उत्तराखंड में मुस्लिम गुज्जर समुदाय में तब्लीगी जमात का दखल बढ़ता जा रहा है। अब यह समुदाय जमीन जिहाद में शामिल हो चुका है। इस समुदाय के लोग जगह-जगह जमीन पर कब्जा कर रहे हैं।
उत्तराखंड के जंगलों में कट्टरवादी तत्वों की घुसपैठ हो चुकी है। ऐसा कहा जा रहा है कि कभी जंगल के रखवाले माने जाने वाले मुस्लिम गुज्जर समुदाय में तब्लीगी जमात का दखल बढ़ता जा रहा है। अब यह समुदाय जमीन जिहाद में शामिल हो चुका है। इस समुदाय के लोग जगह-जगह जमीन पर कब्जा कर रहे हैं। ये लोग न सिर्फ सरकारी वन भूमि पर कब्जा कर रहे हैं, बल्कि हाथी, बाघ, तेंदुए जैसे दुर्लभ वन्यजीवों का शिकार भी कर रहे हैं।
कहा जाता है कि मुस्लिम गुज्जर पहले शाकाहारी थे, यह उनका संस्कार ही था। लेकिन अब उनकी नई पीढ़ी में जमातियों का प्रभाव देखा जा रहा है। इस समुदाय के युवा जमात में जाकर कट्टरपंथी बन रहे हैं। पहले इस समुदाय में बकरे की कुर्बानी तक नहीं होती थी, लेकिन जब से इनके यहां जमात के मौलानाओं का आना-जाना हुआ है, तब से इनके सोच में काफी बदलाव आ गया है। इनके मन में यह बात बैठा दी गई है कि तुम इस्लाम को मानने वाले यानी मुसलमान हो और तुम्हें यही जीवन जीना है। तभी से इनका सामाजिक परिवर्तन हो गया है।
हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तर प्रदेश के मुस्लिम गुज्जरों ने तब्लीगी जमात के साथ मिलकर एक योजना के तहत जंगलों में बसावट कर ली है। अनुमान है कि अब ऐसे परिवारों की संख्या 5,000 से अधिक हो चुकी है। ये लोग सरकारी खामियों का फायदा उठा कर जमीन पर कब्जा कर रहे हैं।ऐसे भी सबूत मिले हैं कि जमीन पर दावा करने के लिए महिलाएं पति बदलती रहीं और पति पत्नी बदलते रहे। इसके साथ ही उनके बच्चे भी अलग से जमीन पर दावा करने लगे।
जंगलों में इनके बच्चों को इस्लामिक शिक्षा देने के लिए मदरसे खोले जा रहे हैं। इन मदरसों में हाफिज, मौलाना बाहर से आकर डेरा डाल रहे हैं और वहां मजहबी तालीम दे रहे हैं।
पर यह तब हो रहा है जब कॉर्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व से निकालकर इन्हें एक बार दूसरी जगह बसाया जा चुका है। बता दें कि 1998 में एक सर्वेक्षण कराया गया था। इसमें 512 परिवार ही सामने आए थे। हर परिवार को एक हेक्टेयर जमीन और लगभग 4,50,000 रु. भी दिए गए थे, ताकि ये लोग अपने घर बना सकें और रोजी-रोटी कमा सकें। इसके बाद भी इन लोगों ने वन क्षेत्र को नहीं छोड़ा।
बताया जा रहा है कि इनमें से कई लोग अपना मकान छोड़कर शेष जमीन को उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के मुस्लिम गुज्जरों दस रु के स्टांप पर बेच कर पहाड़ों की तरफ अपने पशु लेकर चले गए और वहां सुरक्षित वन क्षेत्र में डेरे डाल कर बैठ गए। उनके पीछे-पीछे और राज्यों के मुस्लिम गुज्जर भी जंगलों में जा बसे।
ऐसा कहा जाता है कि हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तर प्रदेश के मुस्लिम गुज्जरों ने तब्लीगी जमात के साथ मिलकर एक योजना के तहत जंगलों में बसावट कर ली है। अनुमान है कि अब ऐसे परिवारों की संख्या 5,000 से अधिक हो चुकी है। ये लोग सरकारी खामियों का फायदा उठा कर जमीन पर कब्जा कर रहे हैं।ऐसे भी सबूत मिले हैं कि जमीन पर दावा करने के लिए महिलाएं पति बदलती रहीं और पति पत्नी बदलते रहे। इसके साथ ही उनके बच्चे भी अलग से जमीन पर दावा करने लगे।
वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार इस समय हजारों हेक्टेयर जमीन पर मुस्लिम गुज्जरों का कब्जा है। यह भी कहा जा रहा है कि इनकी आबादी 15,000 से ज्यादा है। वन विभाग को जीपीएस और सेटेलाइट चित्रों से इस बात के प्रमाण मिले हैं। एक रपट के अनुसार तराई सेंट्रल, तराई वेस्ट में करीब 5,000 हेक्टअर वन भूमि पर कब्जा कर मुस्लिम गुज्जर खेती कर रहे हैं।
बता दें कि मुस्लिम गुज्जरों को उत्तराखंड के 70 प्रतिशत वन क्षेत्र में घूमने और पशुओं को चराने का परमिट मिलता रहा है। कभी ये जंगल के रखवाले हुआ करते थे, किंतु अब ऐसे प्रमाण मिले हैं कि ये लोग बाघ की खाल, हड्डियों और हाथी दांत के लिए शिकार में लिप्त हैं।
हरिद्वार में जिला वन अधिकारी (डीएफओ) रह चुके आकाश वर्मा के कार्यकाल में एक मुस्लिम गुज्जर के घर से बाघ की खाल और हड्डियां जमीन में गड़ी हुई मिली थीं। इसी तरह तराई के आम पोखरा रेंज में गुलाम रसूल के घर से हाथी दांत बरामद हुआ था और आरोपी ने कबूल किया था कि उसने करंट लगा कर हाथी का शिकार किया था। एक अन्य गुज्जर मोहम्मद कासिम भी हाथी दांत की तस्करी में पकड़ा गया था।
ये गुज्जर उत्तराखंड की अंतरराष्ट्रीय सीमा तिब्बत-चीन सीमा तक पशु लेकर पहुंच रहे हैं। कुछ साल पहले वन अधिकारियों ने इनके गोविंद पशु विहार में जाने पर रोक लगा दी थी। वन अधिकारियों का कहना था कि हम यहां स्नो लेपर्ड, मोनाल, ब्रह्मकमल, भालू, कस्तूरी मृग के साथ-साथ देश की सीमा को संरक्षित और सुरक्षा देना चाहते हैं, लेकिन इसमें गुज्जर बाधक बन रहे हैं। बताया जाता है कि राजनीतिक हस्तक्षेप के बाद अब इनका फिर से वहां जाना शुरू हो गया है।
ऐसे एक या दो नहीं, दर्जनों मामले हैं, जिनमें मुस्लिम गुज्जर वन्य जीव-जंतुओं का शिकार करते पकड़े गए हैं। यही नहीं, ये लोग इमारती लकड़ी और दुर्लभ जड़ी-बूटियों की तस्करी में भी लिप्त पाए गए हैं। उल्लेखनीय है कि ये लोग तस्करी का सामान अंतरराष्ट्रीय वन्यजीव तस्करों तक पहुंचाने के रास्ते जानते हैं। यह भी पता चला है कि बहुत से मुस्लिम गुज्जर अब तेज धारदार हथियार और गैर-कानूनी शस्त्र भी रखते हैं, जिनका इस्तेमाल ये वन विभाग के कर्मचारियों के खिलाफ करते हैं।
ये गुज्जर उत्तराखंड की अंतरराष्ट्रीय सीमा तिब्बत-चीन सीमा तक पशु लेकर पहुंच रहे हैं। कुछ साल पहले वन अधिकारियों ने इनके गोविंद पशु विहार में जाने पर रोक लगा दी थी। वन अधिकारियों का कहना था कि हम यहां स्नो लेपर्ड, मोनाल, ब्रह्मकमल, भालू, कस्तूरी मृग के साथ-साथ देश की सीमा को संरक्षित और सुरक्षा देना चाहते हैं, लेकिन इसमें गड़रिए बाधक बन रहे हैं। बताया जाता है कि राजनीतिक हस्तक्षेप के बाद अब इनका फिर से वहां जाना शुरू हो गया है।
यही सबसे बड़ी समस्या है। यदि उत्तराखंड के वास्तविक स्वरूप को बचाना है, तो इस समस्या का हल ईमानदारी से ढूंढना होगा। इसमें देर न हो। पहले ही बहुत देर हो चुकी है।
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