चीन ने इस बार भी 19वें एशियाई खेलों के लिए भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश की तीन वुशु खिलाड़ियों को नियमित वीजा की जगह नत्थी वीजा जारी किया था। भारत की नीति है कि वह नत्थी वीजा को स्वीकार नहीं करता है। इस कारण न्येमन वांग्सु, ओनिलू टेगा और मेपुंग लाम्गु एशियाई खेलों में भाग नहीं ले सकीं।
खेल को राजनीति का उपकरण बनाना शीतयुद्ध की देन माना जाता है। चीन अभी भी उसी युग में जी रहा है। चीन ने इस बार भी 19वें एशियाई खेलों के लिए भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश की तीन वुशु खिलाड़ियों को नियमित वीजा की जगह नत्थी वीजा जारी किया था। भारत की नीति है कि वह नत्थी वीजा को स्वीकार नहीं करता है। इस कारण न्येमन वांग्सु, ओनिलू टेगा और मेपुंग लाम्गु एशियाई खेलों में भाग नहीं ले सकीं। इन खिलाड़ियों को चीन द्वारा अंतिम क्षणों में विमान में सवार होने से रोके जाने के विरोध में केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी एशियाई खेलों के संदर्भ में होने वाली अपनी चीन की यात्रा रद्द कर दी थी।
रोचक बात यह है कि इस वर्ष 8 मई को ही चीन के प्रीमियर ली कियांग ने कहा था कि चीन खेलों के राजनीतिकरण का विरोध करने के लिए अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) के साथ काम करना चाहता है। हालांकि तब संदर्भ यूक्रेन पर हमले के मद्देनजर रूस के एथलीटों को बाहर करने की खेल संस्था की मांग का था।
चीन की कुलिता
जून 1949 में माओत्से तुंग ने सीसीपी की स्थापना की 28वीं वर्षगांठ पर अपने भाषण ‘आन पीपल्स डेमोक्रेटिक डिक्टेटरशिप’ में तीन सिद्धांतों की घोषणा की थी। पहला सिद्धांत था- एक तरफ झुकना अर्थात् सोवियत संघ के नेतृत्व वाले समाजवादी देशों के साथ रहना। दूसरा, मेहमानों को बुलाने से पहले घर की सफाई कर लें। इसका मतलब था कि चीन की कम्युनिस्ट हुकूमत उन सभी संधियों और समझौतों को अस्वीकार कर देगी, जिन पर पिछली सरकारों ने दूसरे देशों के साथ हस्ताक्षर किए थे।
तीसरा सिद्धांत था- नई शुरुआत, जिसका तात्पर्य यह था कि कम्युनिस्ट चीन किसी पुराने सिद्धांत को नहीं मानेगा। आज का चीन भी 1949 में ही अटका हुआ है। चीन में दिसंबर 2018 में जासूसी के आरोप में कनाडा की आइस हॉकी टीम के दो खिलाड़ियों माइकल कोवरिग और माइकल स्पावर को हिरासत में लिया गया था। असली कहानी यह थी कि चीनी स्वामित्व वाली हुआवेई के कार्यकारी मेंग वानझोउ को अमेरिका के अनुरोध पर वैंकूवर में हिरासत में लिया गया था। कुछ दिन बाद चीन ने कनाडा के खिलाड़ियों को गिरफ्तारकर लिया। दरअसल, चीन खेलों को राजनीति का सिर्फ एक अन्य तरीका मानता है।
इसी वर्ष जुलाई में आठ वुशु (मार्शल आर्ट) खिलाड़ियों और दल में शामिल चार अधिकारियों को चीन द्वारा चेंग्दू में आयोजित वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स में भाग लेने के लिए जाना था। इस दल में न्येमन वांग्सु, ओनिलू टेगा और मेपुंग लाम्गू भी शामिल थीं। लेकिन उस समय भी चीन की ओर से इन खिलाड़ियों को वीजा देने में अनावश्यक देरी की गई। बाद में उन्हें नत्थी वीजा जारी किया गया, वह भी उनके रवाना होने से कुछ घंटे पहले। इससे नाराज भारत ने 12 सदस्यीय दल को ही चीन नहीं भेजा था। हालांकि वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स की अन्य 11 स्पर्धाओं में भारत की ओर से 227 खिलाड़ियों एवं एथलीटों ने भाग लिया था।
चीन ने पहली बार 2005 में अरुणाचल के लोगों को नत्थी वीजा जारी किया था, जबकि जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के लिए 2009 में। तब से चीन खासतौर से अरुणाचल प्रदेश के नागरिकों, अधिकारियों और खिलाड़ियों के साथ भेदभावपूर्ण रवैया अपनाता रहा है। इसी तरह, 2011 में भारतीय भारोत्तोलन महासंघ के एक अधिकारी और एक खिलाड़ी को ग्रांड प्रिक्स आयोजन में शामिल होने के लिए चीन जाना था। दोनों अरुणाचल प्रदेश के थे। चीन ने उनके लिए नत्थी वीजा जारी किया। नतीजा, वे ग्रांड प्रिक्स स्पर्धा में शामिल नहीं हो पाए थे। इसके अलावा, चीन ने 2013 में अरुणाचल प्रदेश की दो महिला तीरंदाजों और 2016 में भारतीय बैडमिंटन टीम के प्रबंधक बमांग टैगो को भी वीजा नहीं दिया था।
