कुछ समय में किसानों के साथ साथ अपने उत्पादों के जरिए बाजार में भी ठीकठाक पकड़ बना ली है। स्टार्टअप में उत्पादों की गुणवत्ता और उत्पादन पर काम करने वाली डॉ. कविता नेगी ने बताया कि ‘कोरोना के बाद से लोगों में इम्युनिटी को लेकर काफी सजगता आ गई है।
उत्तराखंड के अल्मोड़ा के द्वारहाट इलाके में किसानों के बीच काम करने वाले दीपेंद्र अधिकारी और डॉ. कविता नेगी जल्द ही अपनी फैक्टरी से कुछ नए उत्पाद तैयार करने को लेकर उत्साहित हैं। किसानों के उत्पादों को बाजार में बेचने वाले कृषि स्टार्टअप किमालया नेचुरल्स ने पिछले कुछ समय में किसानों के साथ साथ अपने उत्पादों के जरिए बाजार में भी ठीकठाक पकड़ बना ली है। स्टार्टअप में उत्पादों की गुणवत्ता और उत्पादन पर काम करने वाली डॉ. कविता नेगी ने बताया कि ‘कोरोना के बाद से लोगों में इम्युनिटी को लेकर काफी सजगता आ गई है। इसी को सोचते हुए हमने कुछ हर्बल चाय शुरू की। चूंकि हमारे इलाके में काफी ऐसी जमीन है जो खाली रहती थी, तो हमने किसानों के साथ मिलकर उस जमीन पर ऐसी फसलों को उगाना शुरू किया, जो उत्तराखंड की जमीन के लिहाज से बेहतर हो। उत्तराखंड में रोजमैरी, केमामाइल, लेमनबॉम, लेमनग्रास जैसे बहुत सारे पौधे बहुत अच्छे से उग सकते हैं। इसलिए हमने इन पर रिसर्च कर हर्बल चाय बनाई है।‘ कंपनी के को-फाउंडर दीपेंद्र अधिकारी के मुताबिक ‘शुरूआत में मुश्किलें आईं, लेकिन आईआईएम काशीपुर और कुछ सरकारी संस्थाओं की मदद से हम यहां तक पहुंच पाए।‘
कृषि ड्रोन से क्रांति
सॉफ्टवेयर के जरिए नियंत्रित किया जाने वाला कृषि ड्रोन कृषि क्षेत्र में क्रांति का सूत्रपात करने वाला माना जा रहा है। इसमें जीपीएस आधारित नेविगेशन सिस्टम, सेंसर, कैमरा, कीटनाशक छिड़काव यंत्र आदि लगे होते हैं। यह बैटरी से चलता है। किसान फिलहाल मल्टी-रोटर ड्रोन, फिक्स्ड विंग ड्रोन एवं सिंगल रोटर हेलीकॉप्टर ड्रोन आदि कृषि ड्रोन का उपयोग कर रहे हैं।
ड्रोन खेती में बहुत सहायक है। इससे कम समय में बड़े क्षेत्र में बीजरोपण, उर्वरक एवं कीटनाशक छिड़काव, मृदा स्वास्थ्य जांच, सिंचाई की योजना, फसल गुणवत्ता निगरानी, बीमा के लिए फसल क्षति का सटीक आकलन जैसे कृषि संबंधी कार्य कम लागत में सहजता से किए जा सकते हैं।
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने वर्ष 2020 के अपने बजटीय भाषण में कहा था कि ‘फसल का मूल्यांकन करने, भू-अभिलेखों के डिजिटलीकरण, कीटनाशकों एवं पोषण तत्वों के छिड़काव के लिए किसान ड्रोन के उपयोग को बढ़ावा दिया जाएगा।‘ सरकार किसानों को कृषि ड्रोन खरीदने के लिए भारी सब्सिडी भी दे रही है। भारतीय कृषि स्टार्टअप आईओटेक वर्ल्ड एविएशन के एग्रीबॉट ड्रोन को भारत का पहला डीजीसीए ‘टाइप सर्टिफिकेशन’ प्राप्त हुआ है। इसके अलावा कृषि स्टार्टअप जनरल एरोनॉटिक्स भी कृषि ड्रोन का निर्माण कर रही है।
