गत दिनों सरस्वती नदी को पुनर्जीवित करने की दृष्टि से हरियाणा के मुख्यमंत्री और मनोहर लाल और हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के बीच एक बहुत ही महत्वपूर्ण समझौता हुआ है। इस बांध के बन जाने से सरस्वती नदी में समय—समय पर पानी छोड़ा जाएगा। इस तरह सरस्वती नदी का प्रवाह बना रहेगा। समझौते के बाद हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा, ''मेरा 35 वर्ष पुराना सपना साकार हो गया।'' उल्लेखनीय है कि मनोहर लाल ने सरस्वती नदी के पुनरुद्धार को लेकर 1986—87 में यमुनानगर के आदिबद्री से लेकर गुजरात के कच्छ तक की यात्रा की थी।
आदिबद्री बांध हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में 31.66 हेक्टेयर भूमि पर बनेगा। 215.33 करोड़ रु. की लागत से बनने वाले इस बांध में प्रतिवर्ष 224.58 हेक्टेयर मीटर पानी का भंडारण होगा। इसमें से 162 हेक्टेयर मीटर पानी हरियाणा को और 61.88 हेक्टेयर मीटर पानी हिमाचल प्रदेश को मिलेगा। बांध की चौड़ाई 101.06 मीटर और ऊंचाई 20.05 मीटर होगी। बांध से एक वर्ष के अंदर 20 क्यूसेक पानी सरस्वती नदी में प्रवाहित होगा। हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड के पूर्व उपाध्यक्ष प्रशांत भारद्वाज मानते हैं कि इससे प्राचीन काल में विलुप्त हुई सरस्वती नदी को पुनर्जीवित कर धरातल पर लाने में मदद मिलेगी।
बता दें कि इस बांध को बनाने का प्रस्ताव नाहन के विधायक डॉ. राजीव बिंदल ने 2018 में हिमाचल प्रदेश और हरियाणा सरकार के सामने रखा था। फिर इसे केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के सामने भी रखा गया और इससे भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण को भी जोड़ा गया। इसके बाद ही भूमि चयन की बात आगे बढ़ी। बांध के लिए 77 एकड़ भूमि हिमाचल प्रदेश सरकार और 11 एकड़ भूमि हरियाणा सरकार देगी। हिमाचल की ओर दी जा रही 77 एकड़ भूमि में से 75 एकड़ वन भूमि है और दो एकड़ निजी है। इस बांध के कारण जो विस्थापन होगा, उसका पूरा खर्च हरियाणा सरकार उठाएगी।
उल्लेखनीय है कि सरस्वती नदी प्राचीन समय में हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, गुजरात और राजस्थान में बहती थी। नासा के अनुसार लगभग 5,500 वर्ष पूर्व धरती पर सरस्वती नदी का अस्तित्व था। यह नदी लगभग आठ किलोमीटर चौड़ी और 1600 किलोमीटर लंबी थी। उस समय सरस्वती नदी अरब सागर में मिल जाती थी। ऐसा माना जाता है कि लगभग 4,000 वर्ष पूर्व प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण सरस्वती नदी विलुप्त हो गई। विज्ञान के अनुसार जब नदी सूखती है तो जहां-जहां पानी गहरा होता है, वहां-वहां तालाब या झीलें रह जाती हैं। ये तालाब और झीलें अर्धचंद्राकार रूप में पाई जाती हैं। आज भी कुरुक्षेत्र में ब्रह्मसरोवर या पेहवा में इस प्रकार के अर्धचंद्राकार सरोवर देखने को मिलते हैं, लेकिन ये भी सूख गए हैं। ये सरोवर इस बात के प्रमाण हैं कि इस स्थान पर कभी कोई विशाल नदी बहती रही थी।
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