कांग्रेस के महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के बयान,पार्टी हाई कमान को अभी भी सियासी संदेश दे रहे हैं कि उनकी इच्छाओं का सम्मान किया जाए। कयास लग रहे हैं हरीश रावत कांग्रेस में एक और विभाजन का ताना बाना बुन रहे हैं। उत्तराखंड की राजनीति में हरीश रावत, कांग्रेस के वो नेता हैं जिनकी वजह से कांग्रेस को और राज्य की सियासत को असहज होना पड़ा है।
नारायण दत्त तिवारी की सरकार के समय हरीश रावत, पांच साल तिवारी को हटाने के लिए जुगत करते रहे। पार्टी हाई कमान ने नारायण दत्त तिवारी का कद देखते हुए उन्हें पांच साल मुख्यमंत्री बनाये रखा। 2012 में कांग्रेस जब लौटी तो हरीश रावत के व्यवहार को देखते हुए हाई कमान ने विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया। ढाई साल तक वो केंद्र में मंत्री होने के बावजूद उत्तराखंड के सीएम की गद्दी की लालसा में बहुगुणा के लिए कांटे बिछाते रहे। जब मुख्यमंत्री बने तब अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने की राजनीति में मशगूल रहे। नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस से विजय बहुगुणा, सतपाल महाराज, यशपाल आर्य, हरक सिंह सुबोध उनियाल जैसे दिग्गज पार्टी छोड़ कर चले गए। उनके स्टिंग ऑपरेशन हुए उसके बाद 2017 में विधानसभा चुनाव हुए कांग्रेस की सरकार चली गयी और खुद मुख्यमंत्री हरीश रावत दो विधानसभा चुनाव क्षेत्रों से चुनाव हार गए।
अब जब 2022 का चुनाव आया तो पार्टी हाई कमान को उन्होंने दबाव में लेना शुरू किया और उन्होंने क्षेत्रीय दल उत्तराखंड क्रांति दल के नेताओं से मेल मिलाप कर पार्टी हाई कमान को ऐसा संदेश दिया कि उनके नेतृत्व में चुनाव नहीं लड़ा गया और उन्हें सीएम का चेहरा नहीं घोषित किया तो वो कांग्रेस का विभाजन कर देंगे। कांग्रेस हाई कमान ने चुनाव संचालन समिति की बागडोर तो उन्हें दे दी, लेकिन सीएम का चेहरा घोषित नहीं किया। हाई कमान को पता था कि यदि रावत चेहरा बने तो कांग्रेस की लुटिया डूब जाएगी। कांग्रेस हाई कमान चाहता था कि यदि सरकार आयी तो प्रीतम सिंह मुख्यमंत्री बने, जबकि हरीश रावत खुद ही अपने आप को सीएम पद के चेहरे होने की घोषणा करने लगे। कांग्रेस हाई कमान इस विवाद में इस लिए पड़ना नहीं चाहते थे उन्हें डर था कि कहीं बाकी नेता नाराज होकर पार्टी न छोड़ जाएं क्योंकि हरीश रावत से नाराज होकर ही कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय और कुछ और विधायक और नेता पार्टी छोड़ कर बीजेपी में चले गए और जो बीजेपी से हरक सिंह जैसे लोग कांग्रेस में वापसी कर रहे थे उन्हें भी हरीश रावत के नेतृत्व से ही एतराज था।
अब विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, हरीश रावत का गुब्बार पार्टी हाई कमान पर एक बार फिर से निकलने लगे हैं। हरीश रावत की स्थिति ऐसी हो गयी थी कि उन्हें पहले रामनगर से टिकट दिया। वहां विरोध हो गया और उन्हें लालकुआं जा कर चुनाव लड़ना पड़ा। वहां मतदान के बाद जो रुझान मिला है कि उनकी सीट फंसी हुई है, लेकिन उनके तेवर में कोई कमी नहीं है। हरीश रावत ये गुब्बार अब निकाल रहे हैं हाई कमान ने उनके बेटे आनंद रावत को टिकट नहीं दिया। जबकि हरीश रावत की बेटी अनुपमा को हरिद्वार देहात से टिकट दिया गया। यानि वो अपने परिवार के लिए तीन से चार टिकट के लिए हाई कमान पर दबाव बनाए हुए थे। अभी उत्तराखंड में कांग्रेस के बहुमत को लेकर कयास ही लग रहे हैं। खुद हरीश रावत ये कह रहे हैं कि मतदाताओं के मन की कोई नहीं जानता तो भी वो कहते है "उनकी इच्छा है कि वो ही आगे नेतृत्व करें।"
अक्सर देखा गया है कि राष्ट्रीय राजनीति में जब कोई बड़ा नेता कांग्रेस छोड़ कर जाता है तो हरीश रावत का बयान हाई कमान पर दबाव बनाने के लिए मीडिया में सुर्खियां बटोरने लगता है। बीते दिन जब पूर्व कानून मंत्री अश्वनी कुमार कांग्रेस छोड़ गए तो उनका बयान आ गया। उत्तराखंड में कांग्रेस का भविष्य अगली दस मार्च को तय हो जाना है। यदि कांग्रेस बहुमत के पास पहुंची तो पार्टी के भीतर नेतृत्व की लड़ाई होनी निश्चित है। यहीं से कांग्रेस के विभाजन रखी जाएगी। ये भी माना जा रहा है कि कांग्रेस सत्ता में नहीं आयी तो हार का ठीकरा भी हरीश रावत के सिर ही फूटेगा। उन्हें पार्टी के भीतर मुस्लिम यूनिवर्सिटी, जुमे की नमाज और पार्टी के भीतर गुटबाजी करने का जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
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