शिखर सम्मेलन में बौद्ध दर्शन और विचार की मदद से समकालीन चुनौतियों से निबटने के बारे में चर्चा हुई। यह वैश्विक शिखर सम्मेलन बौद्ध मत में भारत की प्रासंगिकता और उसके महत्व को रेखांकित कर गया। यही नहीं, यह सम्मेलन भारत के अन्य देशों के साथ सांस्कृतिक एवं राजनयिक संबंधों को प्रगाढ़ बनाने और आगे बढ़ाने का एक माध्यम भी सिद्ध हुआ।
गत दिनों अप्रैल को नई दिल्ली स्थित अशोक होटल में प्रथम वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ। सम्मेलन में 30 से अधिक देशों के लगभग 200 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इसमें शांति, पर्यावरण, नैतिकता, स्वास्थ्य, सतत विकास और बौद्ध परिसंघ जैसे विषयों पर खुलकर चर्चा हुई। इस शिखर सम्मेलन में बौद्ध दर्शन और विचार की मदद से समकालीन चुनौतियों से निबटने के बारे में चर्चा हुई। यह वैश्विक शिखर सम्मेलन बौद्ध मत में भारत की प्रासंगिकता और उसके महत्व को रेखांकित कर गया। यही नहीं, यह सम्मेलन भारत के अन्य देशों के साथ सांस्कृतिक एवं राजनयिक संबंधों को प्रगाढ़ बनाने और आगे बढ़ाने का एक माध्यम भी सिद्ध हुआ।
इस सम्मेलन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 अप्रैल को किया। इस अवसर पर केंद्रीय संस्कृति मंत्री जी. किशन रेड्डी, केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू, केंद्रीय संस्कृति राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल और मीनाक्षी लेखी तथा अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ के महासचिव डॉ. धम्मापिया आदि उपस्थित थे।
प्रधानमंत्री ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि बुद्ध व्यक्तित्व से परे हैं, वे एक धारणा हैं, एक अनुभूति हैं, एक विचार हैं और किसी अभिव्यक्ति से परे एक चेतना हैं। बुद्ध की चेतना अनंत है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन का आयोजन सभी देशों के प्रयासों के लिए एक प्रभावी मंच तैयार करेगा।
संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री जी. किशन रेड्डी ने कहा कि वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन मोदी सरकार की एक पहल है और यह दुनिया के साथ हमारे सांस्कृतिक एवं राजनयिक संबंधों को सशक्त करने में सहायता करेगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के विचारों के अनुसार विश्व की प्रमुख चुनौतियों का समाधान बौद्ध जीवन दर्शन से हो सकता है और मुझे लगता है कि वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन इस दिशा में एक सफल प्रयास सिद्ध होगा।
केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि बौद्ध धम्म केवल परमात्मा के अस्तित्व में विश्वास ही नहीं है, यह जीवन को जीने का एक तरीका है, जो सभी प्राणियों के प्रति करुणा पर बल देता है। उन्होंने कहा कि नश्वरता तथा परस्पर निर्भरता की शिक्षा हमें याद दिलाती है कि दुनिया में सब कुछ बदल रहा है और सब कुछ परस्पर जुड़ा हुआ है। इसी प्रसंग के साथ हमें जीना सीखना चाहिए।
उद्घाटन सत्र के बाद दुनियाभर से आए प्रतिष्ठित विद्वानों और बौद्ध भिक्षुओं ने वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की और बौद्ध मत में उनके हल भी ढूंढे। चर्चा के केंद्र में बुद्ध धम्म और शांति, पर्यावरणीय संकट, स्वास्थ्य और स्थायित्व, नालंदा बौद्ध परंपरा का संरक्षण, बुद्ध धम्म और तीर्थयात्रा, विरासत और बौद्ध अवशेष, दक्षिण-पूर्व तथा पूर्वी एशिया के देशों के साथ भारत के सदियों पुराने सांस्कृतिक संबंध आदि रहे। वैश्विक बौद्ध सम्मेलन में सार्वभौमिक मूल्यों के प्रसार पर बल दिया गया। इसके साथ ही विश्व के सामने उपस्थित ज्वलंत चुनौतियों का समाधान ढूंढने का प्रयास भी हुआ।
