न भूलने वाला पल
मुसलमान गांव के बाहर तलवारें लेकर डेरा डाले हुए थे। उन जिहादियों ने डरा-धमकाकर कइयों को मुसलमान बना दिया था। परंतु मेरी मां अडिग रहीं।
बलदेव राज
मुल्तान, पाकिस्तान
विभाजन के दौरान मेरी उम्र 11 साल थी, इसलिए उस समय जो कुछ भी हुआ, मुझे सब याद है। मेरे पिताजी का देहांत हो चुका था। ऐसे में हमारे पास जो खेती की जमीन थी, उसी से गुजारा चलता था। घर में माताजी और हम तीन भाई रहा करते थे। लेकिन माहौल इतना खराब होने लगा था कि आसपास के लोग कहने लगे थे कि मुसलमान हो जाओ।
एकाध लोग जो इससे भयभीत हो चुके थे, वे मुसलमान बनने के लिए तैयार तक हो गए थे। मुसलमान गांव के बाहर तलवारें लेकर डेरा डाले हुए थे। उन जिहादियों ने डरा-धमकाकर कइयों को मुसलमान बना लिया था। परंतु मेरी मां अडिग रहीं। उन्होंने कहा कि मैं और मेरे तीनों बच्चे मर जाएंगे पर मुसलमान नहीं बनेंगे। उन्होंने हम लोगों को छोड़कर गांव के सारे हिन्दुओं को मुसलमान बना दिया। यहां तक कि चाची और मौसी मुसलमान बन गईं।
जहां भी हिन्दू दिख जाते थे, मुसलमान उन्हें घेरकर मार देते थे। फिर एक दिन ऐसा आया कि हमें रेल मिली। रुकते-रुकाते हम जालंधर आ पाए। यहां पर हम सवा महीने रहे। इसके बाद हमें कुरुक्षेत्र के एक गांव में अस्थायी जमीन दी गई। फिर हम भारत में रहने लगे। आज जब उस पूरी आपबीती पर सोचने बैठता हूं तो मन उचाट हो जाता है। बंटवारे के दौरान हिन्दुओं पर बहुत जुल्म किया गया। उनका सब कुछ तहस-नहस हो गया। हमारी कई पीढ़ियां बर्बाद कर दीं
हालत यह हो गई थी कि अगर हम चाची के घर कुछ खा लेते थे तो मां बहुत डांटती थीं और कहती थीं कि वहां क्यों खाया, वे मुसलमान बन गई हैं। इसे देख-सुन चाची बहुत उदास हो जाती थी, क्योंकि बचपन से उन्होंने ही हमारी देखरेख की थी। दूसरी तरफ हालात यह हो गए थे कि जिहादी कभी भी हम लोगों की जान ले सकते थे। हमारे चाचा मुसलमान हो गए हैं, ऐसा पूरे गांव को पता था, जबकि यह महज दिखावा था।
एक दिन हमने वहां से निकलने का विचार किया। चाचा ने किसी तरह से सेना की मदद ली। गांव से सेना ने सबको निकाला। जब लोग निकल रहे थे तो स्थानीय मुसलमान कहने लगे कि ये तो मुसलमान बन गये हैं। तो फिर यहां से क्यों जा रहे हैं? एक ने कहा कि हम सिर्फ तुम्हें धोखा देने के लिए मुसलमान बने थे। किसी तरह से हम सभी निकट के एक शिविर में पहुंचे। यहां 15-20 दिन रहे। यहां भारी अव्यवस्था थी। डर भी था क्योंकि उन दिनों चारों तरफ मार-काट की ही खबरें सुनाई देती थीं।
जहां भी हिन्दू दिख जाते थे, मुसलमान उन्हें घेरकर मार देते थे। फिर एक दिन ऐसा आया कि हमें रेल मिली। रुकते-रुकाते हम जालंधर आ पाए। यहां पर हम सवा महीने रहे। इसके बाद हमें कुरुक्षेत्र के एक गांव में अस्थायी जमीन दी गई। फिर हम भारत में रहने लगे। आज जब उस पूरी आपबीती पर सोचने बैठता हूं तो मन उचाट हो जाता है। बंटवारे के दौरान हिन्दुओं पर बहुत जुल्म किया गया। उनका सब कुछ तहस-नहस हो गया। हमारी कई पीढ़ियां बर्बाद कर दीं।
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