जलवायु परिवर्तन से आई समस्याओें को समझने और दुनिया को समझाने के लिए तथा भारतीय दृष्टिकोण से उसका समाधान क्या हो, इस पर हो रही है तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय गोष्ठी
पर्यावरण के प्रति भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित विमर्श को स्थापित करने के लिए 27, 28 और 29 दिसंबर, 2022 को उज्जैन में एक अंतरराष्ट्रीय गोष्ठी ‘सुजलाम्’ के नाम से आयोजित हो रही है। इसका आयोजन ‘दीनदयाल शोध संस्थान’ कर रहा है। बता दें कि पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं को लेकर ‘दीनदयाल शोध संस्थान’ देशभर में अनेक कार्यक्रम कर रहा है। इसी कड़ी में उपरोक्त गोष्ठी भी हो रही है। इसमें देश-विदेश के विद्वान, आध्यात्कि गुरु, सामाजिक कार्यकर्ता, प्रयोगधर्मी, संस्कृतिकर्मी आदि भाग लेंगे। ये लोग भारतीय चिंतन में पंचमहाभूत के अलग-अलग आयामों पर चर्चा करेंगे, अपने विचार रखेंगे और एक सार्थक तथा प्रभावी विमर्श देशभर में खड़ा करने में योगदान देंगे।
बता दें कि भारतीय चिंतन में प्रकृति के संदर्भ में एक विशिष्ट दृष्टि है। सचमुच में यह दिव्य दृष्टि है। हमारी परंपराएं, संस्कार, जीवनशैली, अपने देशज चिंतन से प्रभावित रही हैं। देश के एक बड़े भाग में आज भी देशज ज्ञान प्रचलित और व्याप्त है। जीवन के हर मोड़ पर प्रकृति से अपने रिश्तों की अभिव्यक्ति पंचमहाभूत, पंचतत्व जैसे कई नामों से होती रही है। इस दिव्य दृष्टि और देशज ज्ञान का का रिश्ता अनूठा है।
जलवायु परिवर्तन से पैदा इन परिस्थितियों पर चिंतन, मंथन करते हुए इन प्रकृति सम्मत विषयों को नए संदर्भों के साथ रेखांकित किया जाए, लेकिन मूल दृष्टि विशुद्ध रूप से भारतीय हो। इस दृष्टि से तय किया गया है कि आगामी एक वर्ष में सभी पंचमहाभूतों (आकाश, वायु, अग्नि, जल और भूमि) के विषय में गोष्ठियां आयोजित हों।
समय के अनुसार संदर्भ बदले हैं। बहुत से बाह्य कारणों से उनके प्रति दृष्टिकोण भी बदला है। मूल चिंतन में ध्यान भटकने के कारण हम उस उदात्त जीवनपथ से विचलित भी हुए हैं। इस भटकाव से जलवायु परिवर्तन जनित ढेरों समस्याएं पूरी दुनिया के सामने मुंह बाए खड़ी हैं। भारत भी इनसे अछूता नहीं रहा है। हमें स्वयं तो इनसे निपटना ही है, लेकिन ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की अवधारणा में आस्था रखने वाले भारत का दायित्व है पंचभूतों में पैदा हुए असंतुलन से उत्पन्न हुए विकृतियों की ओर विश्व का ध्यान दिलाना। उन्हें स्वयं समझना और समझाना। युगानूकूल संदर्भों में रखते हुए उनके समाधान ढूंढना।
समय आ गया है कि जलवायु परिवर्तन से पैदा इन परिस्थितियों पर चिंतन, मंथन करते हुए इन प्रकृति सम्मत विषयों को नए संदर्भों के साथ रेखांकित किया जाए, लेकिन मूल दृष्टि विशुद्ध रूप से भारतीय हो। इस दृष्टि से तय किया गया है कि आगामी एक वर्ष में सभी पंचमहाभूतों (आकाश, वायु, अग्नि, जल और भूमि) के विषय में गोष्ठियां आयोजित हों।
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