मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा देने वाली नीति बननी चाहिए यह अत्यंत उचित विचार है : श्री मोहन भागवत

- नई शिक्षा नीति के कारण छात्र एक अच्छा मनुष्य बने, उसमें देशभक्ति की भावना जगे, वह सुसंस्कृत नागरिक बने यह सभी चाहते हैं।

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विजयदशमी पर्व पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री डॉ. मोहन भागवत ने बुधवार को नागपुर में अपना उद्बोधन दिया। इस दौरान उन्होंने शिक्षा व मातृभाषा को लेकर कहा कि विश्व में आये अथवा लाये गये सभी बड़े व स्थायी परिवर्तनों में समाज की जागृति के बाद ही व्यवस्थाओं तथा तंत्र में परिवर्तन आया है । मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा देने वाली नीति बननी चाहिए यह अत्यंत उचित विचार है, और नयी शिक्षा नीति के तहत उस ओर शासन/प्रशासन पर्याप्त ध्यान भी दे रहा है। परन्तु अपने पाल्यों को मातृभाषा में पढ़ाना अभिभावक चाहते हैं क्या? अथवा तथाकथित आर्थिक लाभ अथवा Career (जिसके लिए शिक्षा से भी अधिक आवश्यकता उद्यम, साहस व सूझबूझ की होती है) की मृग मरीचिका के पीछे चली अंधी दौड़ में अपने पाल्यों को दौड़ाना चाहते हैं? मातृभाषा की प्रतिष्ठा की अपेक्षा शासन से करते समय हमें यह भी देखना होगा कि हम हमारे हस्ताक्षर मातृभाषा में करते हैं या नहीं? हमारे घर पर नामफलक मातृभाषा में लगा है कि नहीं? घर के कार्य प्रसंगों के निमंत्रण पत्र मातृभाषा में भेजे जाते हैं या नहीं?

नई शिक्षा नीति के कारण छात्र एक अच्छा मनुष्य बने, उसमें देशभक्ति की भावना जगे, वह सुसंस्कृत नागरिक बने यह सभी चाहते हैं। परन्तु क्या सुशिक्षित, संपन्न व प्रबुद्ध अभिभावक भी शिक्षा के इस समग्र उद्देश्य को ध्यान में रख कर अपने पाल्यों को विद्यालय महाविद्यालयों में भेजते हैं ? फिर शिक्षा केवल कक्षाओं में नहीं होती। घर में संस्कारों का वातावरण रखने में अभिभावकों की; समाज में भद्रता, सामाजिक अनुशासन इत्यादि का वातारण ठीक रखने वाले माध्यमों की, जननेताओं की तथा पर्व, त्यौहार, उत्सव, मेले आदि सामाजिक आयोजनों की भूमिका का भी बराबरी का महत्व होता है। उस पक्ष पर हमारा ध्यान कितना है? बिना उसके केवल विद्यालयीन शिक्षा कदापि प्रभावी नहीं हो सकती है।

विविध प्रकार की चिकित्सा पद्धतियाँ समन्वित कर स्वास्थ्य की सस्ती, उत्तम गुणवत्ता की, सर्वत्र सुलभ तथा व्यापारिक मानसिकता से मुक्त व्यवस्था देने वाला स्वास्थ्य तंत्र शासन के द्वारा खड़ा हो यह संघ का भी प्रस्ताव है। शासन की प्रेरणा व समर्थन से भी व्यक्तिगत व सामाजिक स्वच्छता के, योग तथा व्यायाम के उपक्रम चलते हैं। समाज में भी ऐसा आग्रह रखने वाले, इन बातों का महत्व बताने वाले बहुत हैं। लेकिन इन सबकी उपेक्षा कर समाज अपने पुराने ढर्रे पर ही चलते रहा तो कौन सी ऐसी व्यवस्था है जो सबके स्वास्थ्य को ठीक रख सकेगी?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री डॉ. मोहन भागवत ने बुधवार को नागपुर में आयोजित विजय दशमी कार्यक्रम में शक्ति की साधना का आह्वान किया। इस अवसर पर उन्होंने शस्त्र पूजा भी की इस दौरान उनके साथ पहली बार महिला मुख्य अतिथि संतोष यादव मौजूद रहीं। संतोष दो बार माउंट एवरेस्ट फतेह करने वाली दुनिया की एक मात्र महिला हैं।

इस दौरान सरसंघचालक जी ने एक महिला को मुख्य अतिथि बनाए जाने को लेकर कहा- संघ के कार्यक्रमों में अतिथि के नाते समाज की प्रबुद्ध व कर्तृत्व संपन्न महिलाओं की उपस्थिति की परम्परा पुरानी है। व्यक्ति निर्माण की शाखा पद्धति पुरुष व महिला के लिए संघ तथा समिति की पृथक् चलती है। बाकी सभी कार्यों मे महिला पुरुष साथ में मिलकर ही कार्य संपन्न करते हैं।

 

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