जब आप ‘द कन्वर्जन’ नाम सुनते हैं, इस नाम से ही आप फिल्म की पटकथा का अनुमान लगा लेते हैं। मैने भी फिल्म की कहानी का अनुमान लगाया था।
फिल्म रिलीज होने से पहले सोशल मीडिया पर चर्चा प्रारंभ हो गई थी। उस दौरान फिल्म को लेकर दो पूर्वाग्रह मेरे मन में भी थे। पहला कि फिल्म में कोई कहानी नहीं होगी। एक लड़की होगी। किसी विधर्मी से उसकी शादी होगी और फिल्म के अंत में लड़की को सूटकेस में भरा हुआ दिखाएंगे। कश्मीर फाइल्स की सफलता पर सवार होकर यह फिल्म वैतरनी पार करेगी। इस फिल्म में अपना दिखाने के लिए कुछ खास नहीं होगा। दूसरी बात, इन सबके बावजूद सोशल मीडिया पर इस फिल्म पर जमकर चर्चा होगी। विवाद होगा। खबरिया चैनलों पर डिबेट होगी। फिल्म को लेकर दोनों ही बातें गलत साबित हुई।
काशी के पंडित रामेश्वर मिश्र की बेटी साक्षी मिश्रा की कहानी कुछ इस तरह से बुनी गई है कि यह फिल्म की कहानी से अधिक हमारे आपके बीच की कहानी बन लगती है। साक्षी एक ऐसी लड़की है, जो दोस्तों के साथ पार्टी करती है, नाचती है, गाती है, दूसरों पर विश्वास करती है। किसी का बुरा नहीं चाहती। एक दिन उसे बबलू से प्यार हो जाता है। बबलू के प्रेम में वह कोर्ट में भी शादी के लिए राजी हो जाती है। मैरिज कोर्ट में उसे पहली बार पता चलता है कि जिस बबलू को वह प्रेम करती है, जो बबलू हिन्दू धर्म ग्रंथों के हवाले से उसे हमेशा ज्ञान की चार बातें समझाता था, जो बबलू हमेशा कॉलेज कलावा बांधकर ही आता था, वह वास्तव में बबलू ही था लेकिन उसका पूरा नाम बबलू इकबाल शेख था। प्रेम में होने की वजह से साक्षी ने उसके संबंध में अधिक जानकारी लेने की कोशिश ही नहीं की। बबलू उसे विश्वास दिलाता है कि उसके घर में साक्षी की आस्था पर पूरा सम्मान रखा जाएगा। कभी इस्लामिक रीति रिवाज को मानने के लिए उस पर दबाव नहीं डाला जाएगा। वह अपनी मर्जी से अपनी जिन्दगी जी सकती है। यहां से कहानी पूरी तरह बदल जाती है। कॉलेज के हंसी मजाक से फिल्म अचानक बाहर निकल आती है। इस फिल्म की आगे की कहानी सिनेमा हॉल में देखी जानी चाहिए।
जब पंडित रामेश्वर मिश्रा जीते जी अपनी बेटी का गंगा घाट पर पिंड दान करते हैं। यह दृश्य किसी भी संवेदनशील व्यक्ति की आंखे गिली कर देगा। यह फिल्म प्रेम विवाह के खिलाफ नहीं है। फिल्म धोखेबाजों के खिलाफ है। मुसलमान होकर दो-चार लाख रुपयों के लिए हिन्दू लड़कियों से हिन्दू नाम रखकर प्रेम के नाटक को कोई भी मौलाना या मुल्ला भी सही नहीं ठहरा सकता। ऐसा नाटक करने वाले लड़कों को यह समझा कर प्रेम के खेल में लगाया जाता है कि तुम्हारे इस्लाम की दावत हिन्दू लड़की ने कुबूल कर लिया तो इस्लाम का इससे कुनबा बढ़ेगा और यह हम मुसलमानों के हक में होगा।
दिल्ली के चाणक्यपुरी में हुए फिल्म के प्रीमियर पर बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने कहा कि ”द कन्वर्जन ऐसी पहली फिल्म है, जिसे मैने सात बार देखी है।” फिल्म को रिलीज होने के लिए सेंसर बोर्ड में भी काफी संघर्ष करना पड़ा। सेंसर की चली कैंची ने फिल्म की धार को हो सकता है, थोड़ा कुंद किया हो। लेकिन यह फिल्म हिन्दू—मुस्लिम—सिख—ईसाई सभी बेटियों को खास तौर पर देखनी चाहिए। जिससे बेटियां समाज में चल रहे ‘लव जिहाद’ को पहचान सकें और लव जिहादी तत्वों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर सकें।
फिल्म को विनोदी तिवारी ने बनाया है। फिल्म की मुख्य किरदार साक्षी मिश्रा की भूमिका बनारस की बेटी विंध्या तिवारी ने निभाई है। लव जिहादी प्रतीक शुक्ला बने हैं। मनोज जोशी ने पंडित रामेश्वर मिश्रा की भूमिका में जान डाल दिया है। फिल्म में रवि भाटिया, विभा छिब्बर, अमित बहल, संदीप यादव और सुशील सिंह की भूमिका भी अहम है। फिल्म की पटकथा वंदना तिवारी ने लिखी है।
इस फिल्म के ओटीटी प्लेटफॉर्म या यू ट्यूब पर आने का इंतजार नहीं किया जाना चाहिए। इसे पूरे परिवार के साथ देखिए। ऐसे विषयों पर दूसरे निर्माता निर्देशक भी फिल्म बनाने का जोखिम उठाने का साहस करें, इसके लिए यह जरूरी है कि हम और आप मिलकर उनका हाथ मजबूत करें। उनकी फिल्में देखें और ऐसी फिल्मों का प्रचार करें।
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