कित्तूर की वीर रानी चेन्नम्मा और अंग्रेजों के साथ उनका महासंग्राम

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दक्षिण भारत जितना अनुपम सौंदर्य समेटे है, उतना ही यहां शौर्य की गूंज भी है। यहां सांस्कृतिक विरासत के दर्शन होते ही हैं, शौर्य की गाथा भी सुनाई देती है। बात अठारहवीं शताब्दी की है। कर्नाटक में एक स्वतंत्र राज्य हुआ करता था। नाम था कित्तूर और यहां की रानी थी चेन्नम्मा। जिन्होंने अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब दिया था। अंग्रेजों को सशस्त्र चुनौती दी थी।

रानी चेन्नम्मा का जन्म 23 अक्टूबर 1778 को कर्नाटक के काकतीय राजवंश में हुआ था। पिता का नाम धूलप्पा और मां पद्मावती थीं। उनका पालन-पोषण पुत्रों की भांति किया गया था। संस्कृत, कन्नड़, मराठी और उर्दू का भी उन्हें ज्ञान था। उन्हें बचपन से ही वीरतापूर्ण कार्य में दिलचस्पी थी। वह शिकार खेलने भी जाती थीं।

चेन्नम्मा का विवाह कित्तूर के राजा मल्लसर्ज के साथ हुआ था। कित्तूर छोटा राज्य था, लेकिन उसकी समृद्धि और वैभव कम नहीं था। रानी चेन्नम्मा ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन उस बच्चे की जल्द मृत्यु हो गई। कुछ दिन बाद राजा मल्लसर्ज का भी निधन हो गया। इसके बाद एक बच्चे को गोद लिया गया। अंग्रेजों की गिद्धदृष्टि इस वैभवशाली राज्य पर बहुत दिनों से गड़ी हुई थी। अंग्रेजों की उस समय राज्य हड़प नीति लागू नहीं थी, फिर भी उन्होंने कित्तूर को हड़पने की पूरी साजिश रची। अंग्रेजों ने राज्य के कुछ देशद्रोहियों को अपनी ओर मिलाया। रानी ने अंग्रेजों को स्पष्ट उत्तर दिया कि उत्तराधिकारी का मामला हमारा निजी मामला है। लेकिन अंग्रेज कहां मानने वाले थे। उन्होंने सितंबर-अक्टूबर 1824 को कित्तूर पर आक्रमण कर दिया।

रानी चेन्नम्मा ने अपने देशभक्तों की सेना के साथ अंग्रेजों को परास्त किया। रानी ने खुद सेना का नेतृत्व किया। दो अंग्रेज अधिकारी मारे गए और दो बंदी बनाए गए। बंदी बनाए अधिकारियों को इस इस शर्त पर रिहा किया गया था कि अंग्रेज अब कित्तूर पर दोबारा आक्रमण नहीं करेंगे। इसके बाद फिर अंग्रेजों को परास्त किया। दिसंबर 1824 में अंग्रेज फिर आ धमके। अंग्रेजों के साथ रानी का महासंग्राम हुआ। पहले ही युद्ध में रानी के विश्वासपात्र सैनिक बलिदान हो चुके थे। इस युद्ध में रानी चेन्नम्मा को हार स्वीकार करनी पड़ी। उन्हें बंदी बना लिया गया। देशभक्तों को फांसी पर चढ़ा दिया गया। अंग्रेजों ने कित्तूर को जमकर लूटा। 21 फरवरी 1829 को रानी चेन्नम्मा ने देह त्याग दी। रानी चेन्नम्मा को बेलहोंगल तालुका में दफनाया गया।

आज भी हर साल कित्तूर में अक्टूबर में कित्तूर उत्सव मनाया जाता है। इसमें रानी चेन्नम्मा की जीत का जश्न मनता है। उनकी स्मृति में डाक टिकट भी जारी किया गया था।

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