।। सतगुरु नानक प्रगटिया, मिटी धुंध जग चाणन होआ ।।
वर्ष 1469, शरद ऋतु का आरंभ, कार्तिक पूर्णिमा का शुभ मुहुर्त, कलिकाल के इस खंड में धरती पर प्रकट हुए बाबा नानक, जिन्हें समूचा समाज श्री गुरु नानक देव जी महाराज के रूप में जानता है। सर्वज्ञानी गुरु नानक देव जी ने दुनिया के समक्ष स्वयं अपना परिचय क्या रखा- आइए इसे जानें।
श्री रामचंद्र के वंशज गुरु नानक देव
सूरज कुल ते रघु भया, रघवंस होआ राम ।
राम चन्द को दोई सुत, लवी कुसू तिह नाम ।
एह हमाते बड़े हैं, जुगह जुगह अवतार ।
इन्हीं के घर उपजू नानक कल अवतार ।।
गुरु नानक देव जी ने अपना ये परिचय कहीं और नहीं, बल्कि इस्लाम के केंद्रस्थल मदीना में दिया। देशाटन करते-करते गुरु नानक देव जब मक्का के बाद मदीना पहुंचे तो वहां पीर बहाव दीन को गुरु नानक ने अपना यही परिचय दिया।
श्री गुरु नानक ने उस समय की भाषा में कहा –
सूर्य कुल में रघु नाम के राजा हुए, रघु के वंश में हुए राम, रामचंद्र जी के दो पुत्र थे कुश और लव। वे राम हमारे ऐसे पूर्वज हैं, जो युग युग में अवतार धारण करते रहे हैं, इन्हीं के वंश में मैं नानक कलिकाल में अवतरित हुआ हूं। ये बात पटियाला की पंजाबी यूनिवर्सिटी के डॉ कुलवन्त सिंह की सम्पादित मक्के मदीने की गोशटि में पृष्ठ संख्या 253 पर लिखित है। पवित्र दशम ग्रन्थ के एक दोहे में भी ये बात आई है।
श्री गुरु नानक देव जी के सच्चे अनुयायी जानते हैं कि गुरु नानक देव जी ने स्वयं को रघुकुल के श्री राम का वंशज ही कहा। ये बात इससे भी जुड़ती है कि अपने जीवन काल में तीर्थाटन करते हुए श्री गुरु नानक देव जी अयोध्या में अपने पूर्वजों का स्थान भी देखने पहुंचे।
विश्व हिंदू परिषद के कार्याध्यक्ष एडवोकेट आलोक कुमार कहते हैं “श्री राम हमारे जीवन के फोकल प्वाइंट हैं, गुरु ग्रंथ साहिब में भी बार-बार राम शब्द आता है, आजकल कुछ लोगों ने नई व्याख्या शुरू की, वो कहते हैं कि ये राम अयोध्या के राम नहीं थे। मैं इस व्याख्या को सही नहीं मानता, मैं इसे भरमाने भटकाने वाली मानता हूं। राम और राम का स्मरण ये सब गुरुओं ने किया है, इस बारे में कोई शंका पैदा करना उचित नहीं होगा।”
गुरु नानक देव जी के अयोध्या प्रवास का कालखंड वर्ष 1510 – 1511 के बीच का है और यहां ये बात ध्यान देने योग्य है कि तब तक भारत में मुगल आक्रांता बाबर का आक्रमण नहीं हुआ था। उस समयावधि में अयोध्या पुरी में श्री गुरु नानक देव जी ने सरयू किनारे अच्छा समय बिताया। यही बात चार वर्ष पूर्व सर्वोच्च न्यायलय के निर्णय का आधार भी बनी, जिसमें श्रीरामलला की जन्मभूमि को ही सर्वोच्च माना गया। गुरु नानक देव जी के छोटे पुत्र श्री लक्ष्मी चंद जी के आठवें वंशधार बाबा सुखवासी राम बेदी जी ने अपनी रचना ‘गुरु नानक वंश प्रकाश’ (1000-1001) में लिखा –
चले तहां ते सतिगुरु, मर्दाना ले संगि ।
आए अउध पुरी बिखे, सरजू नदि जिह सुंगि ।
सरजू जल मंजन कीआ, दरसन राम निहार ।
आत्म रूप अनंत प्रभ, चले मगन हितु घार ।
अर्थात श्री गुरु नानक देव मर्दाना के संग चलकर अयोध्या पुरी आ पहुंचे, जिस पुरी के संग सरयू नदी बहती है। सरयू नदी के जल से गुरु नानक देव ने स्नान किया और श्री राम जन्मभूमि मंदिर के निरनिवेश दर्शन किए।
