महान क्रांतिकारी, वनवासी अस्मिता संस्कृति के रक्षक भगवान बिरसा मुंडा, धरती आबा ने दिया था नारा- “अबुआ दिशोम अबुआ राज”
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महान क्रांतिकारी, वनवासी अस्मिता संस्कृति के रक्षक भगवान बिरसा मुंडा, धरती आबा ने दिया था नारा- “अबुआ दिशोम अबुआ राज”

बिरसा मुंडा ने 1895 से 1900 तक वनवासी अस्मिता, स्वतंत्रता और संस्कृति को बचाने के लिए विद्रोह किया

by WEB DESK
Nov 15, 2023, 09:30 am IST
in भारत, झारखण्‍ड
भगवान बिरसा मुंडा

भगवान बिरसा मुंडा

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जनजातियों को जल, जंगल और जमीन से बेदखल किये जाने के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले थे भगवान बिरसा मुंडा। उन्हें ‘धरती आबा’ के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजी हुकूमत, ईसाईयत, जमींदारी प्रथा और सूदखोर महाजनी व्यवस्था के खिलाफ उनके ऊलगुलान (महाविद्रोह) को प्रतिनिधि घटना के तौर पर याद किया जाता है। बिरसा मुंडा ने 1895 से 1900 तक वनवासी अस्मिता, स्वतंत्रता और संस्कृति को बचाने के लिए विद्रोह किया।

महान क्रातंकारी बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को रांची जिले के उलिहातु गांव में हुआ था। बिरसा मुंडा ने जनजातीय समाज को ईसाइयों के कन्वर्जन से, अत्याचारों से समाज को बचाया। समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त किया। वह महान क्रांतिकारी थे। उन्होंने जनजातीय समाज को साथ लेकर उलगुलान किया था। उलगुलान अर्थात हल्ला बोल, क्रांति का ही एक देशज नाम। वह महान संस्कृतिनिष्ठ, समाज सुधारक, संगीतज्ञ भी थे। सूखे कद्दू से एक वाद्ध्य यंत्र का भी अविष्कार किया था जो अब भी बड़ा लोकप्रिय है। इसी वाद्ध्य यंत्र को बजाकर वे आत्मिक सुख प्राप्त करते थे और वंचित, पीड़ित समाज को संगठित करने का कार्य करते थे।

सूखे कद्दू से बना यह वाद्ध्य यंत्र आज भी भारतीय संगीत जगत में वनक्षेत्रों से लेकर बॉलीवुड तक लोकप्रिय है। भारतीय समाज का एक महत्वपूर्ण व अविभाज्य अंग है जनजातीय समाज। मूलतः प्रकृति पूजक यह समाज सदा से भौतिकता, आधुनिकता व धनसंचय से दूर रहा है। बिरसा भगवान भी मूलतः इसी जनजातीय समाज के थे। उन्होंने “अबुआ दिशोम रे अबुआ राज” अर्थात अपनी धरती अपना राज का नारा दिया था।

आज सबसे बड़ी जरूरत इस बात की है कि वनवासी समाज में घुसपैठ कर रही ईसाई मिशनरियों को रोका जाए। ईसाई मिशनरियां न केवल उनका मतांतरण कर रही हैं बल्कि हिंदू समाज से भी दूर ले जा रही हैं। यदि हम भारत के जनजातीय समाज व अन्य समाजों में परस्पर एकरूपता की बात करें तो कई—कई अकाट्य तथ्य सामने आते हैं। कथित तौर पर जिन्हें आर्य व द्रविड़ अलग अलग बताया गया, उन दोनों का डीएनए परस्पर समान पाया गया है। दोनों ही शिव के उपासक हैं। प्रसिद्ध एन्थ्रोपोलाजिस्ट वारियर एलविन, जो कि अंग्रेजों के एडवाइजर थे, ने जनजातीय समाज पर किए अध्ययन में बताया था कि ये कथित आर्य और द्रविड़ शैविज़्म के ही एक भाग हैं और गोंडवाना के आराध्य शंभूशेक भगवान शंकर का ही रूप हैं। माता शबरी, निषादराज, सुग्रीव, अंगद, सुमेधा, जाम्बवंत, जटायु आदि आदि सभी जनजातीय बंधु भारत के शेष समाज के संग वैसे ही समरस थे जैसे दूध में शक्कर समरस होती है। प्रमुख जनजाति गोंड व कोरकू भाषा का शब्द जोहारी रामचरितमानस के दोहा संख्या 320 में भी प्रयोग हुआ है। मेवाड़ में किया जाने वाला लोक नृत्य गवरी व वोरी भगवान शिव की देन हैं, जो कि समूचे मेवाड़ी हिंदू समाज व जनजातीय समाज दोनों के द्वारा किया जाता है।

बिरसा मुंडा, टंट्या भील, रानी दुर्गावती, ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव, अमर बलिदानी बुधू भगत, जतरा भगत, लाखो बोदरा, तेलंगा खड़िया, सरदार विष्णु गोंड आदि कितने ही ऐसे वीर जनजातीय बंधुओं के नाम हैं, जिन्होंने अपना सर्वस्व भारत देश की संस्कृति व हिंदुत्व की रक्षा के लिए अर्पण कर दिया।

जब विदेशी आक्रांता गजनी आराध्य सोमनाथ पर आक्रमण कर रहा था, तब अजमेर, नाडोल, सिद्धपुर पाटन और सोमनाथ के समूचे प्रभास क्षेत्र में हिंदू धर्म रक्षार्थ जनजातीय समाज ने एक व्यापक संघर्ष खड़ा कर दिया था। गोपालन व गोसंरक्षण का संदेश बिरसा मुंडा जी ने भी समान रूप से दिया है। क्रांतिसूर्य बिरसा मुंडा का “उलगुलान” संपूर्णतः हिंदुत्व आधारित ही है। ईश्वर यानी सिंगबोंगा एक है। गो की सेवा करो एवं समस्त प्राणियों के प्रति दया भाव रखो। अपने घर में तुलसी का पौधा लगाओ। ईसाइयों के मोह जाल में मत फंसो। परधर्म से अच्छा स्वधर्म है। अपनी संस्कृति, धर्म और पूर्वजों के प्रति अटूट श्रद्धा रखो। गुरुवार को भगवान सिंगबोंगा की आराधना करो व इस दिन हल मत चलाओ, यह सब संदेश भगवान बिरसा मुंडा ने दिए हैं।

Topics: धरती आबाक्रांतिकारीभगवान बिरसा मुंडाLord Birsa Mundaजनजातीय समाजबिरसा मुंडा जयंतीकौन थे बिरसा मुंडा
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