ये बात सिर्फ डॉ. कविता और दीपेंद्र अधिकारी की नहीं है। देश में बड़ी संख्या में युवा अब कृषि आधारित स्टार्टअप चला रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक देश में कृषि तकनीक या कृषि उत्पादों से संबंधित करीब 2500 स्टार्टअप हैं जो कृषि तकनीक, कृषि वित्त, कृषि पूवार्नुमान, बाजार भाव, बीज, कीटनाशक, उर्वरक, किसानों की उपज के विपणन से लेकर खेती के लिए इनपुट तक उपलब्ध करा रहे हैं। कृषि क्षेत्र में कृषि तकनीकी की पैठ महज 1 प्रतिशत है। इसलिए सरकार भी खेती के लिए स्टार्टअप को प्रोमोट कर रही है। हाल ही पेश हुए बजट में केंद्र सरकार ने कृषि का बजट बढ़ाकर 1.25 लाख करोड़ रुपये तक कर दिया है। केंद्र सरकार ने पिछले 8 वर्षों में कृषि क्षेत्र के लिए बजट में काफी बढ़ोतरी की है। 2014 से पहले देश का कृषि बजट 25 हजार करोड़ रुपये से भी कम था।
कृषि स्टार्टअप में निवेश का आकर्षण
एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में कृषि क्षेत्र का कुल वार्षिक कारोबार 480 बिलियन डॉलर का है। इसलिए दुनियाभर की कंपनियां भारत के कृषि क्षेत्र में निवेश करना चाहती हैं। इसलिए कृषि स्टार्टअप के क्षेत्र में नए तरह का निवेश लेकर आ रहे हैं। दुनियाभर में भारतीय कृषि बाजार में प्रवेश को लेकर कितना उत्साह है, इसको इस बात से समझा जा सकता है कि बेंगलुरु की एक कंपनी एग्रीजी (Agrizy) का कुल वार्षिक कारोबार 800 करोड़ रुपये से ज्य़ादा का हो गया है और इस कंपनी में हाल ही में 300 करोड़ रुपये का निवेश आया है। ऐसी सी बहुत सी कृषि तकनीक स्टार्टअप हैं जिन्हें विदेशों के साथ-साथ देश में भी खासा निवेश मिल रहा है। इसी तरह आईआईएम काशीपुर में कृषि स्टार्टअप कंपनियों के एक कार्यक्रम में 40 कंपनियों में 320 करोड़ रुपये की फंडिंग मिली थी।
इस निवेश के साथ ही खेती की तकनीक में भी बदलाव देखने को मिलने लगा है। हालांकि अभी ये काफी सीमित स्तर पर है। लेकिन अब इसकी शुरूआत हो गई है। किसान अब परंपरागत खेती के बजाय नकदी फसलों पर जोर दे रहे हैं। इसके लिए किसान सरकार की तरफ से चलाई जा रही नई-नई योजनाओं से जुड़कर लाभ लेने में लगा हुआ है। अगर भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना है तो उसे कृषि में नया निवेश और नई तकनीक लानी ही होगी, क्योंकि आज भी भारत की जनसंख्या का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा सीधे तौर पर कृषि से जुड़ा हुआ है। कुल जीडीपी में कृषि का हिस्सा 18 प्रतिशत है। जिस तरह से देश में युवाओं की संख्या बढ़ी है और नौकरियों के लिए मारामारी चल रही है, ऐसे में इस कृषि क्षेत्र में युवाओं का काम करना बहुत जरूरी है।
