विश्व का सबसे बड़ा संगठन होने के साथ एकमात्र ऐसा स्वैच्छिक संगठन है जो अपने सदस्यों को प्रशिक्षण देकर निपुण व निष्ठावान बनाता है। ऐसा इसलिए ताकि वे संघकार्य को दक्षता के साथ आग बढ़ा सकें, नये लोगों को संगठन से जोड़ सकें,
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा संगठन होने के साथ एकमात्र ऐसा स्वैच्छिक संगठन है जो अपने सदस्यों को प्रशिक्षण देकर निपुण व निष्ठावान बनाता है। ऐसा इसलिए ताकि वे संघकार्य को दक्षता के साथ आग बढ़ा सकें, नये लोगों को संगठन से जोड़ सकें, और स्वयं उस वैचारिक प्रतिबद्धता का परिचय आजीवन देते चलें जिसके कारण स्वयंसेक की पहचान है, देश-दुनिया में सम्मान है।
मई और जून माह में आमतौर पर संघ शिक्षा वर्ग लगते हैं। संघ ने व्यवस्था की दृष्टि से देश भर को 43 प्रांतों में विभाजित कर रखा है। इस वर्ष भी इन सभी 43 प्रांतों में मई माह के मध्य में अलग-अलग तिथियों पर शिक्षा वर्ग प्रारंभ हुए जो जून माह के मध्य तक पूर्ण हो जाएंगे। नागपुर में तृतीय वर्ष का 25 दिवसीय शिक्षा वर्ग 1 जून को समाप्त हुआ।
1927 से हुआ शुभारम्भ
कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देने का काम संघ में 1927 में शुरू हुआ। संघ के आद्य सरसंघचालक परम पूजनीय डॉक्टर साहब को लगा कि प्रशिक्षण द्वारा मजबूत कार्यकर्ता बनाये जायें, उन्हें संघ की ऐसी शिक्षा दी जाये कि वे संघ का मर्म आत्मसात कर सकें। वे समाज में संघ के आदर्श स्वरूप का चित्र अपने व्यवहार-आचरण से प्रस्तुत कर लोगों को नेतृत्व प्रदान करें। हिन्दू समाज ऐसे निस्वार्थ कार्यकर्ताओं के पीछे चलने में धन्यता माने और स्वयं भी वैसा बनने को लालायित हो।
इस प्रशिक्षण शिविर को ‘आफिसर्स ट्रेनिंग कैंप’ (ओटीसी) नाम दिया गया। पहले प्रशिक्षण शिविर में 17 स्वयंसेवक शमिल हुए। मोहिते के बाड़े में सुबह-शाम शारीरिक शिक्षण दिया जाता, दोपहर को बाड़े के तलघरों में वैचारिक-बौद्धिक शिक्षण चलता था। आगे के वर्षों में ये प्रशिक्षण नागपुर के साथ पुणे में भी होने लगा और इसकी अवधि 40 दिन की कर दी गयी। 1934 में महकर नामक एक तीसरे स्थान पर भी ओटीसी लगानी पड़ी थी। डॉक्टर जी के जीवन काल में पंजाब में भी ओटीसी लगनी शुरू हुई थी। अब तो पूरे देश में पचास या उससे भी अधिक स्थानों ये शिविर लगते हैं। यद्यपि बोलचाल में इन्हें अब भी ‘ओटीसी’ ही कह देते हैं। पर इनका अधिकृत नाम ‘संघ शिक्षा वर्ग’ है।
संघ शिक्षा वर्ग की दिनचर्या सुबह 04:30 से प्रारंभ होकर रात्रि 10 बजे तक चलती है। तमाम कार्यक्रम सद्संस्कार डालने वाले होते हैं। एक नये सुसंगठित भारत की, जो सर्वांगीण उन्नति हेतु प्रयत्नशील है, नींव रखी जाती है। देशभक्ति, चरित्र, अनुशासन रग-रग में बसाया जाता है। मैं नहीं, परिवार नहीं, जाति-बिरादरी नहीं, देश सर्वप्रथम। ‘ये देश मेरा, ये धरा मेरी, गगन मेरा, इसके लिए बलिदान हो प्रत्येक क्षण मेरा, प्रत्येक कण मेरा’ संघ का यह सार संदेश शिविरों द्वारा दृढ़ से दृढ़तर होता है।
तीन वर्षीय प्रशिक्षण
