत्मज्ञान प्राप्ति की धरती है। हममें से प्रत्येक को अपने सामाजिक और निजी कार्यक्षेत्र में उन लोगों से जुड़ना है, जो हिंदुत्व के कर्तव्य पथ पर काम करना चाहते हैं। इसलिए अब समय है संगठन का, हिंदुओं के जागने का और आध्यात्मिकता के जरिए विश्व पर विजय प्राप्त करने का।’ वर्ल्ड हिंदू कांग्रेस में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले द्वारा उद्घाटन और समापन सत्र में दिए उद्बोधन के संपादित अंश इस प्रकार हैं

विश्व हिंदू कांग्रेस की तीसरी वर्षगांठ पर हम सब उपस्थित हुए हैं। जिस दिन इस समारोह की शुरुआत हो रही है, वह दिन बहुत महत्वपूर्ण है। पूज्य गुरू तेगबहादुर देव जी का बलिदान दिवस है, जिन्होंने 24 नवंबर,1675 को हिंदू धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता और हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया। आज हिंदू धर्म, हिंदू समाज, इतिहास और संस्कृति अर्थात हिंदुत्व पुनरुत्थान के दौर से गुजर रहा है। हिंदुओं में एक नई जागृति दिख रही है। साथ ही दुनिया भर में हिंदुओं और अन्य मतों का पालन करने वालों के बीच हिंदुत्व के बारे में जानने की जिज्ञासा बढ़ी है। वैश्विक मंच पर हिंदू की पहचान सशक्त हो रही है। उदाहरण के लिए दुनिया भर में लोग योग अपना रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया है। आयुर्वेद, संस्कृत आदि की ओर भी रुचि बढ़ रही है। लोग श्रीमद्भगवत गीता और कई ग्रन्थों का अध्ययन कर रहे हैं और इसके बारे में लिख रहे हैं।

कुछ साल पहले अमरीका की न्यूज वीक पत्रिका के एक लेख में कहा गया कि हम सभी हिंदू हैं। यह बात उन लोगों के मुख से निकली है, जिन्होंने हिंदू धर्म में जन्म तो नहीं लिया, परन्तु हिंदू धर्म, प्रथाओं और दर्शन का पालन करने का निर्णय किया है। गोल्डबर्ग की किताब ‘अमेरिकन वेदास’ ने पश्चिम में हिंदू धर्म के प्रति सम्मान और बढ़ा दिया है। एक समय था, जब हिंदुओं और हिंदू संस्कृति को उपहास, अपमान, उपेक्षा और तिरस्कार झेलना पड़ता था; हिंदुओं को कड़ी आलोचना और घृणा का सामना करना पड़ता था, जो अब भी पूर्णत: समाप्त नहीं हुआ है। फिर भी, हम अगले चरण की ओर बढ़ चले हैं। अब समय है संगठन का।

आज दुनिया भर में हिंदू संगठन, संघ और विभिन्न संप्रदायों के मंदिर, संघ और न्यास बनाए जा रहे हैं। हमारा इतिहास दर्शाता है कि हमारी संस्कृति में संगठन की परंपरा रही है। परन्तु काल की धारा में वह कहीं खो गई। हम सब जानते हैं कि संगठन में ही शक्ति है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारत सेवाश्रम संघ, रामकृष्ण मिशन समेत अन्य संगठन हिंदू समुदाय के पुनरुत्थान के लिए हिंदू समाज को संगठित करने का कार्य कर रहे हैं। संगठन का उद्देश्य है समर्थ और सशक्त बनना। स्वयं की रक्षा करना; जो सदाचारी हैं, पर कमजोर, उसकी रक्षा करना, बुरी प्रवृत्ति वालों पर अंकुश रखना आदि।

विद्या विवादाय धनं मदाय, शक्ति: परेषां परिपीडनाय।
खलस्य साधो विपरीतमेतद्, ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय॥

अर्थात दुर्जन की विद्या विवाद के लिये, धन उन्माद के लिये, और शक्ति दूसरों का दमन करने के लिये होती है। वहीं सज्जन इसी को ज्ञान, दान और दूसरों के रक्षण के लिये उपयोग करते हैं।

