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26/11 की कहानी नायकों की जुबानी

26/11 आतंकी हमले के दौरान और बाद में अहम भूमिका निभाने वाले अधिकारियों ने आंखों देखा हाल सुनाया

पाञ्चजन्य ब्यूरो by पाञ्चजन्य ब्यूरो
Dec 7, 2022, 01:31 pm IST
in भारत
(बाएं से) संजय गोविलकर, रमेश म्हाले, मंगेश नायक और ब्रिगेडियर गोविंद सिंह सिसोदिया

(बाएं से) संजय गोविलकर, रमेश म्हाले, मंगेश नायक और ब्रिगेडियर गोविंद सिंह सिसोदिया

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https://panchjanya.com/wp-content/uploads/speaker/post-259578.mp3?cb=1670400143.mp3

‘मुंबई संकल्प’ के एक सत्र में 26/11 आतंकी हमले के दौरान और बाद में अहम भूमिका निभाने वाले अधिकारियों ने आंखों देखा हाल सुनाया। इनमें मंगेश नायक व इंस्पेक्टर संजय गोविलकर थे, जिन्होंने आतंकी अजमल कसाब को पकड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इन्हीं की टीम में तुकाराम ओंबले थे, जो कसाब को पकड़ने में बलिदान हुए। मंगेश नायक को 2009 के राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया था। ब्रिगेडियर गोविंद सिंह सिसोदिया के नेतृत्व में एनएसजी ने ‘ब्लैक टॉरनेडो’ आपरेशन में आतंकियों को मार गिराया था, जबकि मुख्य जांच अधिकारी रमेश म्हाले की रिपोर्ट पर उज्ज्वल निकम ने कसाब को फांसी के तख्ते तक पहुंचाया। तत्कालीन एसीपी रमेश म्हाले ने मराठी में ‘कसाब और मैं’ पुस्तक भी लिखी है। इस सत्र का संचालन आर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने किया

ब्रिगेडियर गोविंद सिंह सिसोदिया
मुंबई आतंकी हमले पर हम दिल्ली से उस पर निगाह रखे हुए थे। शुरू में कहा गया कि गैंग वार है। लेकिन आधी रात को गृह मंत्रालय से मुंबई जाने का निर्देश मिला। 5 बजे सुबह मुंबई पहुंचे। जहाज में ही आपरेशन का नाम ‘ब्लैक टॉरनेडो’ रखा। मुंबई पुलिस मुख्यालय पहुंचे। वहां मुंबई पुलिस आयुक्त राकेश मारिया से बात की। शहर में अफरा-तफरी का माहौल था। कंट्रोल रूम में लगातार फोन घनघना रहे थे। पुलिस यह पता लगा चुकी थी कि आतंकी ताज, आबरॉय और नरीमन हाउस में छिपे हैं। संख्याबल के आधार पर मैंने ताज व आॅबरॉय को प्रमुखता दी, क्योंकि ये बड़े कॉम्प्लेक्स थे जहां बड़ी संख्या में लोग थे। तीसरा विकल्प स्नाइपर तैनाती का रखा। बाद में सेना की टुकड़ी भी आ गई। नरीमन हाउस में सीढ़ियां व लिफ्ट टूट चुकी थी, क्योंकि आतंकियों ने ग्रेनेड फेंके थे। मैं वहां देखने गया कि कहां से इमारत में घुसा जा सकता है। बगल के एक घर में एक खिड़की थी। हमने वहां हेलिकॉप्टर से उतरने का फैसला किया।

