न भूलने वाला पल
कट्टरपंथी ज्यादातर लूटपाट तब करते थे जब अंधेरा हो जाता था। कभी-कभी तो दिन में ही मार काट का शोर मच जाता था।
शकुंतला नागपाल
मुल्तान, पाकिस्तान
बंटवारे के समय मेरी उम्र छह साल थी। परिवार में दादा-दादी, माता-पिताजी, दो भाई और बहन थी। कुल मिलाकर हमारा संयुक्त परिवार था। भरपूर आनंद था। मेरे दादाजी खेती-किसानी का काम किया करते थे। तो घर के अन्य लोग विभिन्न व्यवसायों में लगे थे। यानी दादाजी ने परिवार के सभी लोगों को हुनरमंद बनाया और उन्हें कोई ना कोई काम सिखाया था। इसलिए सभी लोग कमाते थे। मेरी उम्र ज्यादा तो थी नहीं, इसलिए बहुत ज्यादा कुछ ध्यान नहीं है, लेकिन बाद में माता-पिता जी और परिजनों ने जो बताया, वह रोंगटे तो खड़े करता ही है, गुस्सा भी दिलाता है।
गांव के आस-पास बंटवारे की आहट सुनाई देने लगी थी। हिन्दुओं को मारा और भगाया जाने लगा था। दिन में कई-कई घटनाएं सुनने को मिलती थीं। सब डरने लगे थे इस माहौल में। कुछ लोगों ने तो पहले ही घर छोड़ दिया तो कुछ डटे थे, इसलिए कि यह हमारी जन्मभूमि है और हम कहीं नहीं जाएंगे इसे छोड़कर। इसमें खासकर वे लोग थे जो वृद्ध थे। उनको अपनी माटी से बेहद लगाव था। एक दिन अचानक हमारे गांव पर भी हमला हुआ। मुसलमानों ने एक झुंड में आकर हिन्दुओं के घरों में लूटपाट करनी शुरू कर दी। ऐसा कई दिन तक चला। और तब हद हो गई जब जिहादी लोगों को मारने लगे। चारों तरफ चीत्कार के सिवाय कुछ ना था।
हालात इतने खराब हो गए थे कि एक दिन भी वहां रहना मुश्किल हो रहा था। हमारे गांव में मुसलमानों के हमले 15 अगस्त,1947 से पहले शुरू हो गये थे। तब तक हमें यह नहीं पता था कि भारत का एक हिस्सा अब पाकिस्तान के नाम से जाना जाएगा। कट्टरपंथी ज्यादातर लूटपाट तब करते थे जब अंधेरा हो जाता था। कभी-कभी तो दिन में ही मार काट का शोर मच जाता था। हिन्दू अपने खेतो में जाते तो रास्ते में ही मुसलमान उनके साथ मारपीट पर उतारू हो जाते थे। गांव के कई लोग मारे गये इन हमलों में।
मुसलमान इतने ताकतवर हो गए कि मेरे चार लालों को मुसलमान बना दिया। यानी चाचा, चाची और उनके दो बच्चे। पर चाचा बहुत सूझबूझ के साथ वहां से निकलकर अपने देश आ गये। हालात इस कदर खराब थे कि जिस मां की गोद में छोटे बच्चे होते थे, मुसलमान उनको ले जाते थे। लोगों को मार-मारकर कुओं में फेंका जा रहा था।
मुझे एक दिन की बात याद है जब मेरे चाचा जी अपनी ससुराल गए हुए थे। उन दिनों उनका परिवार वहीं था। अचानक मेरे पिताजी घर में जोर-जोर से रोने लगे। परिजनों ने पिताजी से पूछा तो उन्होंने बताया कि जहां चाचा जी की ससुराल है, वहां सभी हिन्दुओं को मुसलमान बना दिया गया है। मेरे पिताजी रो-रोकर कह रहे थे- मुसलमान इतने ताकतवर हो गए कि मेरे चार लालों को मुसलमान बना दिया। यानी चाचा, चाची और उनके दो बच्चे। पर चाचा बहुत सूझबूझ के साथ वहां से निकलकर अपने देश आ गये। हालात इस कदर खराब थे कि जिस मां की गोद में छोटे बच्चे होते थे, मुसलमान उनको ले जाते थे। लोगों को मार-मारकर कुओं में फेंका जा रहा था।
अगर कोई इसका विरोध करता था तो वे निर्ममता से हत्या कर देते थे। इस सबको जब आज याद करने बैठती हूं तो आंखों में आंसू आ जाते हैं। अंतत: एक दिन सेना की गाड़ी से हम लोग वहां से निकले और शिविर में आकर रुक गए। यहां पर हम लोग दो दिन रहे। फिर किसी तरह ट्रेन से कई जगह होते हुए अटारी आ पाए। रास्ते में कई जगह ट्रेन को रोक दिया जाता था। कहा जाता था कि कोई कुछ नहीं बोलेगा और बिल्कुल अंधेरा कर दिया जाता था। क्योंकि जगह-जगह मुसलमान झुंड में आकर हमला करने की फिराक में रहते थे। खैर किसी तरह बच-बचाकर हम भारत आ पाए और गुजर बसर करने लगे।
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