मानव समाज के लिए उपयोगी संगठन की सफलता उससे जुड़े व्यक्तियों की विशेषताओं और भूमिका पर निर्भर करती, जिसमें उत्कृष्ट योजना, सामूहिक कार्य-भावना, कड़ी मेहनत, समर्पित प्रयास शामिल हैं। संगठन की सफलता अन्य संगठनों के साथ बनाए समन्वय, सहयोग और अंतर्संवाद और परस्पर सूचनाओं के आदान-प्रदान पर भी निर्भर करती है। इसका अभाव होने पर पुनरुत्थान की गति मंद पड़ती है और एकता भी कमजोर पड़ती है।

हिंदू संगठन मजबूत बनें। इस दिशा में हमारे संगठनों को आपस में जानकारी साझा करने, समन्वय और सहयोग विकसित करने पर ध्यान देना होगा। संसाधनों का बेहतर प्रबंधन करना होगा और सफल होने के लिए किसी और की नकल करने के बजाय नए विचार प्रस्तुत करने होंगे।

दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में भाषा, संप्रदाय, मत, जाति और उपजाति के आधार पर गठित कई हिंदू संगठन और संस्थाएं कार्य कर रही हैं। पर विडंबना यह है कि वे एक-दूसरे पर ही प्रहार कर रहे हैं और अपनी सारी ऊर्जा अपने सीमित उद्देश्य पर ही खर्च कर दे रहे हैं। इस प्रक्रिया में हिंदू कहीं खो जाता है। अत: हिंदू पहचान को सशक्त करने के वृहत्तर लक्ष्य के लिए आवश्यक है कि विविध हिंदू संगठनों के बीच समन्वय की भावना पल्लवित हो।

जब हम संगठन बनाएं तो हम इस बात का ध्यान रखें कि हमारा संगठनात्मक व्यवहार, हमारा स्वप्न, हमारी गतिविधियां अन्य संगठनों के साथ परस्पर मेल बनाएं और अपने मतभेदों को दूर करके एक लक्ष्य की ओर बढ़ें, अन्यथा हम संगठन तो बना लेंगे, पर एकजुट होने के बजाय बिखरने लगेंगे और प्रभावहीन हो जाएंगे। विश्व में ऐसे अनेक उदाहरण देखे गए हैं, जब वहां विविध संगठनों के परस्पर मतभेदों, स्वार्थ, अहंकार और सामूहिक एकजुटता के अभाव ने अलगाव को जन्म दिया और वे अपने लक्ष्य से भटक गए। हिंदुओं के पुनरुत्थान का मार्ग प्रशस्त करने के लिए जरूरी है कि हम कुछ खास बिन्दुओं पर ध्यान दें।

हमारे सामने खड़ी चुनौतियों में से एक है भारतीय राजनीति का पंथ निरपेक्ष सिद्धान्त। हालांकि, इसका प्रभाव कमजोर पड़ा है, फिर भी इसका अस्तित्व अब भी बना है और समस्याएं पैदा करता है। हमारी संस्थाओं और संगठनों को तथाकथित पंथनिरपेक्षता, जो एक छद्म सिद्धान्त है, ने ऐसे प्रभावित किया कि हमारे त्योहारों का मूल कलेवर ही बदल गया है। आज दिवाली, गणेशपूजा और अन्य हिंदू त्योहारों को हिंदू परंपराओं से उलट पश्चिमी शैली में मनाने का चलन बढ़ गया है, जो हमें हमारी संस्कृति से दूर ले जा रहा है।

हमारे सामने राष्ट्र विरोधी गतिविधियां, कई देशों में हिंदुओं का कन्वर्जन, मानवाधिकारों का हनन और हिंदू धर्म, इतिहास और संस्कृति के विद्वानों के अभाव जैसी चुनौतियां भी हैं। हिंदू अध्ययन विभाग, गीता, वेदों और भारतीय भाषाओं के अध्ययन का क्षेत्र भी बहुत प्रभावी ढंग से काम नहीं कर रहा। पश्चिमी दुनिया के कई विश्वविद्यालयों में दक्षिण अफ्रीका की भाषा जुलू के विभाग हैं, लेकिन भारतीय भाषा के विभागों की कमी है।