आईटीबीपी के रिटायर्ड जज अटॉर्नी जनरल गुरलाल सिंह विर्क कहते हैं “श्री गुरु नानक पातशाह अपनी उदासियों के दौरान अयोध्या भी गए थे। सरयू नदी में स्नान उपरांत उन्होंने श्री राम मंदिर में दर्शन किए, वहां कीर्तन किया और अपने प्रवचन किए। उनके शब्द हैं कि ।। सबसे ऊंच राम परिगास जिस पासियो जप नानक दास ।। कि वो कहते थे कि सबसे ऊंचा है राम का प्रकाश, राम की स्तुति सबसे ऊंची है और यही करके नानक दास जो हैं उन्हीं की स्तुति करते हैं।”
भाई बाला जी वाली साखी के पृष्ठ संख्या 398 पर इसकी चर्चा है कि जब श्री गुरु नानक देव जी अयोध्या जी पहुंचे तो उन्होंने भाई बाला को कहा “भाई बाला इह नगरी श्री रामचंद्र जी की है ऐथे श्री रामचंद्र जी ने अवतार धार के चरित्र कीते हन। सो देख के ही चलीए। ” ( पन्ना सं : 398 )
भाई मनी सिंह की पोथी जनम साखी के अनुसार अयोध्या पहुंचने पर गुरु नानक देव ने मर्दाना से कहा “मर्दानया यह अयोध्या नगरी श्री रामचंद्र जी की है सो चल इसका दर्शन करिए।”
(पृ सं 213, पोथी जन्म साखी, पत्थर छापा लाहौर संस्करण 1947 विक्रम)
मनोहरदास मेहरबान की रचना सचु खण्ड पोथी के अनुसार गुरु नानक जब अयोध्या में थे, तो एक भक्त ने उनसे मुक्ति का मार्ग पूछा, इस पर श्री गुरु नानक ने कहा –
जगन होम पुन तप पूजा देह दुखी नित दूख सहै ।
राम नाम बिनु मुकति न पावसि, मुकति नामि गुरुमुखि लहै ।
राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा ।।
(भैरउ महला 1, पृष्ठ 1127)
यानी मनुष्य यज्ञ-होम, दान-पुण्य, तप पूजा इत्यादि कर्म जितने कर ले, उसकी देह कष्ट ही पाती है और वह नित्य अनेक दुख सहता है। रामनाम के बिना कोई भी मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता। यह मुक्ति सच्चे गुरु के अभिमुख रहते हुए रामनाम के स्मरण से होगी। रामनाम के स्मरण के बिना जगत में जनम लेना निष्फल रहता है। तो यदि श्री गुरु नानक देव जी इन शब्दों को अनुयायी आज्ञा स्वरुप में देखते हैं, तो ये स्पष्ट है कि गुरु नानक देव जी भी प्रभु श्री रामनाम की ज्योति जगाने के काम में जीवन पर्यन्त लगे रहे होंगे।
‘गुरु नानक वंश प्रकाश’ में आए शब्दों ‘दरसन राम निहार’ में आए राम का अर्थ श्री राम जन्मभूमि मंदिर में प्रतिष्ठित राम मूर्ति से ही है। भाई मनी सिंह की पोथी जनम साखी, भाई बाले वाली जनम साखी और गुरु नानक वंश प्रकाश में आए कई प्रसंग ये बात स्पष्ट करते हैं कि अयोध्या पुरी और श्री राम के संबंध में गुरु नानक देव जी की भावना प्रबल थी। गुरु नानक श्रीराम की लीला से जुड़े स्थलों पर जाकर स्वयं अनुभूति करना ही चाहते थे।
अयोध्या का गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड
अयोध्या पुरी में दो एतिहासिक गुरुद्वारे भी स्पष्ट करते हैं कि श्रीराम जन्मभूमि के संबंध में गुरुओं की क्या दृष्टि रही। इन गुरुद्वारों के दर्शन करने वाले बताते हैं कि यहां गुरुओं की निशानियों के साथ निहंगों के शस्त्र आज भी देखे जा सकते हैं। ‘गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड’ पावन सरयू के उस प्राचीन तट पर स्थित है, जहां प्रथम गुरु नानकदेव, नवम गुरु तेगबहादुर एवं दशम गुरु गोविंद सिंह समय-समय पर आए। सन 1668 में नवम गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी के आगमन को जानकार श्री राम जन्मभूमि की मुक्ति के प्रयासों से जोड़कर ही देखते