संघ शिक्षा वर्ग में तीन वर्षीय प्रशिक्षण चलते हैं – प्रथम वर्ष, द्वितीय वर्ष, तृतीय वर्ष। तृतीय वर्ष केवल नागपुर में होता है। शेष पूरे देश में संपन्न होते हैं। किसी को भी एकदम सरलता से इनमें प्रवेश नहीं मिलता। प्रथम वर्ष में प्रवेश हेतु साधारणत: जो शर्तें हैं, वे इस प्रकार हैं – यदि पढ़ता है तो कक्षा 10 की परीक्षा दी हो, अन्यथा आयु 15 वर्ष हो, शाखाटोली का सदस्य हो, प्राथमिक शिक्षावर्ग किया हुआ हो। ये प्राथमिक शिक्षा वर्ग 7 दिन का प्रशिक्षण है। पहले ये 10 दिन का होता था, आगे संभवत: 5 दिन में पूर्ण हो सकता है।
प्रथम और द्वितीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग फिलहाल 20 दिन के होते हैं। किन्तु प्रथम वर्ष अगले साल यानी 2024 से 15 दिनों का होगा, ये तय कर दिया गया है।
जैसा ऊपर बताया गया, 1947 तक ओटीसी 40 दिन के होते थे। वर्ष 1949 में जब संघ पर से प्रतिबंध हटा, तो एक कम अवधि के प्राथमिक प्रशिक्षण की आवश्यकता अनुभव की गयी, जिसे प्राप्त कर स्वयंसेवक नये स्थानों पर शाखा खोल सकें, संघ के कार्यक्रम कर सकें। तो 10 दिन की अवधि का प्राथमिक शिक्षा वर्ग प्रारंभ किया गया। इससे तेजी के साथ शाखा-विस्तार में मदद मिली। फिर दूसरे प्रतिबंध (1975-77) के बाद प्राथमिक वर्ग एक सप्ताह का कर दिया गया।
संघ के आद्य सरसंघचालक परम पूजनीय डॉक्टर साहब को लगा कि प्रशिक्षण द्वारा मजबूत कार्यकर्ता बनाये जायें, उन्हें संघ की ऐसी शिक्षा दी जाये कि वे संघ का मर्म आत्मसात कर सकें। वे समाज में संघ के आदर्श स्वरूप का चित्र अपने व्यवहार-आचरण से प्रस्तुत कर लोगों को नेतृत्व प्रदान करें। हिन्दू समाज ऐसे निस्वार्थ कार्यकर्ताओं के पीछे चलने में धन्यता माने और स्वयं भी वैसा बनने को लालायित हो।
अपना खर्च, अपना गणवेश
संघ के सभी शिविरों में स्वयंसेवक खुद के खर्च से गणवेश (यूनिफॉर्म) बनवाते हैं, शिविर में रहने-खाने का शुल्क देते हैं, आने-जाने का किराया वहन करते हैं, ये प्रामाणिकता तथा निस्वार्थता का संस्कार डालने के लिए आवश्यक है। इसने संघ को आर्थिक मजबूती भी प्रदान की हैं। अब शिविर के भोजन हेतु रोटियां परिवारों से आ जाती हैं, वर्ग में बस सब्जी बनानी पड़ती है। इस प्रकार हजारों परिवारों, जिनमें हिन्दू समाज के सभी जातिवर्ग के परिवार होते हैं, से संघ की निकटता बनती है। डॉ. हेडगेवार की कल्पना ‘संघ याने सम्पूर्ण हिन्दू समाज’ साकार होती चलती है।
दिनचर्या
संघ शिक्षा वर्ग की दिनचर्या सुबह 04:30 से प्रारंभ होकर रात्रि 10 बजे तक चलती है। प्रात:काल 2 घंटे 15 मिनट (सवा दो) घंटे तथा सायंकाल डेढ़ घंटे शारीरिक कार्यक्रम चलते हैं। दोपहर के भोजन के बाद एक घंटे का विश्राम मिलता है। कई बार रात्रि 9 बजे हल्का-फुल्का बौद्धिक कार्यक्रम (कोई सांस्कृतिक प्रस्तुति सहित) भी होता है। तमाम कार्यक्रम सद्संस्कार डालने वाले होते हैं। एक नये सुसंगठित भारत की, जो सर्वांगीण उन्नति हेतु प्रयत्नशील है, नींव रखी जाती है। देशभक्ति, चरित्र, अनुशासन रग-रग में बसाया जाता है। मैं नहीं, परिवार नहीं, जाति-बिरादरी नहीं, देश सर्वप्रथम। ‘ये देश मेरा, ये धरा मेरी, गगन मेरा, इसके लिए बलिदान हो प्रत्येक क्षण मेरा, प्रत्येक कण मेरा’ संघ का यह सार संदेश शिविरों द्वारा दृढ़ से दृढ़तर होता है।
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