राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 98 वें स्थापना दिवस के अवसर पर नागपुर के रेशिम बाग मैदान में समारोह आयोजित हुआ। इस अवसर पर सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने कई विषयों पर अपनी बात रखी। उन्होंने समाज की समरसता पर बात की। कहा कि समाज की स्थायी एकता अपनेपन से निकलती है, स्वार्थ के सौदों से नहीं। डॉ भागवत ने हिंसा भड़काने वाली टूलकिट्स से भी सचेत रहने को कहा।
मुख्य उद्बोधन में सरसंघचालक श्री मोहन भागवत ने कहा कि हमारा समाज बहुत बड़ा है । बहुत विविधताओं से भरा है । कालक्रम में कुछ विदेश की कुछ आक्रामक परंपराएँ भी हमारे देश में प्रवेश कर गईं, फिर भी हमारा समाज इन्हीं तीन बातों के आधार पर एक समाज बनकर रहा । इसलिए हम जब एकता की चर्चा करते हैं, तब हमें यह ध्यान रखना होगा कि यह एकता किसी लेन-देन के कारण नहीं बनेगी । जबरदस्ती बनाई तो बार बार बिगड़ेगी । आज के वातावरण में समाज में कलह फैलाने के चले हुए प्रयासों को देखकर बहुत लोग स्वाभाविक रूप से चिंतित हैं, मिलते रहते हैं । अपने आपको हिंदू कहलाने वाले सज्जन भी मिलते हैं, जिनको उनकी पूजा के कारण मुसलमान, ईसाई कहा जाता है, ऐसे भी लोग मिलते हैं । उनकी मान्यता है कि फितना, फसाद व कितान को छोड़कर सुलह, सलामती व अमन पर चलना ही श्रेष्ठता है । इन चर्चाओं में ध्यान रखने की पहली बात यही है कि, संयोग से एक भूमि में एकत्र आए विभिन्न समुदायों के एक होने की बात नहीं है । हम समान पूर्वजों के वंशज, एक मातृभूमि की संताने, एक संस्कृति के विरासतदार, परस्पर एकता को भूल गए । हमारे उस मूल एकत्व को समझकर उसी के आधार पर हमें फिर जुड़ जाना है ।
अपनेपन की दृष्टि अपनाकर व्यवहार प्रारंभ करें
क्या हमारी आपस में कोई समस्या नहीं है ? क्या हमारी अपने विकास के लिए कोई आवश्यकता, अपेक्षा नहीं है ? क्या पाने विकास के लिए हमारी आपस में स्पर्धा नहीं चलती है ? क्या हममें से सब लोग मन, वचन, कर्म से इन एकात्मता के सूत्रों को मानकर व्यवहार करते हैं ? सब जानते हैं कि सबका ऐसा नहीं है । परंतु ऐसा हो यह इच्छा रखनेवालों को यह कहकर नहीं चलेगा, कि पहले समस्याएँ समाप्त हों, पहले प्रश्नों के समाधान हों, फिर हम एकता की बातों का ध्यान करेंगे । हम सभी को यह समझना पड़ेगा कि हम अपनेपन की दृष्टि अपनाकर व्यवहार प्रारंभ करें तो उसी में से समस्याओं के समाधान भी निकलेंगे । इधर उधर घटनेवाली घटनाओं से विचलित न होते हुए, शांति व संयम से काम लेना पड़ेगा । समस्याएं वास्तविक हैं परन्तु वह केवल एक जाति, वर्ग के लिए ही नहीं हैं । उनको सुलझाने के प्रयासों के साथ-साथ आत्मीयता व एकता की मानसिकता भी बनानी पड़ेगी । विक्टिमहुड की मानसिकता, एक दूसरे को अविश्वास के दृष्टि से ही देखना अथवा राजनीतिक वर्चस्व के दांवपेचों से अलग होकर चलना पड़ेगा । ऐसे कार्यों में राजनीति बाधक ही बनती है । यह कोई शरणागति या मजबूरी नहीं है । युद्धरत दो पक्षों का सीज फायर भी नहीं है । भारत की सभी विविधताओं में परस्पर एकता के जो सूत्र विद्यमान हैं, उन सूत्रों के अपनेपन की यह पुकार है ।
भारत के संविधान का भी 75 वा वर्ष चल रहा है
