इन दिनों केरल के विझिंगम में बन रहे पत्तन (पोर्ट) के विरोध की खबरें राज्य के स्थानीय मीडिया सहित सोशल मीडिया में छाई हुई हैं। वीडियो वायरल हो रहे हैं। ऐसा ही एक वीडियो ट्वीटर पर वायरल हो रहा है, जिसमें देखा जा सकता है कि चर्च के चोगाधारी स्थानीय निवासियों से ‘अडानी गो बैक’ ‘विझिंजम चलो’ के नारे लगवा रहे हैं।
दरअसल यह वे मछुआरे परिवार हैं, जो समुद्र के किनारे रहते हैं। चर्च के एजेंट इन्हें बहका रहे हैं कि इस पत्तन से ना केवल मछुआरों के रहने का संकट खड़ा होगा, बल्कि पर्यावरण को बहुत हानि होगी। बस इसी एजेंडे की आड़ लेकर चर्च खुलकर इस पत्तन का विरोध कर रहा है। यह पहली बार नहीं है, जब देश की किसी विकासकारी परियोजना का चर्च खुलकर विरोध कर रहा है। इससे पहले भी चर्च ने विदेशी इशारों पर कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं का ना केवल विरोध किया, बल्कि लोगों को मौत के मुंह तक में धकेला है।
पत्तन का रुका हुआ है काम
स्थानीय मछुआरों के विरोध के चलते अडानी द्वारा बनवाए जा रहे विझिंगम पत्तन के निर्माण का काम रुका हुआ है। चर्च द्वारा मछुआरों से कहलवाया जा रहा है कि विझिंगम पत्तन में सीमेन्ट और मसाले का अवैज्ञानिक निर्माण, पुलिमट्ट (बनावटी समुद्री दीवार) की वजह से तटीय इलाके का क्षरण बढ़ जाएगा। इससे पर्यावरण को नुकसान होगा। मछलियां प्रभावित होंगी और कारोबार चौपट हो जाएगा। पिछले दिनों हुए विरोध प्रदर्शन को प्रभावी बनाने के लिए तिरुवनंतपुरम शहर के सभी चर्चों में काले झंडे लगाए गए थे।
लैटिन कैथोलिक आर्चडायसी ने इस मामले पर कहा कि यह विरोध प्रदर्शन अगस्त के अंत तक जारी रहेगा। अगर सरकार कुछ करती है तो ठीक है, नहीं तो हम आगे अपने आंदोलन की रणनीति तय करेंगे। जबकि इस मसले पर केरल सरकार रुख सकारात्मक नजर आता है। वह मानती है कि यह पत्तन केरल के विकास में मददगार बनेगा। लेकिन दूसरी तरफ चर्च के दबाव में दबे स्वर में यह भी कह रही है कि वह इस पत्तन का निर्माण नहीं रुकवा सकती, क्योंकि इसमें केंद्र सरकार भी शामिल है।
यह राज्य सरकार की परियोजना नहीं है। उच्चतम न्यायालय और राष्ट्रीय हरित ट्रिब्यूनल ने इसकी अनुमति दी है। राज्य के परिवहन मंत्री एंटोनी कहते हैं कि समुद्र तट पर इस पत्तन की वजह से जिन मछुआरों के घर प्रभावित होंगे, सरकार उन्हें फ्लैट देगी। केरल के विकास के लिए यह पत्तन बहुत जरूरी है।
मिशनरियों का भारत विरोधी प्रपंच
यह पहली बार नहीं है जब चर्च देश में विकासकारी परियोजनाओं के विरोध में खुलकर सामने आया है। इससे पहले भारत-रूस सहयोग से स्थापित कुडनकुलम परमाणु संयंत्र से नाखुश कुछ विदेशी ताकतों ने इस परियोजना को अटकाने के लिए वर्षों तक ईसाई मिशनरी संगठनों का इस्तेमाल कर धरने-प्रदर्शन करवाए थे।
केंद्र की तत्कालीन संप्रग सरकार में मंत्री वी. नारायणस्वामी ने तो यहां तक आरोप लगाते हुए कहा था कि कुछ विदेशी ताकतों ने इस परियोजना को बंद कराने के लिए धरने-प्रदर्शन कराने के लिए तमिलनाडु के एक बिशप को 54 करोड़ रुपये दिए थे।
इस मामले में विदेशी चंदा प्राप्त कर रहे चार एनजीओ पर कार्रवाई भी की गई थी। इसी प्रकार का दूसरा मामला वेदांता द्वारा तूतीकोरिन में लगाए गए स्टरलाइट कॉपर प्लांट का भी रहा है। इस प्लांट को बंद कराने में भी चर्च का ही हाथ था।
तांबे का आठ लाख टन सालाना उत्पादन करने में सक्षम यह प्लांट अगर बंद न होता, तो भारत तांबे के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर हो गया होता। यह कुछ देशों को पसंद नहीं आ रहा था।
इसलिए उनके द्वारा मिशनरी संगठनों का इस्तेमाल कर पादरियों से यह दुष्प्रचार कराया कि यह प्लांट शहर की हर चीज को जहरीला बना देगा। इस दुष्प्रचार के बाद हिंसा भड़की और पुलिस गोलीबारी में 13 लोग मारे गए। नतीजतन इस प्लांट को बंद कर दिया गया।
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