2016 में चीन ने फुझोउ में थाईहॉट चीन ओपन बैडमिंटन चैम्पियनशिप का आयोजन किया था, जिसके लिए टैगो को भारतीय बैडमिंटन टीम का प्रबंधक नियुक्त किया गया था। उस समय चीन ने टैगो को छोड़कर सभी 12 भारतीय खिलाड़ियों के लिए वीजा जारी किया था। हालांकि टैगो ने भी चीनी दूतावास में कई दिन पहले दस्तावेज जमा करा दिए थे। उस समय टैगो भारतीय टीम के प्रबंध होने के साथ-साथ अरुणाचल प्रदेश बैडमिंटन एसोसिएशन के सचिव भी थे। पिछले वर्ष भी चीन ने बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक के समय यही बदमाशी की थी। तब उसने गलवान में तैनात पीएलए के एक सैनिक कर्नल की फबाओ को मशाल वाहक बनाया था, जिसने जून 2020 में गलवान घाटी में भारतीय सुरक्षा बलों पर हमला करने की कोशिश की थी, लेकिन भारतीय सैनिकों ने उसे पकड़ लिया था। भारतीय सैनिकों के साथ हुई इस झड़प में चीन के 40 से अधिक सैनिक मारे गए थे। फबाओ चोटिल भी हुआ था। चीन की इस हरकत के विरोध में भारत ने शीतकालीन ओलंपिक का बहिष्कार किया था।
चीन भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा जताता है और यहां के लोगों को भारत का नागरिक नहीं मानता है। वह जम्मू-कश्मीर को भी विवादित क्षेत्र बताता है। इसलिए वह अरुणाचल और जम्मू-कश्मीर के निवासियों के लिए नत्थी वीजा जारी करता है, चाहे वे सरकारी अधिकारी ही क्यों न हों। नत्थी वीजा नियमित वीजा से अलग होता है। वास्तव में यह कागज का एक टुकड़ा होता है, जिसे पासपोर्ट में स्टेप्लर या पिन से नत्थी कर दिया जाता है। हालांकि कागज के इस टुकड़े पर साफ-साफ लिखा होता है कि कोई व्यक्ति किस उद्देश्य से चीन जा रहा है। लेकिन पासपोर्ट पर इमिग्रेशन अधिकारी कोई मुहर नहीं लगाता है। इस तरह, चीन पासपोर्ट पर अपनी आधिकारिक मुहर लगाने से बच जाता है।
नत्थी वीजा क्यों?
दरअसल, चीन भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा जताता है और यहां के लोगों को भारत का नागरिक नहीं मानता है। साथ ही, वह जम्मू-कश्मीर को भी विवादित क्षेत्र बताता है। इसलिए वह अरुणाचल और जम्मू-कश्मीर के निवासियों के लिए नत्थी वीजा जारी करता है, चाहे वे सरकारी अधिकारी ही क्यों न हों। नत्थी वीजा नियमित वीजा से अलग होता है। वास्तव में यह कागज का एक टुकड़ा होता है, जिसे पासपोर्ट में स्टेप्लर या पिन से नत्थी कर दिया जाता है। हालांकि कागज के इस टुकड़े पर साफ-साफ लिखा होता है कि कोई व्यक्ति किस उद्देश्य से चीन जा रहा है। लेकिन पासपोर्ट पर इमिग्रेशन अधिकारी कोई मुहर नहीं लगाता है। इस तरह, चीन पासपोर्ट पर अपनी आधिकारिक मुहर लगाने से बच जाता है।
दूसरे, नत्थी वीजा न तो देश के नागरिक के लिए और न ही देश की सुरक्षा की दृष्टि से ठीक होता है, क्योंकि वापस देश लौटते समय नागरिक के पासपोर्ट के साथ नत्थी किया जाने वाला एंट्री और एग्जिट वीजा फाड़ दिया जाता है। इससे व्यक्ति के पासपोर्ट में उसकी यात्रा का कोई ब्योरा दर्ज ही नहीं हो पाता है। यानी नत्थी वीजा पर कौन, कब और कहां गया, इसका कोई प्रमाण ही नहीं रहता है। इसलिए भारत ही नहीं, दूसरे देश भी नत्थी वीजा को मान्यता नहीं देते हैं।
पासपोर्ट से व्यक्ति की पहचान तो होती ही है, यह उसकी नागरिकता का भी प्रमाण है। इसके अलावा, पासपोर्ट धारक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पार स्वतंत्र और कानूनी सुरक्षा में कहीं भी आवाजाही कर सकता है। चीन यदि अरुणाचल प्रदेश के निवासियों को नियमित वीजा जारी करता है, तो इसका मतलब यह होता है कि वह यह मानता है कि वे भारत के नागरिक हैं। सच तो यह है कि किसी भी देश की सीमारेखा को लांघना और उस पर विवाद खड़ा करना चीन की आदत है, चाहे वह भारत हो, नेपाल हो, म्यांमार हो या दक्षिण चीन सागर से लगते क्षेत्र।
चीन का कहना –
पूर्वोत्तर के किसी व्यक्ति को वीजा देना भारतीय संप्रभुता को स्वीकार करना होगा, जो इसकी आधिकारिक स्थिति के विपरीत है। इसके बाद भारत सरकार ने अधिकारियों का चीन दौरा रद्द कर दिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री की पहल पर ‘फॉरेन एक्सपोजर इनिशिएटिव’ कार्यक्रम के अंतर्गत भारत के 107 नौकरशाहों को बदलती नीतिगत आवश्यकताओं से अवगत रहने के लिए चीन और आसियान देशों में भेजा जाना था। इसमें रोपियंगा भी शामिल थे।
चीनी शरारत कब-कब?