हैं। सन 1672 में गुरु गोविंद सिंह मात्र छह वर्ष की अवस्था में मां गुजरीदेवी एवं मामा कृपाल सिंह के साथ यहां पहुंचे। दूसरा ऐतिहासिक गुरुद्वारा हनुमानगढ़ी मंदिर के समीप नज़र बाग में स्थित है। नज़र बाग का अर्थ हुआ उपहार में दिया उपवन। वास्तव में उस वक्त अयोध्या के राजा मान सिंह गुरु नानक देव जी के सम्मान में उपवन उपहार स्वरूप दिया, जहां इस समय एक बड़ा गुरुद्वारा है। विश्व हिंदू परिषद के कार्याध्यक्ष एडवोकेट आलोक कुमार का मानना है कि “अयोध्या का गुरुद्वारा, हम सबने दर्शन किए, मैं तो समझता हूं कि जो राम मंदिर का दर्शन करेगा और गुरुद्वारे में नहीं जाएगा उसका अयोध्या तीर्थ भ्रमण अधूरा रह जाएगा क्योंकि वो गुरुद्वारा ऐसा है जिसमें तीन गुरु गए। स्वयं गुरु नानक देव, गुरु तेग बहादुर, गुरु गोबिंद सिंह।”
श्री राम जन्मभूमि के लिए पहली एफआईआर निहंगों पर
‘रामजन्मभूमि मुक्ति संघर्ष का इतिहास’ पुस्तक के अनुसार राम मंदिर के लिए संघर्षरत निर्मोही अखाड़ा के साधु वैष्णवदास ने गुरु गोविंद सिंह से मदद मांगी थी और निहंगों की सहायता से वैष्णवदास ने थोड़ी सफलता भी पाई। नवम्बर 30, 1858 को अवध के थानेदार ने एक एफआईआर दर्ज की थी, जिसमें लिखा कि 25 सिख राम जन्मभूमि में घुस आए और हवन किया। इन सिखों ने वहाँ दीवारों पर ‘राम-राम’ लिखा, कई धार्मिक प्रक्रियाएँ पूरी की व पूजा-पाठ भी किया। आज हिंदू और सिखों में विभेद पैदा करने का षड्यंत्र नाकाम इसीलिए तो हो रहा है, क्योंकि बड़ा तथ्य यही है कि श्री राम जन्मभूमि के लिए सबसे पहली एफआईआर हिंदू नहीं, बल्कि सिखों के विरुद्ध हुई।यह बताता है कि आंदोलन सिर्फ़ हिन्दुओं का नहीं था बल्कि पूरा भारत इससे जुड़ा था। निहंग सिखों की कहानी गुरु गोविंद सिंह और उनके पुत्रों के बलिदान तक जुड़ती है। अयोध्या और रामजन्मभूमि का सिख परंपरा से सीधा सरोकार है, ये सभी घटनाएं और गुरुओं का यहां प्रवास ये बात स्पष्ट करते हैं।
लव की नगरी, गुरु नानक की चिंता
प्रभू श्री राम और अपने वंश के पति गुरु नानक देव के मन में कैसा भाव था, इसे एक और घटना से समझिए।
कालांतर में वे बाला और मर्दाना के साथ लाहौर पहुंचे। इस नगरी को भगवान श्रीराम के पुत्र लव ने बसाया था किंतु जो गुरु नानक देव के काल में मुस्लिम शासकों के अधीन था, उसके कसाई पूरे में आए तो वहां सवा पहर दिन चढ़े तक मुसलमानों द्वारा गौ वध होता देख द्रवित हो उठे और अपने दोनों साथियों से बोले
” भाई बाला ते मरदानिआं, असौं लऊ दी नगरी जाण के एथे आए सां, पर एथे मलेछां दा जो राज है, इस वास्ते सवा पहर तीकर जहर-कहर वसदा रहिआ है। सो असीं दसवां अवतार धार के मलेछां दा नास करांगे। ”
(भाई मनी सिंह कृत पोथी जनम साखी, पृष्ठ 265)
मुगल आक्रांताओं की बर्बरता को कैसे समाप्त करना है, श्री गुरु नानक देव की दिव्य दृष्टि उस समय भी आने वाला समय देख रही थी और उन्होने अपने दसवें अवतार की बात की। दसवां अवतार यानी दशम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी, जो गुरु नानक देव और स्वयं को श्री राम के वंशज ही बताते थे। मुगलों से मुकाबले के लिए उन्होंने ही खालसा की सर्जना की थी। गुरु गोबिंद सिंह की आत्मचरित बाणी ‘बचित्र नाटक’ में उन्होंने गुरु नानक देव को श्रीराम के बड़े पुत्र कुश का वंशज और स्वयं को श्रीराम के छोटे पुत्र लव का वंशज बताया है। स्पष्ट है कि दोनो गुरु अयोध्या की स्मृतियों से जुड़े थे और श्रीराम से उनका गहरा आध्यात्मिक सम्बंध भी था।