हमारे देश में भाषा, मत, विचारधारा आदि के आधार पर संगठन तो बनते रहे हैं, पर वे एक समन्वित भाव दर्शाने के बजाय विभाजन की ओर बढ़ जाते हैं। हमारे यहां दुर्भाग्य से सांप्रदायिक-पांथिक नेतृत्व के अंतर्गत बनाए गए संगठन भी हैं, जो अपने समूह की रक्षा के नाम पर दूसरे दल के लोगों के साथ संवाद या संपर्क नहीं रखते, लेकिन अपने समूह में सदस्यों की संख्या बढ़ाने के लिए दूसरे दल के लोगों को अपना शिकार बनाने से परहेज नहीं करते। इससे वैर बढ़ता है। इसलिए हम संगठित हो रहे हैं लेकिन हम एकजुट नहीं हो रहे, बल्कि बंट रहे हैं। यह विरोधाभास पूरी दुनिया में दिखाई दे रहा है।

हमारी एक विडंबना यह भी है कि हम अपनी नई पीढ़ी के लिए हिंदू धर्म, संस्कृति और इतिहास के बारे में सही और पूरी सामग्री उपलब्ध कराने और उनके प्रश्नों का उपयुक्त उत्तर देने में विफल हो रहे हैं। अमरीकी समाज में 9/11 की आतंकी घटना के बाद पंथ और अपनी संस्कृति के बारे में जानने की जिज्ञासा बढ़ी, जिससे किताबों की दुकानों में इस्लाम, ईसाइयत सहित कई अन्य मत-पंथों से संबंधित पुस्तकों का अंबार लग गया।

दुख की बात है कि उन पुस्तकों के बीच हिंदू धर्म, संस्कृति और इतिहास संबंधी किताबें उपलब्ध नहीं थीं। हमने यह भी देखा है कि कई देशों में हिंदुओं को अपने रीति-रिवाजों और मान्यताओं के पालन में समस्याओं और बाधाओं का सामना करना पड़ता है। एक और गंभीर बिंदु है सांस्कृतिक परामर्श का अभाव। आज इसे उपयुक्त तरीके से कार्यान्वित करने की जरूरत बढ़ गई है। अत: हिंदू संगठनों को युवाओं, विशेषकर बच्चों यानी नई पीढ़ी को हिंदू संस्कृंति और दर्शन से अवगत कराना होगा।

इसके अलावा हमारे सामने राष्ट्र विरोधी गतिविधियां, कई देशों में हिंदुओं का कन्वर्जन, मानवाधिकारों का हनन और हिंदू धर्म, इतिहास और संस्कृति के विद्वानों के अभाव जैसी चुनौतियां भी हैं। हिंदू अध्ययन विभाग, गीता, वेदों और भारतीय भाषाओं के अध्ययन का क्षेत्र भी बहुत प्रभावी ढंग से काम नहीं कर रहा। पश्चिमी दुनिया के कई विश्वविद्यालयों में दक्षिण अफ्रीका की भाषा जुलू के विभाग हैं, लेकिन भारतीय भाषा के विभागों की कमी है।

भारत के राजनीतिक परिदृश्य के कारण मीडिया में भारतीय भाषा का प्रवेश बढ़ा है, साथ ही कई देशों में हमारी राजनीतिक आवाज भी प्रभावी रूप से मुखर हो रही है। आज समय की मांग है कि हिंदू संगठन मजबूत बनें। इस दिशा में हमारे संगठनों को आपस में जानकारी साझा करने, समन्वय और सहयोग विकसित करने पर ध्यान देना होगा। संसाधनों का बेहतर प्रबंधन करना होगा और सफल होने के लिए किसी और की नकल करने के बजाय नए विचार प्रस्तुत करने होंगे।

Topics: हिंदू संस्कृंति और दर्शनसंप्रदायजाति और उपजातिसंघHindu culture and philosophyहिंदू संगठनsectहिंदू धर्मbeliefHindu organizationscaste and sub-casteमानव समाजhuman societyHindu religionइतिहास और संस्कृति
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