हरियाणा के पानीपत में आज से लगभग 261 वर्ष पूर्व 14 जनवरी 1761 को सवा लाख से ज्यादा मराठा सैनिक 1 महीने से उत्तर भारत की हड्डियों को कंपकंपाने वाली ठंड में श्रीमंत सदाशिवराव भाऊ के नेतृत्व में डटे हुए थे। विषम परिस्थितियों में भी मकर संक्रांति के दिन भयानक और भीषण लड़ाई और इन सैनिकों ने प्राणप्रण से शत्रु को पराजित करने के लिए युद्ध किया। मराठा सैनिक जिन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज के हिंदवी स्वराज्य की स्थापना में अपना तन मन और धन सब कुछ समर्पित किया था। मराठा यानि पाटिल, देशमुख, चितपावन ब्राह्मण, धनगर, देशस्थ कराडे ब्राह्मण, कुनबी, कोली, महार, माली, बंजारी और अनेक जातियां थी। यहां तक कि मुसलमान भी थे। इन सब को मराठे कहते थे। उस मकर संक्रांति के दिन संपूर्ण महाराष्ट्र एकजुट होकर मराठा बन कर लड़ा था। उनके साथ मध्यभारत के भी अनेक वीर योद्धा लड़े थे।
बुराड़ी के घाट पर दत्ता जी सिंधिया के बलिदान से पुणे के नाना साहब पेशवा के मन को झकझोर गई। पेशवा के नेतृत्व में लड़ने के लिए होलकर, शिंदे, गायकवाड़, भोंसले सभी तैयार। इस युद्ध में लड़ने वाले विभिन्न जातियों के होने के बावजूद सभी सैनिक हिंदवी स्वराज्य की अस्मिता के लिए प्राण प्रण से लड़े थे। सभी इस देश की रक्षा के लिए इस देश पर हुए विदेशी आक्रमण से लड़ने के लिए ही आये थे। वो वीर सैनिक पानीपत में लड़ने के लिए अपने राज्य विस्तार के लिए नहीं, बल्कि देश पर विदेशी आक्रांता को भगाने हराने के लिए आये थे। पानीपत के इस तीसरे युद्ध को इतिहास में पढ़ाया जाता है कि यह युद्ध मराठे बुरी तरह से हार गए थे, परंतु सच्चाई ये नहीं है। सच्चाई ये है कि अहमदशाह अब्दाली का इतना नुकसान हो गया था कि वह कभी भारत पर अपना शासन कायम न कर सका। युद्ध के 6 महीने बाद वह मराठों से संधि कर हमेशा के लिए अफगानिस्तान वापस लौट गया।
पानीपत के सिर्फ 10 वर्षों के बाद ही महादजी सिंधिया ने नजीब खान की क़ब्र खोद कर नष्ट कर दिया और दिल्ली पर फिर से मराठों का आधिपत्य हो गया। देश व धर्म पर आक्रमण करने वाले सारे आतंकवादी होते हैं और इनका प्रतिकार होना ही चाहिए, इसी बात को लेकर मराठे पानीपत का युद्ध लड़ने आये थे। परंतु दुर्भाग्य से आज कुछ लोग हमें केवल जाति संप्रदायों में विभक्त करने में लगे हैं। हम सारे हिंदू बांधव मिलकर देश को तोड़ने वाली ताकतों से लड़ेंगे और सैकड़ों वर्ष पूर्व हड्डियों को कंपकंपाने वाली ठंड में भूखे प्यासे रहकर देश की अखंडता और अस्मिता की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर करने वाले उन लाखों वीर सैनिकों के बलिदान को स्मरण करेंगे और सीख लेंगे तो ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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