श्री राम, गुरु नानक और न्यायालय
चार वर्ष पूर्व अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर राम लला विराजमान के अधिकार को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने जो निर्णय दिया, उसकी पृष्ठ संख्या 991 से 995 में गुरु नानक देव की अयोध्या यात्रा की चर्चा है। इसी याात्रा के आधार पर न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि बाबर के आक्रमण से वर्षों पहले भी अयोध्या एक तीर्थस्थल था और वहाँ पूजा-पाठ होता था। सिख इतिहासकार और सिख साहित्य के बड़े विद्वान राजिंदर सिंह ने जनम साखियों के आधार पर ये सिद्ध किया कि गुरु नानक देव 1510 में प्रभु श्रीराम का दर्शन करने अयोध्या आए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट कहा कि गुरु नानक देव द्वारा वहाँ जाकर श्रीराम का दर्शन करना हिन्दुओं की आस्था और विश्वास पर मुहर लगाता है। कोर्ट ने माना कि बाबर के आक्रमण से पहले के कई धार्मिक दस्तावेज हैं, जो यहां श्री राम जन्मभूमि की बात के पक्ष में जाते हैं। इसलिए भगवान राम के जन्मस्थान के संबंध में वाल्मीकि रामायण और स्कंद पुराण सहित धर्मग्रंथों और पवित्र धार्मिक के आधार पर हिंदुओं की जो आस्था और विश्वास है, उसे आधारहीन नहीं ठहराया जा सकता।
आईटीबीपी के रिटायर्ड जज अटॉर्नी जनरल गुरलाल सिंह विर्क स्पष्ट करते हैं “जब श्रीराम जन्मभूमि का निर्णय हुआ तो सुप्रीम कोर्ट ने गुरु नानक की यात्रा का भी उसमें वर्णन किया। आज हम कोई भी कानून देखते हैं तो जो सिख हैं चाहे हिंदू मैरिज एक्ट हो, हिंदू एडॉप्शन एंड मैनेटेनेंस एक्ट हो, चाहे हिंदू एक्ट हो, हर एक हिंदू लॉ सिखों पर उसी तरीके से लागू है।”
इलाहबाद उच्च न्यायालय के निर्णय में भी ‘जनम साखी’ का जिक्र करते हुए इस घटना की तरफ़ ध्यान दिलाया था। राजिंदर सिंह ने ‘आदि साखी’, ‘पुरातन जन्म साखी’, ‘पोढ़ी जन्म साखी’ और ‘गुरु नानक वंश प्रकाश’ जैसे पवित्र पुस्तकों के आधार पर अपनी बात रखी।
श्री राम और श्री ग्रंथ साहिब
गुरु परंपरा के कुछ विद्वान मानते हैं कि गुरुओं की बाणी का प्रथम संकलन पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव जी ने वर्ष 1604 में जारी किया, जिसमें कुल शब्दों की संख्या 3 लाख 98 हजार से अधिक है। इसमें सर्वाधिक 9 हजार 288 बार दोहराया गया शब्द है हरि। श्री राम का नाम इसमें 2 हजार 533 बार आया। ऐसे ही प्रभू, गोपाल मुरारी, गोविंद, नारायण, परमात्मा, ठाकुर, परमेश्वर, जगदीश जैसे अन्य शब्द कई बार आए। इससे भी श्रीराम और उनके जन्मस्थान को लेकर गुरुओं की दृष्टि और बलवती दिखती है। मुस्लिम आक्रांताओं के अत्याचारों के अगुवा बाबर के विरुद्ध आवाज़ उठाने वालों में प्रथम गुरु नानक देव भी थे। गुरु नानक देव जी ने तो बाबर के लिए पाप की सेना और शैतान की सेना जैसे शब्द भी कहे। सिख साहित्य के मूल स्रोत स्वयं बताते हैं कि मुस्लिम आक्रांताओं ने भारत में बड़े बड़े मंदिर तोड़कर मस्जिदें बनवाईं। इन्हीं में श्री राम जन्मभूमि का मंदिर भी था, जिनके वंश में श्री गुरु नानक देव जी, श्री गुरु तेग बहादुर और गुरु गोबिंद सिंह जी ने जन्म लिया।
