कर्नाटक की तुलसी गौड़ा 61 वर्ष से पर्यावरण संरक्षण का काम कर रही हैं। अब तक उन्होंने 30,000 से अधिक पौधे लगाए हैं। इसके साथ ही वे बीज संरक्षण में सिद्धहस्त हैं
कहा जाता है कि सेवा करने वाला व्यक्ति न तो सुविधा देखता है और न ही उम्र। कुछ ऐसा ही तुलसी गौड़ा के जीवन को देखकर लगता है। तुलसी 73 वर्ष की हैं, पर कोई युवा भी उनके काम का मुकाबला नहीं कर सकता। ये पिछले 61 वर्ष से पेड़-पौधे लगा रही हैं। यही नहीं, वे पौधों के बीजों का संरक्षण भी करती हैं। उन्होंने अब तक 30,000 से अधिक पौधे लगाए हैं और उनकी देखरेख वही करती हैं। हालांकि उनके इस बड़े कार्य को देखते हुए वन विभाग भी उनकी मदद करता है।
तुलसी कर्नाटक के होनाली गांव की रहने वाली हैं। उनका विवाह केवल 12 वर्ष की आयु में हो गया था। वे जनजाति परिवार से आती हैं। इसलिए जंगल से उनका पुराना नाता रहा है। कहा जाता है कि विवाह के कुछ वर्ष बाद जलावन और अन्य वस्तुओं के लिए तुलसी निरंतर जंगल जाने लगीं। उन्हीं दिनों उनमें पेड़-पौधों के प्रति ऐसा लगाव पैदा हुआ कि उन्होंने पेड़-पौधों के रोपण और संरक्षण को ही अपना ध्येय बना लिया। इसके बाद जब भी घरेलू कार्य से समय मिलता, वे जंगल चली जातीं। उन्होंने सूखे पेड़ों की जड़ों में पानी डालना शुरू किया। इसके साथ ही जंगल में जहां खाली जमीन मिलती, वहां पौधे लगाने लगीं। इस उम्र में भी उन्होंने यह काम नहीं छोड़ा है।
पद्मश्री से पहले तुलसी गौड़ा को ‘इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र पुरस्कार,’ ‘राज्योत्सव पुरस्कार’, ‘कविता मेमोरियल’ जैसे कई सम्मान मिले हैं। तुलसी अभी भी कई पौधों के बीज जमा करने के लिए स्वयं वन विभाग की नर्सरी तक जाती हैं और अगली पीढ़ी को भी यही संस्कार दे रही हैं।
पौधे लगाने के दौरान उन्हें नई पौध की कमी हुई तो उन्होंने खुद ही पौधों के बीजों को जमा करना शुरू किया। गर्मियों में उनका काम बीज संंकलन का होता है। वे महीनों तक उन बीजों को संभालती हैं, उनकी पौध तैयार करती हैं, फिर वर्षा ऋतु मेें उन्हें लगाती हैं। आज उन्हें पौधों के बीजों के बारे में इतनी जानकारी है कि उनके सामने पढ़े-लिखे बीज विशेषज्ञ भी अपने को अल्पज्ञानी मानते हैं। कभी स्कूल नहीं जाने वालीं तुलसी को आज ‘वन का विश्वकोश’ कहा जाता है।
पर्यावरण और बीज संरक्षण में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें 2021 में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। सम्मान प्राप्त करने के लिए तुलसी पारम्परिक वेशभूषा और नंगे पैर राष्टÑपति भवन पहुंची थीं। उनकी इस सादगी को देखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वहां उपस्थित सभी लोग तालियां बजाने के लिए विवश हो गए थे।
पद्मश्री से पहले तुलसी गौड़ा को ‘इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र पुरस्कार,’ ‘राज्योत्सव पुरस्कार’, ‘कविता मेमोरियल’ जैसे कई सम्मान मिले हैं। तुलसी अभी भी कई पौधों के बीज जमा करने के लिए स्वयं वन विभाग की नर्सरी तक जाती हैं और अगली पीढ़ी को भी यही संस्कार दे रही हैं।
तुलसी वास्तव में ‘तुलसी’ हैं। अब उनके गुणों की सुगंध सागर पार तक महसूस की जा रही है।
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