1,400 बच्चों की 'मां' सिंधु ताई सपकाल नहीं रहीं
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होम भारत

1,400 बच्चों की ‘मां’ सिंधु ताई सपकाल नहीं रहीं

by WEB DESK
Jan 5, 2022, 10:43 am IST
in भारत, महाराष्ट्र
सिंधु ताई सपकाल

सिंधु ताई सपकाल

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प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता सिंधु ताई सपकाल का निधन 4 जनवरी को पुणे में हो गया। उन्होंने 1,400 अनाथ बच्चों को गोद लेकर उनके जीवन को सुधारा। इस कारण उन्हें अनाथ बच्चों की 'मां' कहा जाता था।

 

महाराष्ट्र में सैकड़ों अनाथ बच्चों के जीवन को संवारने वालीं सामाजिक कार्यकर्ता सिंधुताई सपकाल का 73 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वह लंबे समय से बीमार थीं और उनकी चिकित्सा पुणे के एक अस्पताल में हो रही थी। उनके निधन पर  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दु:ख प्रकट किया और उनके परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त की।

कभी रेलवे स्टेशन पर भीख मांगकर गुजारा करने वाली सिंधु ताई सपकाल ने करोड़ों महिलाओं को बताया कि उन्हें अपने जीवन में कभी निराश नहीं होना चाहिए। यदि जीवन में अंधेरा है, तो एक दिन उजाला भी होगा। इसी सोच के साथ उन्होंने जीवन में आने वाली हर आपदा का सामना किया। इसके साथ ही उन्होंने समाज सेवा का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया कि उनकी चर्चा देश—विदेश में होने लगी। तभी लोगों को पता चला कि सिंधु ताई सपकाल नामक कोई महिला भारत मेें समाज सेवा करती है। इसी समाज सेवा के लिए उन्हें नवंबर, 2021 में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से पद्मश्री सम्मान ग्रहण करतीं सिंधु ताई सपकाल

उनका जन्म महाराष्ट्र के वर्धा जिले के एक चरवाहे परिवार में हुआ था। सिंधु ताई का बचपन बहुत सारे कष्टों के बीच बीता। जब वह केवल नौ वर्ष की थीं तभी उनका विवाह एक उम्रदराज व्यक्ति से कर दिया गया। सिंधु ताई ने केवल चौथी कक्षा तक पढ़ाई की थी। विवाह के बाद वह आगे भी पढ़ना चाहती थीं, लेकिन ससुराल वालों ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया। इसके बाद भी उन्होंने पढ़ने की जिद की तो उन्हें गर्भावस्था मेें ससुराल से बाहर कर दिया गया। उनके साथ दुर्भाग्य यह रहा कि उनका साथ उनके मायके वालों ने भी नहीं दिया।

इसके बाद वह दर—दर भटकती रहीं। भीख मांग कर गुजारा करने लगीं। उसी अवस्था में उन्होंने एक बच्ची को जन्म दिया। उन्हीें दिनों उन्होंने अनाथ बच्चों के दर्द को समीप से देखा और उन्होंने उन बच्चों की सेवा करने का व्रत ले लिया। इसके बाद वे अनाथ बच्चों के लिए खाने की व्यवस्था करने लगीं। इसके लिए उन्होंने दिन—रात भीख मांगी। जब समाज ने उनके संघर्ष को देखा तो लोग उनकी मदद करने आगे आए। इसके बाद उन्होंने अनाथ बच्चों के लिए एक आश्रम बनवाया। इसी आश्रम में उन्होंने सैकड़ों बच्चों का जीवन संवारा। उनके इस कार्य के लिए उन्हें 700 से अधिक सम्मान मिले। सम्मानस्वरूप उन्हें जो भी राशि मिली उसे उन्होंने अनाथ बच्चों पर खर्च कर दिया। उन्हें डी वाई इंस्टिटूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड रिसर्च पुणे की ओर से डाॅक्टरेट की उपाधि भी मिल चुकी है। उनके जीवन पर मराठी फिल्म 'मी सिंधुताई सपकल' बनी है, जो 2010 में प्रदर्शित हुई थी। इस फिल्म को 54वें लंदन फिल्मोत्सव में भी दिखाया जा चुका है।
आज राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।  

 

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