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होम भारत उत्तर प्रदेश

‘हिन्दू शब्द भारतीय समाज के संगठित शक्ति का प्रतीक’

श्रद्धेय अशोक सिंहल जी की सातवीं पुण्यतिथि के अवसर पर व्याख्यानमाला आयोजित

WEB DESK by WEB DESK
Nov 18, 2022, 10:46 am IST
in उत्तर प्रदेश
कार्यक्रम की तस्वीर

कार्यक्रम की तस्वीर

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https://panchjanya.com/wp-content/uploads/speaker/post-257643.mp3?cb=1668748581.mp3

श्रद्धेय अशोक सिंहल जी की सातवीं पुण्यतिथि के अवसर पर 17 नवंबर 2022 को एक व्याख्यानमाला “हिंदू धर्म क्या है और हिंदू कौन है” विषय पर अरुंधति वशिष्ठ अनुसंधान पीठ, महावीर भवन, प्रयागराज में आयोजित की गई। इस व्याख्यान माला में मुख्य वक्ता के रूप में प्रोफेसर अरविन्द प्रभाकर जामखेडकर पूर्व कुलाधिपति डेक्कन कॉलेज (मानद विश्वविद्यालय) पुणे महाराष्ट्र एवं पूर्व अध्यक्ष भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद उपस्थित रहे।

कार्यक्रम की भूमिका रखते हुए अरुंधती वशिष्ठ अनुसंधान पीठ के निदेशक के डॉ. चन्द्र प्रकाश सिंह ने कहा कि जब कोई नाम शक्तिशाली होता है तब लोग उस शब्द की विभिन्न व्याख्या करने लगते हैं। हिन्दू शब्द भारतीय समाज के संगठित शक्ति का प्रतीक है, इसलिए उसे कमजोर करने के लिए भिन्न-भिन्न व्याख्याएं प्रारम्भ हुईं। यह मान लिया जाए कि अरब लोगों ने हिंदू शब्द का प्रथम प्रयोग किया था तो हिंदू उस समय बैद्ध, जैन एवं बनवासी सहित सभी मत, पंथ और संप्रदाय के लोगों के लिए कहा गया। उन्होंने हमारी परंपरा और समन्वित सांस्कृतिक चेतना से प्रभावित होकर हिंदू शब्द कहा था। हमारी संगठित शक्ति को कमजोर करने के लिए हिन्दू शब्द पर प्रहार होते रहे हैं और हो रहे हैं। कालांतर में हमारे महापुरुषों ने हिन्दू समाज को तोड़ने की कुचेष्टा को समझा, इसलिए स्वामी विवेकानंद ने इस पर बल देते हुए कहा “गर्व से कहो हम हिंदू हैं” एवं डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने कहा “भारत हिंदू राष्ट्र है”। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी इस भावना को कविता के माध्यम से व्यक्त करते हुए लिखा, “हिन्दू कहने में शर्माते दूध लजाते लाज न आती, घोर पतन है अपनी माँ को माँ कहने में फटती छाती।”

श्रद्धेय अशोक सिंहल ने श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के माध्यम से भाषा, संप्रदाय, वर्ग, जाति के सभी हिन्दुओं को एकजुट कर स्वामी विवेकानंद के विचारों को साकार रूप प्रदान करते हुए राम मंदिर आंदोलन के माध्यम से संपूर्ण समाज में हिन्दू होने का गौरव भरने का अभिनव कार्य किया। जिसके परिणामस्वरूप श्री राम मंदिर के भव्य मंदिर निर्माण हो रहा है, लेकिन इसकी पूर्णाहुति नहीं होने वाली है जब तक कि सारा हिंदू समाज हिंदू होने के गौरव से भर न जाए।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रोफ़ेसर अरविन्द प्रभाकर जामखेडकर ने इस विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि विभिन्न लोग ने हिंदू शब्द की व्याख्या अलग-अलग करते रहे हैं। हखमनी साम्राराज्य के राजा इंडस के बाद इंडिया और फिर हिंदू कहने लगे। भारत में धर्म की संकल्पना बिल्कुल अलग रही है और ऐसा भी कहा जा सकता है कि उस समय इस्लाम से व्यतिरिक्त सभी लोग हिंदू रहे होंगे। अंबेडकर जी ने कहा था कि जब मैं जन्मा तो हिंदू था, लेकिन जब मरूंगा तो हिंदू नहीं रहूंगा, परन्तु ऐसा उन्होंने राजनीतिक और सामाजिक परंपरा की वजह से कहा होगा। इस वजह से हिंदू शब्द को लेकर अनेक विचार प्रचलित हो गए। अलग-अलग यूरोपियन विद्वानों ने वेदों को और हिंदुओं को काल विशेष में बांधने का प्रयास किया जो कि सत्य नहीं है। वेदों से आ रही परंपरा को ही हम सनातन और हिंदू धर्म कहते हैं।

हिंदू इस अर्थ में यहूदी, ईसाई और इस्लाम से अलग है कि इन लोगों ने अपनी निरंतर परंपराओं को छोड़ दिया, लेकिन हिन्दू परम्परा में सातत्य रहा। हमारे हिंदू धर्म ने तीन ऋण देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण लेकर आते हैं, इसलिए हम यदि यज्ञ और वेदों का अध्ययन नहीं कहते हैं तो हम इन ऋणों से मुक्त नहीं हो सकते और हमको मोक्ष भी प्राप्त नहीं हो सकता। वहीं भगवत गीता में आगम धर्म की बात कहते हुए कहा गया कि कर्म करते हुए मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है और इसीलिए राजा को लोक धर्म करने के कारण राजर्षि बताया गया। राजा संन्यास नहीं ले सकता, परंतु वह अपना कर्म करते हुए मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। इस संबंध में बौद्ध पंथ में बोधिसत्व परंपरा आगम धर्म के ही समान है जो यह कहती है कि जब तक अंतिम दुखी व्यक्ति है तब तक मैं यहां आता रहूंगा। हिंदू धर्म यह परंपरा रही है कि गृहस्थ आश्रम में होते हुए भी मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। शंकराचार्य ने बताया कि विभिन्न आगमों का पालन उनके सभी अनुयायी करते रहेंगे। ऐसा शंकराचार्य को इसलिए कहना पड़ा कि कालांतर में सूर्या आगम, गणपति आगम दक्षिण में कार्तिकेय(अयप्पा) जैसे विभिन्न आगम आए।

हमारे तीर्थ हिन्दू समाज की भावना और एकजुटता के आधार हैं। तीर्थों का आशय कहने का आशय यह है कि नदियों के जल से पावन होकर भगवान में श्रद्धा रखें और मोक्ष की प्राप्ति करें। तीर्थ दो प्रकार के होते हैं। जल तीर्थ और वे स्थान जहां पल महापुरुषों का अवतरण हुआ। ये सभी स्थान हमें सांस्कृतिक और भौगोलिक रूप से जोड़ते हैं। हमें हिन्दू होने पर गर्व होना चाहिए क्योंकि हिन्दू ही वह समाज है जो सभी को अंगीकार करता है।

Topics: स्मृति व्याख्यानअरुंधती वशिष्ठ अनुसंधान पीठश्रद्धेय अशोक सिंहल की पुण्यतिथिRev. Ashok SinghalMemorial LectureArundhati Vashishtha Research ChairDeath Anniversary of Rev. Ashok Singhalहिंदू धर्मHinduismश्रद्धेय अशोक सिंहल
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