अकेली सुंदरता कल्याणि ! सकल ऐश्वर्यों की संधान – कवि सुमित्रानंदन पंत जी की यह पंक्ति भारतीय नारी के उस वैभव, सम्मान का प्रतीक है जो हमारा राष्ट्र हमें संबोधित करता है, सुशोभित करता है। पूर्व वैदिक काल से लेकर आज तक भारत में स्त्रियों की वास्तविक स्थिति वैश्विक पटल पर सदैव ही दृढ़ रही है। वस्तुतः ऐसी स्थिति अन्यत्र देशों में कहीं भी देखने को नहीं मिलती है, विशेषकर उन पाश्चात्य नारीवाद का ढिंढोरा पीटने वाले देशों में भी नहीं, जो छद्म रूप में भारतीय सभ्यता पर कुठारघात करने आये।
स्त्रियों को शास्त्र ही नहीं अपितु शस्त्र की भी शिक्षा दी जाती थी। इसके अनेक उदाहरण आज भी हैं, गार्गी, अपाला , मैत्री, लोपमुद्रा, अनुसुइया जैसे नाम जो प्रमाण रूप में विद्यमान हैं। उत्तर वैदिक में स्त्रियों कि स्थिति में परिवर्तन देखने को मिलता है परंतु उस काल में भी नारी के उत्थान हेतु समाज अधिक जागृत था व निरंतर प्रयासरत था।
विदेशी आक्रांताओं (मुगल, ब्रिटिश) के आगमन के पश्चात स्त्रियों की दशा में नकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलता है। उस काल खंड में आक्रांताओं से नारी की अस्मिता की रक्षा समाज की प्राथमिकता बन गई परंतु उन अत्याचारों से रक्षा में कब समाज कुरीतियों की ओर बढ़ता चला गया इसका भान कुछ समाज सुधारकों को छोड़ दें तो किसी को न रहा। सती प्रथा, पर्दा प्रथा, बाल विवाह जैसी कुरीतियों के जनक इन दुराचारियों की भारतीय नारियों पर पड़ने वाली कुदृष्टि बनी।
तत्कालीन इतिहास साक्षी है कि स्त्रियों पर बढ़ते शोषण, दुराचार ने सम्पूर्ण कालखण्ड को रक्तरंजित कर दिया। माँ पद्मिनी का जौहर आज भी इसका प्रबल प्रमाण है तो सावित्री बाई फुले का नारियों को शिक्षित बनाने हेतु त्याग भी वरदान है। हमारी अध्यात्मिक व सांस्कृतिक विरासत सर्वथा ही अक्षुण्ण रही, पूरब में कनकलता बरूआ तो पश्चिम में चांद बीबी वहीं दक्षिण में रानी चेन्नम्मा तो उत्तर में लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगनाओं ने इतिहास लिखे व नारी को इस विषम स्थिति से उबारा।
धरती पर स्त्रियों के बिना जीवन अकल्पनीय है। सम्पूर्ण सृष्टि के भार की वहनकर्ता को धरती मां पुकारता है यह भारत, जन्म से मृत्यु की यात्रा के मध्य मां गंगा, यहां तक कि हमारे त्योहार भी मातृत्व के सूचक हैं।
आज अनाथों को सनाथ बनाने वाली सिंधुताई सकपाल जैसी दृढ़ आत्मविश्वास से परिपूर्ण महिलायें अपने संघर्षों से भारत के अस्तित्व की कहानी नारीशक्ति को बल पर कह रही हैं। स्त्रियों ने बालपन से ही अपने जीवन को संघर्ष की वेदशाला में तपाकर समाज में आदर्श की स्थिति प्रस्तुत की है। भारतीय नारियों में जिस प्रकार पाश्चात्य नारीवाद के छद्म वेश का प्रवाह निरंतर बढ़ रहा, चिंताजनक है। वर्तमान की प्रचण्ड आवश्यकता भारतीय नारीवाद है। परिवर्तन अपनी राह पर कदम बढा चुका है, आज की नारी आत्मनिर्भरता का चुनाव कर रही है, लैंगिक समानता की बात हो रही है। वर्ष 2023 में महिला दिवस विशेष है क्योंकि नवाचार की चर्चा प्रौद्योगिकी के साथ होगी। महिला सशक्तिकरण हेतु डिजिटल युग में तकनीक युक्त शिक्षा को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। समाज में महिलाओं को संदर्भित पूर्वाग्रहों , विचारों में परिवर्तन कर भारतीय परंपरा युक्त पद्धति विकसित करने की आवश्यकता है। तभी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2023 के आयोजन का उद्देश्य लैंगिक समानता को दर्शाएगा, साथ ही हमारा भारतवर्ष सतत विकास के पथ पर बढ़ता जाएगा।
(लेखिका बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में परास्नातक कर रही हैं, एवं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की राष्ट्रीय मंत्री हैं )
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