आईटीबीपी के रिटायर्ड जज अटॉर्नी जनरल गुरलाल सिंह विर्क स्पष्ट करते हैं कि “अगर हम गुरु ग्रंथ साहिब जी का अध्ययन करते हैं तो हम पाएंगे कि श्री राम शब्द उसके अंदर ढाई हजार बार से अधिक प्रयोग हुआ है। इसका मतलब क्या होता है। और वहां हरि का शब्द भी हुआ, मोहन का भी हुआ, मुरारी का भी हुआ।”
विश्व हिंदू परिषद के कार्याध्यक्ष एडवोकेट आलोक कुमार जी गुरु नानक की वाणी को मंत्र भी कहते हैं। आलोक जी बताते हैं “ गुरु नानक ने कहा- नाम जपो, कीरत करो, वंड छको। ये एक एक शब्द एक एक मंत्र है। नाम जप, ये भक्ति का मंत्र है और ये भक्ति निरंकार से है। कीरत करो, ये पुरुषार्थ का है, ना जंगल में ना घर में खाली बैठना। परिश्रम करना। और स्वयं गुरु नानक देव अपने बाद के वर्षों में करतारपुर में रह करके स्वयं खेती करते थे। इसीलिए पुरुषार्थ का संदेश है। तीसरा- वंड छको, गीता में कहा है ना, जो केवल अपने लिए भोजन पकाता है, वो पापी है। हम भोजन कर रहे हैं, हमारा पड़ोसी और सामने का झुग्गी वाला खाली बैठा है। ऐसा तो ठीक नहीं है, ऐसे तो समाज नहीं चलता। प्रत्येक व्यक्ति में ब्रह्म है तो उसकी भूख की चिंता हर उस व्यक्ति को करनी है, जिसको भगवान ने समर्था दी है। और ये वंड छको, इसको आजतक सिख अपने आचरण में लाते हैं, पूरे विश्व में कहीं भी कोई किसी भी समय किसी भी गुरुद्वारे में जाए, स्वागत होता है, भोजन की, लंगर की व्यवस्था होती है।”
गुरु वाणी के बाद सर्वाधिक प्रामाणिक मानी जाने वाली भाई गुरदास की रचना की प्रथम 19 पौड़ियों में कहा गया कि भारतवर्ष की सांस्कृतिक चेतना के मूल स्रोत वेद की प्रतिष्ठा न्यून होने लगी, नासमझी के कारण लोग वेदों की निंदा करने लगे और भूल गए कि वेद परमेश्वर का दिया ऐसा सौदा है जो संसार सागर के पार उतार देता है।
बेदी कुल के गुरु नानक
गुरु नानक देव जी का जन्म बेदी परिवार में हुआ, जिनका मूल भगवान श्रीराम के कुल सूर्य वंश से जुड़ता है। बेदी का अर्थ है ‘वेदों के ज्ञाता’। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के अनुसार सभी गुरुओं का संबंध सूर्य वंश और भगवान श्रीराम से है। पवित्र ‘दशम ग्रंथ’ के भाग ‘बिचित्र नाटक’ में गुरु गोबिंद सिंह जी ने भगवान श्रीराम के वंश का पूरा लेखा जोखा दिया है। गुरु नानक देव जी जहां बेदी कुल से थे, वहीं गुरु गोबिंद सिंह जी सोढ़ी कुल से थे। इन दोनों कुलों का संबंध श्रीराम के दोनो पुत्रों लव और कुश से है। गुरु गोबिंद सिंह की अपनी वाणी का सार ये है कि लव ने लवपुर वर्तमान का लाहौर नगरी बसाई, और कुश ने कुशपुर, जिसे आज कसूर कहते हैं। कालांतर में दोनो के वंशजों में युद्ध हुए, स्थितियां बदलीं, और कुश वंशी अंत में काशी आकर बसे और वेदों के महाज्ञाता होने के नाते बेदी कहलाए। इनसे वेदों का ज्ञान सुनकर लव वंशी सोढी राजाओं ने समूचा राजपाट बेदियों को समर्पित कर दिया। तब कुश वंशीय बेदी प्रमुख ने लव वंशीय सोढ़ी राज़ा को वरदान दिया कि जब भविष्य में कुश वंशीय बेदियों में नानक जी का अवतार होगा, तब वो लव वंशीय सोढ़ी वंश को फिर से उच्च अवस्था प्रदान करेंगे। गुरुओं की समूची श्रंखला में यही हुआ भी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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