अरुण कुमार सिंह/ रितेश कश्यप
आज पूरे देश में स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। सरकारी और गैर-सरकारी दोनों स्तर पर अनेक कार्यक्रम हो रहे हैं। लेकिन जिन स्वतंत्रता-सेनानियों के बलिदान से हमें यह स्वतंत्रता मिली है, आज उनसे जुड़े स्थलों की उपेक्षा मन को बहुत दुखी करती है। एक ऐसे ही स्वतंत्रता सेनानी हैं लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक। लोकमान्य ने ही ‘स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ जैसा नारा दिया था।
इस नारे ने उन दिनों लोगों में स्वतंत्रता पाने की ऐसी ललक पैदा कर दी थी कि वे उनकी एक अपील पर सड़कों पर उतर आते थे। ऐसे महान स्वतंत्रता-सेनानी की जन्म और निर्वाणस्थली की दुर्दशा देखकर हर कोई दंग आश्चर्यचकित हो रहा है।
उल्लेखनीय है कि तिलक की जन्म और निर्वाणस्थली, दोनों की देखरेख की जिम्मेदारी महाराष्ट्र सरकार के पास है। वही महाराष्ट्र जहां कुछ वर्ष पहले सरकारी खर्च पर छत्रपति शिवाजी पर हमला करने वाले अफजल खान के मजार की मरम्मत कराई गई है। बता दें कि अफजल खान बीजापुर के शासक आदिल शाह का सेनापति था। उसने शिवाजी को धोखे से मारने के लिए उन्हें प्रतापगढ़ के किले के पास बुलाया था।
उसकी योजना गले मिलने के दौरान शिवाजी को मारने की थी, लेकिन शिवाजी उसे अच्छी तरह जानते थे और उन्होंने उसके हमले से पहले ही उसे बघनख से चीर डाला था। इस तरह अफजल मारा गया था। बाद में कुछ सेकुलर नेताओं की मदद से अफजल की एक मजार बना। उसकी मरम्मत का खर्च महाराष्टÑ सरकार उठाती है, लेकिन यही सरकार तिलक से जुड़े स्थलों की अनदेखी करती है।
उल्लेखनीय है कि लोकमान्य तिलक का जन्म 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र में रत्नागिरि जिले के एक गांव चिखली में हुआ था। इस कारण चिखली देशवासियों के लिए पुण्यस्थल है। उस पुण्यस्थल के दर्शन और वहां की चरण-धूलि लेने के लिए लोग प्रतिदिन बड़ी संख्या में आते हैं। इसके बावजूद उनकी जन्मस्थली सरकारी उपेक्षा का शिकार है। तिलक का पैतृक घर लगभग एक एकड़ में फैला है।
देखरेख के अभाव के कारण इसकी हालत बहुत ही खराब है। दीवारों पर घास उग आई है, दीवारें दरक रही हैं। छत टूट चुकी है। बरसात में पूरा घर पानी से भर जाता है। कहीं-कहीं घर की चारदीवारी भी ढह गई है। घर के अंदर स्थापित तिलक की मूर्ति भी खंडित हो चुकी है। जिस बोर्ड पर यह लिखा गया है कि यह तिलक की जन्मस्थ है, उस पर जंग लग चुका है। घर के अंदर सामान इस तरह बिखरा पड़ा है कि लगता है कि यह किसी महापुरुष की जन्मस्थली नहीं, बल्कि कबाड़खाना है। यहां आने वाले लोगों के लिए भी किसी तरह की सुविधा नहीं है। यहां तक कि पीने का पानी तक नहीं है।
यही हाल उनके निर्वाणस्थल का भी है। बता दें कि तिलक का निधन 1 अगस्त, 1920 को मुंबई के क्रौफर्ड मार्केट क्षेत्र स्थित ‘सरदारगृह’ नामक भवन में हुआ था। इस भवन की चौथी मंजिल पर दैनिक ‘केसरी’ का कार्यालय आज भी है। यहां आज भी लोकमान्य तिलक की पगड़ी और उत्तरीय संग्रहित हैं। इसके बावजूद इस भवन की देखरेख बिल्कुल नहीं की जा रही है। इस कारण पूरे इस भवन की स्थिति जर्जर है। विशेषज्ञ कई बार कह चुके हैं कि भवन की आयु पूरी हो चुकी है। इसकी मरम्मत जरूरी है। फिर भी राज्य सरकार ने इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया।
महाराष्ट्र भाजपा के उपाध्यक्ष राज पुरोहित कहते हैं, ‘‘लोकमान्य तिलक और कांग्रेस के विचारों में सदैव अंतर रहा है। यही कारण है कि महाराष्ट्र में वर्षों तक सरकार चलाने वाली कांग्रेस ने तिलक जी से जुड़े स्थलों पर कभी ध्यान नहीं दिया। इस कारण उनकी जन्म और निर्वाणस्थली, दोनों की स्थिति ठीक नहीं है।’’ उन्होंने राज्य सरकार से मांग की कि तिलक के निर्वाणस्थल को सरकार अपने अधीन लेकर उसके संरक्षण का काम करे। उल्लेखनीय है कि उनका निर्वाणस्थल एक निजी मकान है। उस पर अनेक लोगों ने कब्जा कर लिया है।
अतिक्रमणकारियों ने भवन को कानूनी उलझन में उलझा रखा है। इस कारण वहां किसी तरह का कार्य नहीं हो सकता है। इसलिए भाजपा और कई सामाजिक संगठन मांग कर रहे हैं कि राज्य सरकार उस भवन का अधिग्रहण करके उसका संरक्षण धरोहर के रूप में करे।
ऐसी ही मांग उनकी जनमस्थली के लिए भी हो रही है। पिछले दिनों ‘हिंदू जनजागृति समिति’ और कुछ अन्य संगठनों के एक प्रतिनिधिमंडल ने रत्नागिरी के उपायुक्त को एक ज्ञापन सौंपा। इसमें मांग की गई है कि बाल गंगाधर तिलक के पैतृक स्थल को बचाने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं। प्रतिनिधिमंडल में हिंदू जनजागृति समिति के संजय जोशी के साथ ‘शिवप्रतिष्ठान हिंदुस्तान’ के देवेंद्र झापड़ेकर, शरद चंद्र रानाडे आदि शामिल थे।
‘हिंदू जनजागृति समिति’ के राष्ट्रीय प्रवक्ता रमेश शिंदे कहते हैं, ‘‘लोकमान्य तिलक के जन्मस्थान को देखने के लिए पूरे देश से हजारों पर्यटक आते हैं। इसके साथ ही स्थानीय छात्र भी आते हैं। वे लोग जन्मस्थान से संबंधित साहित्य की मांग करते हैं, लेकिन उन्हें साहित्य नहीं मिल पाता है। उनकी इतनी उपेक्षा हो रही है कि जो भी उनके जन्मस्थान को देखने जाता है, शर्म से गड़ जाता है।’’
सच में महापुरुषों से जुड़े स्थलों की उपेक्षा शर्मसार करने वाली ही है। उम्मीद है कि महाराष्ट्र सरकार तिलक के जन्मस्थान और निर्वाणस्थल को बचाने के लिए अवश्य कुछ करेगी।
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