भारत के चौथे प्रधानमंत्री व भारतरत्न मोरारजी देसाई को उनके शासनकाल में एक प्रशासनिक अधिकारी ने पहली जनवरी को नववर्ष की बधाई दी थी तो उन्होंने बधाई देने वाले को आश्चर्य से देखकर कहा था, ‘’किस बात की बधाई? इस यूरोपीय नववर्ष का न ही मेरे देश की संस्कृति और परम्पराओं से कोई संबंध है और न ही इतिहास से; फिर कैसी शुभकामनाएं!’’ अपने जीवनकाल में ‘जीवेत शरदं शतम्’ के वेदवाक्य को साकार करने वाले मोरारजी देसाई का यह प्रत्युतर सुनकर वह अधिकारी निरुत्तर रह गया था।
भारत के गौरवशाली इतिहास से अनजान पाश्चात्य संस्कृति की घोर भोगवादी जीवन शैली का अन्धानुकरण करने वाले भारतीयों की एक बड़ी जमात इस यूरोपीय नववर्ष के जश्न के नाम पर जिस तरह अर्द्धरात्रि को नशे में हुड़दंग-हंगामा करती है, रात को मदहोश होकर गाड़ी चलाकर दुर्घटनाएं करती है; नैतिक मूल्यों का पतन करने वाली यह प्रवृत्ति भारतीय संस्कृति के लिए चिंतनीय है। नववर्ष मनाने की इस परंपरा के प्रति भारतीयों का गहराता मोह दरअसल उस गुलाम मानसिकता का प्रतिफलन है जो भारत में अंग्रेजों के 190 साल के शासनकाल में विकसित हुई थी। वर्ष 1757 में भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना के साथ अंग्रेजों ने सुनियोजित षड्यंत्र के तहत भारत की ऋषि संस्कृति को मिटाने का कार्य किया। इस कुचक्र में लॉड मैकाले की बड़ी भूमिका थी। उसने अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा देने के नाम पर गुरुकुल प्रधान वैदिक शिक्षण पद्धति को बदला ताकि भारतीय अपने गौरवशाली अतीत से विमुख हो जाएं। भारत के प्राचीन इतिहास बदला गया, जिससे भारतीय अपने मूल इतिहास को भूल अंग्रेजों के बनाये इतिहास के पढ़ने और अपनाने लगे। ग्रिगेरियन कैलेंडर के मुताबिक पहली जनवरी को मनाया जाने वाले आधुनिक यूरोपीय नववर्ष का अंधानुकरण इसी का नतीजा है।
ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि नववर्ष उत्सव मनाने की शुरुआत 4000 वर्ष पहले से बेबीलोन में 21 मार्च से हुई थी जो कि वसंत के आगमन की तिथि (हिन्दुओं का नववर्ष ) भी थी। लेकिन; रोम के तानाशाह जूलियस सीजर को भारतीय नववर्ष के साथ यह उत्सव मनाना पसंद नहीं आया इसलिए उसके कहने पर रोम के तत्कालीन खगोलविदों ने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में पूर्व प्रचलित रोमन कैलेंडर को 310 से बढ़ाकर 365 दिन का कर दिया जो 12 महीने और 365 दिन का था। इसमें हर चार साल बाद फरवरी के महीने को 29 दिन का किया गया ताकि हर चार साल में बढ़ने वाला एक दिन इस कैलेंडर में समायोजित हो सके। इस जूलियन कैलेंडर के अनुसार नए साल की शुरुआत पहली से जनवरी से हुई, जिसे आज वैश्विक मान्यता हासिल है।
न ऋतु बदली, न मौसम, न सत्र, न फसल, न खेती, न पेड़-पौधों की रंगत, न सूर्य-चाँद-सितारों की दिशा, किसी बात में कोई नयापन नहीं फिर भी है नया साल। कितना अजीब विरोधाभास ! यहां हमारा मकसद किसी मत का विरोध बिल्कुल नहीं है परन्तु सभी भारतवासियों को यह बात जरूर समझनी चाहिए कि इंग्लिश कैलेंडर के बदलने से भारतीय वर्ष नहीं बदलता। हम भारतवासियों को आज यह बात पूरी गहरायी से समझने और हृदयंगम करने की जरूरत है कि जब पहली जनवरी को नववर्ष मनाने की परम्परा से राष्ट्रप्रेम, स्वाभिमान व श्रेष्ठताबोध जगाने वाला हमारे देश के गौरव का एक भी प्रसंग नहीं जुड़ा है तो इसे मनाने का औचित्य आखिर क्या है? आइये! नववर्ष की स्वदेशी परम्पराओं का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार करें।
पूनम नेगी
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