वंदे भारत एक्सप्रेस एक-एक कर देश के विभिन्न हिस्सों में भारत की विकास गाथा की कामयाबी की मिसाल बन कर जा रही है। इसे भारत के अदृश्य सामर्थ्य के प्रकटीकरण के रूप में देखा जा रहा है।
भारत में रेलवे ने वैसे तो 170 साल पूरे कर लिए हैं, लेकिन औपनिवेशिक काल में इसका जितना विकास हुआ, उतना आजादी के बाद नहीं हो सका। आजादी के बाद भारतीय रेलवे के विकास के लिए कई योजनाएं बनीं, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति और बजट की कमी के कारण विकास की गति सुस्त बनी रही। 21वीं सदी की शुरुआत में बुलेट ट्रेन एवं समर्पित मालवहन गलियारे का सपना देखा गया, जो 2014 के बाद धरातल पर उतरा। रेलवे को आत्मनिर्भर बनाने के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखे गए और आधारभूत अवसंरचनाओं के लिए पूंजीगत व्यय को बढ़ाया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेलवे के आधुनिकीकरण की बुनियाद रखी और देश के अभियंताओं को कुछ नया करने के लिए प्रेरित किया, ताकि रेलवे को विश्व स्तरीय बनाया जा सके। ‘वंदे भारत एक्सप्रेस’ उसी का एक उदाहरण है।
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बड़े पैमाने पर निर्माण
2015 में स्पेन की टैल्गो कंपनी की टिल्ट तकनीक पर आधारित ट्रेन को लाने पर विचार किया गया था। इसमें ट्रेन को घुमावदार पटरियों पर गति कम करने की जरूरत नहीं पड़ती। यह ट्रेन भारतीय रेलवे के मानकों के अनुरूप भी थी। परीक्षण के दौरान पता चला कि देश की मौजूदा पटरियों पर इस तकनीक से सेमी हाईस्पीड पर ट्रेन परिचालन संभव है। लेकिन महंगी होने और कुछ अन्य कारणों से टैल्गो पर बात नहीं बनी।
लिहाजा, प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय रेलवे को स्वेदशी तकनीक एवं डिजाइन विकसित करने को कहा। 2017 में रेलवे बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष अश्विनी लोहानी और चेन्नै की इंटीग्रल कोच फैक्टरी के महाप्रबंधक सुधांशु मणि ने इसका बीड़ा उठाया। भारतीय रेल के अभियंताओं ने 2018-19 में रिकॉर्ड डेढ़ साल में ही दुनिया का सबसे सस्ता ट्रेन सेट ‘ट्रेन 18’ यानी वंदे भारत एक्सप्रेस तैयार किया, जो 200 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से दौड़ सकती है। 180 किमी प्रति घंटे की गति से चलाकर इसका परीक्षण भी किया जा चुका है।
वंदे भारत एक्सप्रेस एक-एक कर देश के विभिन्न हिस्सों में भारत की विकास गाथा की कामयाबी की साक्षी बन कर जा रही है। इसे भारत के अदृश्य सामर्थ्य के प्रकटीकरण के रूप में देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी स्वयं इसका शुभारंभ कर रहे हैं और देश के जनसामान्य को भावनात्मक रूप से इस ट्रेन से जोड़ रहे हैं। वह चाहते हैं कि देश का जनमानस अब आपसी टकराव वाले मुद्दों से ऊपर उठ कर देश के विकास को राजनीति के केंद्र में लाए।
पहले संस्करण में भारतीय रेलवे ने दो ट्रेन सेट बनाए और दूसरे संस्करण में 78 वंदे भारत ट्रेनों को इस वर्ष 15 अगस्त के पहले तैयार करने का लक्ष्य है। अभी तक देश में 15 वंदे एक्सप्रेस ट्रेनें चलाई जा चुकी हैं। तीसरे संस्करण में 2025-26 तक स्लीपर श्रेणी की 200 वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन बनाई जानी हैं, जिसका ठेका रेल विकास निगम लिमिटेड एवं एक रूसी कंपनी के संयुक्त उपक्रम को दिया गया है। ये गाड़ियां 200 किमी प्रति घंटे की गति से चलेंगी।
बजट में चौथे संस्करण की भी घोषणा की गई है, जिसके तहत 200 अतिरिक्त वंदे भारत ट्रेनों का निर्माण किया जाएगा, जो 220 किमी प्रतिघंटा की गति से दौड़ने में सक्षम होंगी। हालांकि इसके लिए अभी निविदा नहीं निकाली गई है। इसके अलावा, 400 अन्य वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेनों के निर्माण की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। इनमें स्लीपर सीट वाली टेÑनें भी शामिल होंगी, जो 200 किमी प्रति घंटे से अधिक गति से दौड़ने में सक्षम होंगी। इनका निर्यात भी किया जाएगा। वंदे भारत के विनिर्माण को गति देने के लिए चेन्नै की इंटीग्रल कोच फैक्टरी (आईसीएफ) के अलावा रायबरेली की मॉडर्न कोच फैक्टरी, सोनीपत और लातूर में भी इनका विनिर्माण हो रहा है।