- 2013 में द न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट में एक कश्मीरी नागरिक के हवाले से बताया गया कि चीनी दूतावास ने उसे नत्थी वीजा जारी किया था। सितंबर 2009 में जब वह हवाईअड्डे पर पहुंचा तो उसे चीन जाने की अनुमति नहीं दी गई, क्योंकि भारत सरकार नत्थी वीजा को मान्यता नहीं देती है।
- 2010 में चीन ने उत्तरी क्षेत्र के सैन्य कमांडर ले.जन. बी.एस. जसवाल को इसलिए वीजा नहीं दिया था, क्योंकि वह ‘संवेदनशील’ जम्मू-कश्मीर में तैनात थे।
- जुलाई 2011 में चीन ने क्वान्गझू में आयोजित एशियाई कराटे चैम्पियनशिप में भाग लेने के लिए अरुणाचल प्रदेश के 5 खिलाड़ियों को नत्थी वीजा जारी किया।
- 2013 में अरुणाचल की दो महिला तीरंदाजों मसेलो मिहू और सोरांग युमी को यूथ वर्ल्ड आर्चरी चैम्पियनशिप में भाग लेना था, लेकिन नत्थी वीजा मिलने के कारण वे चीन नहीं जा सकीं।
पूर्व विदेश सचिव विजय गोखले अपनी किताब ‘आफ्टर थ्येनआनमन: द राइज आफ चाइना’ में लिखते हैं, ‘‘चीन की सरकारी मीडिया ने 2005 के बाद से अरुणाचल प्रदेश को ‘दक्षिण तिब्बत’ बताना शुरू किया। उसने (चीन) 2006 के आखिर में अरुणाचल प्रदेश में सेवारत एक भारतीय अधिकारी को वीजा देने से इनकार कर अपनी मंशा का संकेत दिया। इसके बाद, उसने अरुणाचल प्रदेश (साथ ही जम्मू-कश्मीर) के सभी भारतीयों को नत्थी वीजा जारी करने का चलन शुरू किया।’’
बात नवंबर 2006 की है। उस समय हू जिंताओ चीन के राष्ट्रपति थे। जिंताओ के भारत दौरे से पहले भारत में चीनी राजदूत सुन युक्सी ने अरुणाचल प्रदेश पर दावा करते हुए समूचे इलाके को चीनी क्षेत्र बताया था। उस समय संप्रग-1 सत्ता में थी और प्रणब मुखर्जी विदेश मंत्री थे, जिन्होंने स्पष्ट किया था कि अरुणाचल भारत का अभिन्न अंग है। लेकिन चीन यहीं पर नहीं रुका। उसने अरुणाचल प्रदेश के अधिकारी सी. रोपियंगा को वीजा देने से इनकार कर दिया।
चीन का कहना था कि पूर्वोत्तर के किसी व्यक्ति को वीजा देना भारतीय संप्रभुता को स्वीकार करना होगा, जो इसकी आधिकारिक स्थिति के विपरीत है। इसके बाद भारत सरकार ने अधिकारियों का चीन दौरा रद्द कर दिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री की पहल पर ‘फॉरेन एक्सपोजर इनिशिएटिव’ कार्यक्रम के अंतर्गत भारत के 107 नौकरशाहों को बदलती नीतिगत आवश्यकताओं से अवगत रहने के लिए चीन और आसियान देशों में भेजा जाना था। इसमें रोपियंगा भी शामिल थे।
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