रिसर्च फर्म ‘पहले इंडिया फाउंडेशन’ की वरिष्ठ शोधकर्ता निरूपमा सुंदराजन ने बताया कि पिछले कुछ समय में कृषि क्षेत्र में नया निवेश आया है। ये काफी बड़ा क्षेत्र है। अगर आज भारत को विकास करना है तो उसको तकनीक के क्षेत्र में निवेश करना होगा, इस क्षेत्र में काम होना चाहिए, वो भी कृषि को लेकर क्योंकि आज भी भारत का बड़ा तबका इसी क्षेत्र पर निर्भर है। अगर कृषि क्षेत्र में निवेश आता है, अगर नए स्टार्टअप आकर काम करते हैं तो इससे किसानों की आय तो बढ़ ही रही है, साथ ही साथ उत्पादन भी बढ़ रहा है। जो कृषि उत्पादन खराब हो जाता था, जो पानी बर्बाद होता था, उसको बचाने का काम भी कृषि क्षेत्र में आ रही तकनीक कर रही है। हालांकि भारत में कृषि में बड़ा मुद्दा छोटी जोत का है। भारत में लगभग 70 प्रतिशत खेत 2 हेक्टेयर से भी कम आकार के हैं। ऐसे में खेती को किसानों के लिए फायदे का सौदा बनाना बहुत ही चुनौती वाला काम है। ऊपर से जलवायु परिवर्तन के कारण भी किसानों के लिए फसल की उत्पादकता बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है। ऐसे में तकनीक का इस्तेमाल ही किसानों के लिए उत्पादकता और अपनी आय बढ़ाने में काम आ सकती है। इसी वजह से सरकार ने भी इस क्षेत्र के लिए एक्सलरेटेड फंड दिया है।
क्या करेगा कृषि एक्सलरेटेड फंड
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस वर्ष के बजट में एक कृषि एक्सलरेटेड फंड की घोषणा की है। यह 500 करोड़ रुपये का फंड किसानों के बीच से ही उद्यमिता विकसित करने का काम करेगा। दरअसल किसानों की समस्याओं का हल किसानों के बीच से ही हो सकता है जो उनकी समस्याओं को तकनीकी समाधान के सहारे हल कर सके। ये फंड कृषि क्षेत्र में काम कर रहे नए स्टार्टअप को वित्तीय मदद के साथ-साथ उनके प्रशिक्षण, विपणन में भी मदद करेगा। अभी भी बहुत सारे कृषि स्टार्टअप खेती के उत्पादों को शहरी बाजारों तक लेकर आ रहे हैं। इससे किसानों और बाजारों के बीच दूरियां कम हो रही हैं।
कृषि क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या यह रही है कि किस समय क्या लगाना है और कैसे उसे बेचना है। जानकारी की कमी के चलते कभी-कभी एक ही फसल बंपर हो जाती है, तो कभी-कभी किसी फसल को बहुत कम किसान लगाते हैं। इससे बाजार में फसलों की कीमतों में बहुत ज्य़ादा उतार-चढ़ाव होता है। उदाहरणार्थ, इस वर्ष भारत में प्याज और आलू की बंपर फसल हुई है। इसका सबसे बड़ा नुकसान किसानों को ही हुआ है। जहां किसान अपनी फसल बहुत ही सस्ती कीमतों पर बाजार में बेचने को बाध्य हैं, वहीं दूसरी ओर बड़े कमोडिटी ब्रोकर्स और वेयरहाउस वाले फसल को कुछ समय बाद ही महंगे दामों पर बेचने लगते हैं। इसको देखते हुए किसानों को समय पर उनके उत्पादों की कीमत और अन्य विकल्प बताने में तकनीक बहुत ही महत्वपूर्ण रोल निभा सकती है।
स्टार्टअप निवेश में भारत अव्वल
देश में 2022 में 23 स्टार्टअप कंपनियों को यूनिकॉर्न का दर्जा मिला है। यानी इन कंपनियों ने 1 अरब डॉलर के मूल्यांकन को पार कर लिया। दूसरी ओर इस अवधि के दौरान चीन में सिर्फ 11 कंपनियों को यूनिकार्न का दर्जा मिला है। यह लगातार दूसरी बार है, जब इस मामले में भारत ने चीन को पीछे छोड़ा है।
आईवीसीए-बेन ऐंड कंपनी की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में यूनिकार्न स्टार्टअप की संख्या 96 हो गई है। इस दौरान विदेश से भारतीय स्टार्टअप में कुल 25.7 अरब डॉलर का निवेश किया गया।