उन्होंने कहा कि अपने स्वतन्त्र भारत के संविधान का भी 75 वा वर्ष चल रहा है । वह संविधान हमको यही दिशा दिखाता है। पूज्य डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी के द्वारा संविधान प्रदत्त करते समय संविधान सभा में जो दो भाषण दिए गए उनका ध्यान करेंगे तो यही सार समझ में आता है। यह यकायक होनेवाला काम नहीं है । पुराने संघर्षों की कटु स्मृतियाँ अभी भी सामूहिक मन में हैं । विभाजन की दारुण विभीषिका का घाव बहुत गहरा है । उसकी क्रिया प्रतिक्रिया के चलते जो क्षोभ मन में पैदा होता है उसकी रंजिश वाणी व व्यवहार में प्रकट होती है । एक दूसरे की बस्तियों में घर न मिल पाने से लेकर तो एक दूसरे के बारे में ऊँच नीच का, तिरस्कार का व्यवहार होने तक के कटु अनुभव हैं । हिंसा, दंगे, प्रताड़ना आदि की घटनाओं का दोष एक दूसरे पर मढ़ा जाने के प्रसंग भी घटते हैं । कुछ लोगों का करना पूरे समाज का करना है, ऐसे मानकर वाणी और विचार छोड़े जाते हैं । आह्वान, प्रति आह्वान दिए जाते हैं, जो उकसावे का काम करते हैं ।
हिंसा भड़काने वाली “टूल किट्स” सक्रिय हो जाती हैं
हमको लड़ाकर देश को तोड़ना चाहनेवाली ताकतें भी इसका पूरा लाभ उठाती हैं । देखते-देखते छोटी सी घटना को बड़ा रूप देकर प्रचारित किया जाता है । देश विदेश से चिंता व्यक्त करनेवाले और चेतावनी देनेवाले वक्तव्य करवाए जाते हैं। हिंसा भड़काने वाली “टूल किट्स” सक्रिय हो जाती हैं और परस्पर अविश्वास और द्वेष को और बढ़ाया जाता है । समाज में सामरस्य चाहनेवाले सभी को इन घातक खेलों की माया से बचना पड़ेगा। इन सभी समस्याओं का निदान धीरे धीरे ही निकलेगा । उसके लिए देश में विश्वास का तथा सौहार्द का वातावरण बनना यह पूर्वशर्त है । अपने मन को स्थिर रखकर विश्वास रखते हुए परस्पर संवाद बढ़े, परस्पर समझदारी बढ़े, परस्पर श्रद्धाओं का सम्मान उत्पन्न हो, और सबका मेलजोल बढ़ता चले, इस प्रकार अपने मन, वचन, कर्म रखकर चलना पड़ेगा । प्रचार अथवा धारणाओं से नहीं, वस्तु स्थिति से काम लेना पड़ेगा। धैर्यपूर्वक, संयम और सहनशीलता के साथ, अपने वाणी की तथा कृति की अतिवादिता, क्रोध तथा भय को छोड़कर दृढ़ता पूर्वक, संकल्पबद्ध होकर, लंबे समय तक सतत प्रयास करते रहने की अनिवार्यता है । शुद्ध मन से किए हुए सत् संकल्प तभी पूर्ण होते हैं ।
कानून सुव्यवस्था तथा संविधान का पालन करें
हर हालत में, कितना भी उकसावा हो, कानून सुव्यवस्था, नागरिक अनुशासन तथा संविधान का पालन करके ही चलना अनिवार्य है । स्वतंत्र देश में यही व्यवहार देशभक्ति की अभिव्यक्ति माना जाता है । माध्यमों का उपयोग करके किए जानेवाले भड़काऊ अप-प्रचार में तथा उसके फलस्वरूप पैदा होने वाली आरोप प्रत्यारोप की प्रतिस्पर्धा में न फसें, माध्यमों का उपयोग समाज में, सत्य व आत्मीयता का प्रसार करने के लिए हो । हिंसा व गुंडागर्दी का सही उपाय संगठित बल सम्पन्न समाज का कानून व सुव्यवस्था की रक्षा में पहल करते हुए शासन-प्रशासन को उचित सहयोग देना यही है ।
आने वाले वर्ष 2024 के प्रारंभिक दिनों में लोकसभा के चुनाव हैं । चुनावी दाँव पेचों में भावनाओं को भड़काकर मतों की फसल काटने के प्रयास अपेक्षित नहीं हैं, परंतु होते रहते हैं । समाज को विभाजित करनेवाली इन बातों से हम बचें । मतदान करना हर नागरिक का कर्तव्य है । उसका अवश्य पालन करें । देश की एकात्मता, अखंडता, अस्मिता तथा विकास के मुद्दों पर विचार करते हुए अपना मत दें ।
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