वहीं, ताज में करीब 700 कमरे थे और हमारे पास कोई नक्शा भी नहीं था। उसका इंजीनियर भी उपलब्ध नहीं था। यहां भी चुनौती बड़ी थी। हमें नहीं मालूम था कि आतंकी कहां छिपे हैं। पहले हम जिस कमरे में गए, वहां धुआं भरा हुआ था। वहां से निकले तो ऊपर आतंकियों से मुठभेड़ हुई। अंत में हम उस जगह पहुंचे, जिसका नाम शायद पाम रेस्तरां था। वहां मेजर उन्नीकृष्णन ऊपर आते दिखे। उन्हें एक तरफ से भेजकर मैं दूसरी तरफ बढ़ा ही था कि आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी। उन्नीकृष्णन के एक साथी की टांग में गोली लगी। उन्होंने आवाज लगाई कि इसे ले जाओ। उन्होंने सोचा कि रेस्तरां की तरफ से अंदर जाएंगे, पर वहां मौजूद आतंकियों ने गोलीबारी शुरू कर दी। उन्नीकृष्णन ने हमें उधर आने से रोक दिया।

हम असमंजस में थे। सोचा कि आतंकी आसपास होंगे, इसलिए बात नहीं कर रहे हैं। दूसरे पल लगा कि हमारा रेडियो सेट आतंकियों के हाथ लगा तो हमारी हर गतिविधि का पता उन्हें चल जाएगा। हमारी कोशिश थी कि किसी निर्दोष की जान नहीं जाए। बहरहाल, हम एक जगह पहुंचे, जहां बंद दरवाजे के पीछे पियानो था। लेकिन दरवाजा खोल नहीं पाए तो उसके पीछे से घुसने की कोशिश की। वहां से पिलर की ओट से फायरिंग की, पर कारगर नहीं रहा। अगर हम वहां से अंदर घुसते तो मारे जाते। हम काफी दबाव में थे। इसी बीच, ऊपर से निर्देश आया कि जल्दी करो। जिस कमरे में आतंकी थे, वहां अंधेरा था और परदे भी गहरे रंग के थे। बाहर फायर ब्रिगेड की गाड़ी से एक स्नाइपर ने गोली चलाई, पर शीशा ही नहीं टूटा, बस छोटा छेद हुआ। फिर ग्रेनेड लाउंचर से फायर किया तब शीशा टूटा। इस तरह, आपरेशन पूरा हुआ।

मंगेश नायक
26 नवंबर, 2008 को मैं डीबी मार्ग पुलिस स्टेशन में तैनात था। हमें संदेश मिला कि मुंबई पर दस आतंकियों ने हमला किया है। हम तुरंत गिरगांव चौपाटी से फोर्स लेकर निकले। हमें बताया गया था कि आतंकी ज्यादा भीडभाड़ वाले इलाके में फायरिंग कर रहे हैं। गिरगांव चौपाटी में लोग घूमने आते हैं, इसलिए वहां करीब 3,000-3,500 लोगों की भीड़ रहती है। हमने मेगा फोन पर घोषणा की कि जितनी जल्दी हो, वहां से निकल जाएं, क्योंकि बहुत जगह गोलियां चल रही हैं और बम धमाके हो रहे हैं। इस तरह, 30-45 मिनट में गिरगांव चौपाटी को खाली कराया। फिर दोहरी नाकाबंदी कर मरीन से मलाबार हिल्स जाने वाले रास्ते को पूरी तरह बंद कर दिया। हम एक-एक गाड़ी की तलाशी ले रहे थे।

रात करीब 12:30 बजे कंट्रोल रूम से स्कोडा गाड़ी आने का संदेश मिला। नाकाबंदी देखकर गाड़ी करीब 50 फीट दूर ही रुक गई। लेकिन हेडलाइट जलती रही। इसलिए पता नहीं चल रहा था कि अंदर कितने लोग हैं। हमने गाड़ी बंद कर उन्हें नीचे उतरने को कहा, पर वे हमारी तरफ बढ़े और अचानक यू-टर्न लिया तो गाड़ी डिवाइडर से टकराई। गाड़ी में दो आतंकी दिखे। अबु इस्माइल गाड़ी चला रहा था और कसाब बगल में बैठा था। अबु ने अंदर से फायरिंग शुरू कर दी। बाई ओर से हमारे अधिकारी भास्कर कलम साहब ने गोली चलाई, जो अबु इस्माइल की दायीं आंख में लगी, पर वह एके-47 से फायरिंग करता रहा। हेमंत बावधंकर ने उसकी गर्दन में तीन गोलियां मारीं। इधर, दायीं ओर से मैं, तुकाराम ओंबले और सोनी शिल्के दरवाजा खोल कर कसाब को खींच रहे थे।

