चीन के अफगानिस्तान में तालिबान लड़ाकों से गले मिलने पर जैसी आशंकाएं जताई जा रही थीं वे अब सच होती दिख रही हैं। चीन जानता है कि अफगानिस्तान में दोहन के लिए अकूत संसाधन हैं जिनका वह अपने यहां उपयोग कर सकता है। उन संसाधनों को चीन ले जाने में कहीं तालिबान अड़ंगे न लगाएं इसलिए ड्रैगन ने उन्हें सबसे पहले गले लगाकर 'सहायता' के लिए करोड़ों डालर की राशि का अनुदान दिया।
इतना ही नहीं, उसने पाकिस्तान के साथ सुर मिलाते हुए दूसरे देशों को अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता को समर्थन देने की अपील की। लेकिन असलियत यह है कि अन्य चीजों के अलावा चीन की कम्युनिस्ट सरकार की नजर वहां के संसाधनों पर भी है। इसलिए ताजा समाचार है कि उसका एक प्रतिनिधिमंडल काबुल में है और संसाधनों के दोहन के लिए मौका—मुआयना कर रहा है।
कम्युनिस्ट ड्रैगन ने दूसरे पड़ोसी देशों की ही तरह अफगानिस्तान में खनिजों तथा दूसरे संसाधनों का दोहन करने का खाका तैयार कर लिया है। अरबों डालर के नायाब खनिजों की खोज में चीन का एक प्रतिनिधिमंडल विशेष वीसा के तहत काबुल पहुंचा है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि वह अपने यहां चल रहीं लीथियम परियोजनाओं के लिए अफगानिस्तान से खनिज ले जाना चाहता है। उसी बाबत प्रतिनिधिमंडल वहां आसार खोज रहा ह
ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट बताती है कि इस वक्त चीन की पांच कंपनियों के प्रतिनिधि अफगानिस्तान में हैं। पता चला है कि चीन की करीब 20 सरकारी तथा निजी कंपनियां मुआयने के इस अभियान के अंतर्गत विभिन्न जगहों का दौरा कर रही हैं और खनिजों के दोहन के तरीके पता लगा रही हैं। विशेषज्ञों की मानें तो असल में चीन अफगानिस्तान के अकूत संसाधनों पर आंख गड़ाए हुए है। वह बिल्कुल नहीं चाहता कि ये संसाधन भारत को हासिल हो पाएं। |
चीन का सरकारी भोंपू कहे जाने वाले दैनिक समाचार पत्र ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट बताती है कि इस वक्त चीन की पांच कंपनियों के प्रतिनिधि अफगानिस्तान में हैं। पता चला है कि चीन की करीब 20 सरकारी तथा निजी कंपनियां मुआयने के इस अभियान के अंतर्गत विभिन्न जगहों का दौरा कर रही हैं और खनिजों के दोहन के तरीके पता लगा रही हैं।
चीनी कंपनियों के इस दल के निदेशक यू मिंगहुई के अनुसार, चीन चाहता है कि वह अफगानिस्तान की तालिबान सरकार का मुख्य साझीदार बनना चाहता है। जबकि विशेषज्ञों की मानें तो असल में चीन अफगानिस्तान के अकूत संसाधनों पर आंख गड़ाए हुए है। वह बिल्कुल नहीं चाहता कि ये संसाधन भारत को हासिल हो पाएं।
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