शरिया कानून के तहत पारिवारिक संपत्ति में पुरुष की तुलना में महिला को आधा देने की व्यवस्था है लेकिन भारतीय संविधान में बराबरी का हक देना लिखा है जो हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत दिया जाता है। पारिवारिक संपत्ति के बंटवारे में मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव का यह मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो न्यायालय ने इसपर जवाब मांगा।
क्या है मामला
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में बुशरा अली नाम की एक महिला द्वारा अर्जी दायर की गई है। जिसमे कहा गया है कि कि संपत्ति के बंटवारे में उन्हें पुरुष सदस्य की तुलना में आधी हिस्सेदारी मिली जो उनके साथ भेदभाव है। याचिकाकर्ता ने बताया कि उसे पारिवारिक संपत्ति में 7/152 की ही हिस्सेदारी दी गई, जबकि पुरुष सदस्यों को 14/152 का हिस्सा मिला है। बुशरा अली संपत्ति का बंटवारा संविधान के अनुसार चाहती है। जिस पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ने प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया है।
क्या है याचिका में
बता दें कि बुशरा ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका के माध्यम से मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरिया कानून) की धारा-2 को चुनौती दी है। जिसके अनुसार मुस्लिम महिलाओं को पारिवारिक संपत्ति में पुरुषों की तुलना में आधी हिस्सेदारी मिलती है।
बुशरा ने अपनी याचिका में इसे संविधान के अनुच्छेद-15 का उल्लंघन बताया है। बता दें कि अनुच्छेद-15 कानून के समक्ष जाति, धर्म, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव को रोकता है। याचिकाकर्ता के अनुसार यह कानून (शरिया) पूर्व संवैधानिक विधान है जो संविधान के अनुच्छेद-13 (1) के तहत आता है।
बुशरा ने अपनी याचिका में कहा है कि- क्या मुस्लिम पर्नसल लॉ (शरीयत) एप्लिकेशन एक्ट 1937 की धारा-2 के तहत पुरुषों की तुलना में महिला को संपत्ति में आधा हिस्सा दिया जाना यानी समान हिस्सा न दिया जाना अनुच्छेद-15 और अनुच्छेद-13 का उल्लंघन नहीं है? ध्यान रहे अनुच्छेद-13 में प्रावधान है कि भारत में संविधान से पहले जो भी कानून थे वह संविधान के दायरे में होगा और अगर वह मौलिक अधिकार का हनन करता है तो वह कानून अमान्य होगा। फिलहाल इस मामले में दोनों पक्षों को नोटिस जारी किया गया है, जिसके बाद आगे की सुनवाई की जाएगी।
क्या है मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत उत्तराधिकार
मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार संपत्ति या पैसे का बंटवारा पर्सनल लॉ के तहत तय उत्तराधिकारियों में होता है। अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाए तो उसकी संपत्ति में उसके बेटे, बेटी, विधवा और माता-पिता सभी का हिस्सा वर्णित किया गया है। जिसके अनुसार संपत्ति में बेटे के हिस्से की तुलना में आधा हिस्सा बेटी को देने का नियम है। वहीं पति की मौत के बाद विधवा को उसकी संपत्ति का छठवां हिस्सा दिया जाता है। इसमें माता-पिता के लिए भी हिस्सेदारी तय की गई है।
जानिए क्या है हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम
वहीं अगर बात करें हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की तो यह हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध पर लागू है। जिसके अनुसार अगर हिंदू (हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध) की मौत होती है और उसने अपनी संपत्ति की वसीयत नहीं की है तो संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी बेटा, बेटी, विधवा मां, पहले मर चुके बेटे के संतान, पहले मर चुकी बेटी के संतान व बेटे की विधवा बनेगे. यानि इन सबको मृत व्यक्ति की संपत्ति में से बराबर का हिस्सा मिलेगा।
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