कसाब ने हाथ ऊपर करके आत्मसमर्पण करने का नाटक किया। हमने उसे बाहर आने का इशारा किया तो उसने सिर हिलाया। उसके पैरों के बीच में भी एक एके-47 रायफल थी। वह अचानक गाड़ी से कूदा और पलटकर फायरिंग करने ही वाला था कि हमने उसकी तरफ छलांग लगा दी। तुकाराम ने राइफल की नली पकड़ ली। मैंने कसाब का हाथ-पैर दबाए और सोनी शिल्के ने गला। इसके बावजूद उसने गोली चला दी। तुकाराम को खून से लथपथ देखकर हम कसाब को बेतहाशा पीट रहे थे। हालांकि वह बेहोश था। तभी संजय गोविलकर साहब भागकर आए और बोले कि इसे मारो मत। यह हमारे लिए सबूत है। यह कहां से आया है? किस देश का है? इसके साथ कौन-कौन हैं और कहां-कहां बम रखा है, इसका पता इसी से लगेगा।

संजय गोविलकर
तुकाराम ओंबले को 6 गोलियां लगी थीं। मुझे भी गोली लगी थी। उस समय मुझे यही लगा कि सबूत के अभाव में अपराधी अदालत से छूट जाते हैं। मैंने सोचा कि मुंबई पर हमला करने वाला शख्स जिंदा रहा तो उसके पीछे की साजिश का पता चल सकता है। बस उस क्षण मेरे दिमाग में यही विचार आया। बीस साल का अनुभव एक सेकंड में बाहर आ गया और हमने उसे जिंदा पकड़ लिया।

रमेश म्हाले
कसाब को आखिरी समय तक पछतावा नहीं था। जांच के दौरान वह कहता था, साहब! मुझे फांसी देने की बात भूल जाओ। अफजल गुरु को 8 साल बाद भी फांसी नहीं दे सके, तो मुझे क्या दोगे। दूसरी बात यह कि 26/11 के बाद से अभी तक पाकिस्तान ने हिंदुस्थान पर कई आतंकी हमले किए, पर एक बार भी नहीं कबूला कि हमले में उसका हाथ है। मुंबई हमले में पहली बार उसे स्वीकार करना पड़ा। मेरे साथ 99 लोगों की टीम ने ऐसे लाजवाब साक्ष्य जुटाए उसके कारण। ऐसा सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है।

पाकिस्तान के हैंडलर्स ताज, आबरॉय और नरीमन हाउस में छिपे आतंकियों से लगातार तीन दिन तक बात करते रहे। इस बातचीत की 36 घंटे की रिकॉर्डिंग हमारे पास है। इसे सुनकर लगता है कि वहां से चार लोग टीवी पर सीधा प्रसारण देखकर (जो यहां से मीडिया दिखा रही थी) आतंकियों को निर्देश दे रहे हैं। इनमें एक अबु जिंदाल है। अमेरिका ने बताया कि कराची से बधवार पार्क आते समय आतंकियों ने 48 बार जीपीएस पर देखा कि वे सही दिशा में जा रहे हैं कि नहीं। बधवार पार्क से नरीमन हाउस जाते समय उन्होंने तीन बार जीपीएस पर रास्ता देखा। हमले के लिए 33 आतंकियों को पाकिस्तान में प्रशिक्षण दिया गया। इनमें से 13 को चुना गया। मुंबई पुलिस दुनिया में दूसरे स्थान पर है, हमने आतंकी हमले की जांच में इसे साबित किया है।

 

Topics: 26/11 की कहानीसंजय गोविलकरएके-47 रायफलरमेश म्हालेपाकिस्तान के हैंडलर्स ताजआबरॉयनरीमन हाउसतुकाराम ओंबलेFEATUERDडीबी मार्ग पुलिस स्टेशनमुंबई संकल्पआबरॉय और नरीमन हाउसमेजर उन्नीकृष्णन
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