तिब्बत के वर्तमान संकट को बौद्ध दर्शन के केंद्रीय मूल्यों करुणा, ज्ञान और ध्यान के माध्यम से देखने और समझने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि तिब्बत के वर्तमान स्वरूप को देखने के लिए एक व्यापक सोच और साहस की आवश्यकता है। महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि सब कुछ एक-दूसरे पर पारस्परिक रूप से निर्भर है। प्रकृति में अलगाव नहीं है। इस अवसर पर अनेक वरिष्ठ नेता और बड़ी संख्या में बौद्ध भिक्षु उपस्थित थे।
सम्मेलन में आए प्रतिनिधि इस बात पर सहमत हुए कि सार्वभौमिक शांति के लिए बुद्ध के शांति, कल्याण, सद्भाव और करुणा के संदेश के आलोक में प्रेरणा और मार्गदर्शन प्रदान करने वाले मूलभूत सिद्धांतों पर प्रकाश डाला जाना चाहिए। इसके लिए कई विषयों पर कार्य करने पर बल दिया गया। वक्ताओं ने कहा कि वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में मानव जाति को संघर्ष, दुर्भावना, लोभ, स्वार्थ और जीवन की अनिश्चितता से मुक्त होने की अत्यंत आवश्यकता है। हमें अपने व्यक्तिगत जीवन और वैश्विक स्तर पर शांति और सद्भाव लाने की जरूरत है। हम मानते हैं कि शांति मानव सुख और कल्याण की नींव है, और संघर्ष और हिंसा शांति के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा हैं। सम्मेलन में सभी देशों, संगठनों और व्यक्तियों से संघर्ष, हिंसा और युद्ध से मुक्त दुनिया बनाने की दिशा में काम करने का आह्वान भी किया गया।
पर्यावरण संरक्षण पर विद्वानों का मत था कि सम्मेलन मानता है कि पर्यावरणीय गिरावट आज मानवता के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। हम पर्यावरण की रक्षा और सतत विकास को प्रोत्साहन देने के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हैं। हम सरकारों और व्यक्तियों से कार्बन उत्सर्जन कम करने, जैव विविधता की रक्षा करने और भावी पीढ़ियों के लिए प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने के लिए कार्रवाई करने का आग्रह करते हैं।
सम्मेलन में वक्ताओं ने यह भी कहा कि हम बौद्ध तीर्थयात्रा के महत्व को एक जीवित विरासत के रूप में पहचानते हैं जो आध्यात्मिक विकास, सांस्कृतिक समझ और सामाजिक सद्भाव को प्रोत्साहित करती है। हम सरकारों से बौद्ध मत के पवित्र स्थलों को सुरक्षित और संरक्षित करने और सभी पृष्ठभूमि के लोगों तक उनकी पहुंच को प्रोत्साहन देने का आग्रह करते हैं। सम्मेलन में यह भी कहा गया कि प्रकृति के प्रति मानव दृष्टिकोण में आमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकता है। सभी संवेदनशील प्राणियों के कल्याण के लिए बुद्ध की शिक्षाओं का उपयोग करते हुए, संघ के सदस्य, बौद्ध नेता, विद्वान, अनुयायी और संस्थान इस बहुआयामी संकट को दूर करने में महत्वपूर्ण और प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं। वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन की निरंतरता इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
सम्मेलन के समापन पर बौद्ध भिक्षुओं को पूज्य दलाई लामा का मार्गदर्शन मिला। उन्होंने वर्तमान हालत को देखते हुए कहा कि इनको ठीक करने में बौद्ध दर्शन और मूल्यों की बड़ी भूमिका हो सकती है। उन्होंने कहा कि तिब्बत के वर्तमान संकट को बौद्ध दर्शन के केंद्रीय मूल्यों करुणा, ज्ञान और ध्यान के माध्यम से देखने और समझने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि तिब्बत के वर्तमान स्वरूप को देखने के लिए एक व्यापक सोच और साहस की आवश्यकता है। महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि सब कुछ एक-दूसरे पर पारस्परिक रूप से निर्भर है। प्रकृति में अलगाव नहीं है। इस अवसर पर अनेक वरिष्ठ नेता और बड़ी संख्या में बौद्ध भिक्षु उपस्थित थे।
टिप्पणियाँ