दो लाख करोड़ का कृषि आयात
स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस बात का बार-बार जिक्र किया है कि किस तरह से भारत में तकनीक के अभाव में खेती किसानों के साथ-साथ देश को भी नुकसान पहुंचा रही है। उन्होंने बजट के बाद एक वेबिनार में कहा कि भारत के किसानों ने न केवल देश को आत्मनिर्भर बनाकर, बल्कि अनाज का निर्यात करने में देश को सक्षम बनाकर कैसे इस परिस्थिति को बदल डाला। प्रधानमंत्री ने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक किसानों की पहुंच बनाने के प्रयासों का जिक्र भी किया था और कहा, ‘आज भारत अनेक प्रकार के कृषि उत्पादों का निर्यात कर रहा है।’ उन्होंने यह भी कहा कि जब आत्मनिर्भरता या निर्यात की बात हो, तो भारत का लक्ष्य सिर्फ चावल या गेहूं तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। इसी वजह से भारत श्रीअन्न और दूसरे मूल्य संवर्धित कृषि उत्पादों के निर्यात पर जोर दे रहा है। इसमें बहुत सारे कृषि स्टार्टअप काम कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कार्यक्रम में कहा था कि, कृषि क्षेत्र में 2001-22 में दलहन का आयात 17,000 करोड़ रुपये, मूल्य संवर्धित खाद्य उत्पादों का आयात 25,000 करोड़ रुपये और 2021-22 में खाद्य तेल के आयात पर 1.5 लाख करोड़ रुपये खर्च किए गए। उन्होंने आगे कहा था कि कृषि आयात कुल मिलाकर लगभग दो लाख करोड़ रुपये का था।
अगर किसानों को सही समय पर दलहन, खाद्य तेल और मूल्य संवर्धित उत्पादों की भारी मांग की जानकारी होती और वे इन फसलों को लगाते तो देश आयात से बच सकता था और किसानों की आय भी खासी होती। ऐसे में खाद्य पदार्थों की मांग और आपूर्ति की स्थिति किसानों तक सरल भाषा में पहुंचाने के लिए भी कृषि स्टार्टअप बहुत महत्वपूर्ण हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बजट के बाद कहा कि कृषि क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए लगातार अनेक फैसले लिये जा रहे हैं, इसमें तकनीक और निवेश महत्पूर्ण हैं ताकि राष्ट्र ‘आत्मनिर्भर’ बन सके तथा आयात के लिए उपयोग होने वाला धन किसानों तक पहुंच सके।
कृषि विज्ञान में लंबे समय से काम कर रहे डॉ. अनुराग शर्मा के मुताबिक, भारत की खेती बदल रही है। ये ऐसा क्षेत्र है, जिसमें हरित क्रांति के बाद कुछ भी नहीं हुआ था। इसकी वजह से खेती किसानों के लिए लाभ के बजाय घाटे का सौदा होने लगी थी। इस सेक्टर में कोई निवेश भी नहीं हो रहा था। कुछ इक्का-दुक्का लोग ही खेती में प्रयोग कर रहे थे। लेकिन अब ये बड़े स्तर पर होने लगा है। जहां सिंचाई के साधनों में टपक सिंचाई का उपयोग होने लगा है, वहीं पॉली कृषि के साथ-साथ कई अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग भी आम किसान करने लगा है। इससे न सिर्फ फसल उत्पादकता बढ़ रही है, बल्कि किसानों की आय भी बढ़ रही है।
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