लागत सबसे कम
अभी वंदे भारत एक्सप्रेस को अधिकतम 750 किलोमीटर की दूरी तक चलाया जा रहा है। 14 फरवरी, 2019 को नई दिल्ली से वाराणसी तक पहली वंदे भारत एक्सप्रेस चलाई गई थी। दूसरी वंदे भारत एक्सप्रेस नई दिल्ली से श्री माता वैष्णो देवी कटरा के लिए चली। बाद में इसका निखरा संस्करण सितंबर 2022 में आया, जिसे सबसे पहले गांधीनगर से मुंबई सेंट्रल तक चलाया गया। वंदे भारत एक्सप्रेस की अधिकतम गति 180 किमी प्रतिघंटा है, लेकिन ट्रैक की अलग-अलग स्थिति के कारण इसकी औसत गति में भिन्नता है।
मुंबई छत्रपति शिवाजी टर्मिनस-साईनगर शिरडी मार्ग पर इसकी औसत गति 64 किमी प्रतिघंटा है, जो सभी वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेनों की तुलना में सबसे कम है। वहीं, नई दिल्ली-वाराणसी वंदे भारत एक्सप्रेस की औसत गति 95 किमी प्रतिघंटा है, जो सबसे अधिक है। रानी कमलापति-हजरत निजामुद्दीन वंदे भारत एक्सप्रेस 94 किमी प्रति घंटे की औसत गति के साथ दूसरे स्थान पर है। अभी तक उत्तरी में तीन, पश्चिमी क्षेत्र में चार, दक्षिण में चार, मध्य क्षेत्र में दो तथा पूर्वी क्षेत्र में एक वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन चलाई जा चुकी है।
वंदे भारत का पहला संस्करण 97 करोड़ रुपये में तैयार हुआ था। इसके दूसरे संस्करण में अधिक आयाम जोड़े गए हैं, जिससे इसकी लागत लगभग 10 करोड़ रु. बढ़ गई है। अधिकारियों के अनुसार, आधुनिक सुविधाओं वाली ऐसी ट्रेनों को विदेश से मंगाने पर लगभग 300 करोड़ रुपये की लागत आती। इतने सस्ते ट्रेन सेट चीन भी नहीं बनाता है। वंदे भारत एक्सप्रेस की विशेषताओं को देखते हुए चीन, जापान सहित कई देश इसमें रुचि दिखा रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी मानते हैं कि वंदे भारत एक्सप्रेस स्वदेशी तकनीक तथा भारत के अभियंताओं और तकनीशियनों की काबिलियत पर भरोसे तथा विश्वास की प्रतीक है।
बाढ़ में भी कारगर
बाढ़ में पटरियों पर 2 फुट पानी जमा होने पर भी नई वंदे भारत आराम से चलाई जा सकती है। इसके पहले संस्करण को पटरियों पर 40 सेमी यानी सवा फुट से थोड़ा अधिक पानी होने पर चलाया जा सकता है। ट्रेनों में यात्रा कितनी आरामदेह है, इसे राइडिंग इंडेक्स से आंका जाता है। वंदे भारत के नए संस्करण का राइडिंग इंडेक्स 3.2 है, जबकि विश्व के विकसित देशों में प्रमुख लग्जरी ट्रेनों का राइडिंग इंडेक्स 2.8 से 3 तक है। रेलवे के अभियंताओं के अनुसार, वंदे भारत एक्सप्रेस को यदि विदेशों में बिछी पटरियों पर चलाई जाए तो इसका राइडिंग इंडेक्स 2.8 होगा।
विदेशों में निर्यात
भारतीय रेलवे के कारखानों में बने डिब्बों और लोकोमोटिव्स का दुनिया के कई देशों में निर्यात किया जा रहा है। इनमें थाईलैंड, म्यांमार, ताइवान, जाम्बिया, फिलीपीन्स, तंजानिया, यूगांडा, वियतनाम, नाईजीरिया, बांग्लादेश, मोजाम्बिक, अंगोला, मलेशिया, नेपाल और श्रीलंका शामिल हैं। हाल ही में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मोजाम्बिक में जिस ट्रेन से यात्रा की, वह आईसीएफ में बनी है।
इन मार्गों पर वंदे भारत
नई दिल्ली-वाराणसी, नई दिल्ली-माता वैष्णोदेवी कटरा, गांधीनगर-मुंबई सेंट्रल, नई दिल्ली-अंब अदौरा, हावड़ा-न्यू जलपाईगुड़ी, नागपुर-बिलासपुर, सिकंदराबाद-विशाखापत्तनम, चेन्नै-मैसूरू, मुंबई-सोलापुर, मुंबई-शिरडी साईनगर, रानी कमलापति-हजरत निजामुद्दीन, सिकंदराबाद-तिरुपति, चेन्नै-कोयम्बतूर, दिल्ली कैंट-अजमेर, तिरुअनंतपुरम-कन्नूर।
अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस
इन ट्रेनों का प्रत्येक डिब्बा अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस है। इनमें जीपीएस आधारित यात्री सूचना प्रणाली, वाई-फाई, एलईडी टीवी स्क्रीन, आधुनिक शौचालय व आरामदायक रिक्लाइनिंग सीटें हैं, जबकि एग्जीक्यूटिव श्रेणी में 180 डिग्री घूमने वाली सीटें लगी हुई हैं। ट्रेन में मेट्रो की तर्ज पर डिस्ट्रीब्यूटेड पावर सिस्टम लगा है। इसमें चार-चार कोच की चार यूनिट हैं और हर यूनिट में 2550 किलोवाट का ट्रांसफार्मर है। इससे ट्रेन को गति पकड़ने और रुकने में चंद सेकंड लगते हैं। आपात स्थिति में ट्रेन को रोकने के लिए खास तरह के स्विच लगे हैं, जिसे दबाकर यात्री ट्रेन चालक से बात कर सकता है और आवश्यकता पड़ने पर वह इसे रोक सकता है। नए रैक में टक्कररोधी तकनीक ‘कवच’ और आग से इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बचाने के लिए स्वचालित प्रणाली लगाई गई है। इसके अलावा, आपात निकास द्वार बढ़ाने के साथ बोगियों की डिजाइन में भी महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं।
21वीं सदी की शुरुआत में बुलेट ट्रेन एवं समर्पित मालवहन गलियारे का सपना देखा गया, जो 2014 के बाद धरातल पर उतरा। रेलवे को आत्मनिर्भर बनाने के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखे गए और आधारभूत अवसंरचनाओं के लिए पूंजीगत व्यय को बढ़ाया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेलवे के आधुनिकीकरण की बुनियाद रखी और देश के अभियंताओं को कुछ नया करने के लिए प्रेरित किया, ताकि रेलवे को विश्व स्तरीय बनाया जा सके। ‘वंदे भारत एक्सप्रेस’ उसी का एक उदाहरण है।
इसमें एयर सस्पेंशन के कारण झटक नहीं लगते और 180 किमी प्रतिघंटे की गति पर पानी से भरा गिलास तक नहीं छलकता। ट्रेन में किसी विमान की तुलना में 100वें भाग के बराबर शोर होता है। दिव्यांगों के लिए खास व्यवस्था की गई है तथा खिड़कियों के शीशों पर विशेष तरह की परत चढ़ाई गई है, जो पथराव से बचाने में सक्षम हैं। पहले संस्करण में एक घंटे का बैटरी बैकअप था, जबकि नए संस्करण में बैकअप तीन घंटे का है। वंदे भारत एक्सप्रेस कोच का डिजाइन और पावर सिस्टम हैदराबाद की एक निजी कंपनी के सहयोग से विकसित किया गया है, जबकि इसका निर्माण सार्वजनिक निजी साझीदारी के तहत किया जा रहा है।
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव का कहना है कि वंदे भारत के उन्नत संस्करण को विश्व बाजार में निर्यात के लिए पेश किया जा सकता है। दूसरे लग्जरी रेल रैकों की तुलना में कम लागत वाले और अंतरराष्ट्रीय स्तर के राइडिंग इंडेक्स वाले रैक को बाजार में अच्छी प्रतिक्रिया मिलने की आशा है। वंदे भारत एक्सप्रेस के नई डिजाइन में हवा को शुद्ध करने के लिए रूफ-माउंटेड पैकेज यूनिट में एक फोटो-कैटेलिटिक अल्ट्रावॉयलेट वायु शुद्धीकरण प्रणाली लगी है, ताकि बाहर की हवा और अंदर से निकलने वाली हवा को छान कर साफ कर उसे कीटाणुओं, बैक्टीरिया, वायरस आदि से मुक्त किया जा सके।
सामान्य ट्रेनों की तुलना में इसके रखरखाव के लिए अधिक समय चाहिए, इसलिए वंदे भारत एक्सप्रेस को सप्ताह में 5-6 दिन चलाया जा रहा है। वंदे भारत एक्सप्रेस एक-एक कर देश के विभिन्न हिस्सों में भारत की विकास गाथा की कामयाबी की साक्षी बन कर जा रही है। इसे भारत के अदृश्य सामर्थ्य के प्रकटीकरण के रूप में देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी स्वयं इसका शुभारंभ कर रहे हैं और देश के जनसामान्य को भावनात्मक रूप से इस ट्रेन से जोड़ रहे हैं। वह चाहते हैं कि देश का जनमानस अब आपसी टकराव वाले मुद्दों से ऊपर उठ कर देश के विकास को राजनीति के केंद्र में लाए।
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