अफगानिस्तान में बंदूक के दम पर सत्ता कब्जाने वाले पाकिस्तान प्रायोजित तालिबान के दो धड़ों में बंटने की सुगबुगाहट अब सतह पर दिखाई देने लगी है। दरार की वजह है चीन में उइगर मुसलमानों का उत्पीड़न और यातना शिविरों में 20 लाख उइगर मुसलमानों के शारीरिक और मानसिक शोषण का नित होता खुलासा। मुसलमानों पर ऐसे ही 'अत्याचार' को लेकर शरिया के कट्टर इस्लामिक पैरोकार तालिबान में दो फाड़ होने की संभावनाएं साफ होती जा रही हैं। तालिबान का एक धड़ा चीन की गोद में बैठा दिखने को उतावला है
उसके फैंके डॉलर और हथियार लपकने को बेचैन है, तो दूसरा गुट चीन के सिंक्यांग प्रांत में उइगर स्वायत्तशासी क्षेत्र में उइगर और अन्य मुसलमानों के हो रहे दमन से बौखलाया हुआ है और चीन के विरुद्ध जिहाद करने की पैराकारी कर रहा है।
पता यह भी चला है कि तालिबान लड़ाके पिछले महीने चीन में कुरान एप पर रोक लगाने की खबरों से भी बौखलाए हुए हैं। इराक की एक वेबसाइट 'अल्माशरेकडाटकाम' के अनुसार, चीन विरोधी तालिबान धड़े के लड़ाके इस्लामिक स्टेट-खुरासान या आइएस-के में शामिल होते जा रहे हैं। उनका मकसद है मुसलमानों को चीन के दमन से आजाद कराना।
दुनिया इस बात से अनजान नहीं है कि चीन में प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता वाले सिंक्यांग प्रांत की लगभग 80 किलोमीटर की सीमारेखा अफगानिस्तान से सटकर गुजरती है। सिंक्यांग में उइगर मुस्लिमों की बहुलता है। उइगर समुदाय पिछले कई वर्षों से चीन दमन से आजाद होने के लिए संघर्षरत हैं। पूर्व में भी कई उइगर लड़ाके चीन पर हमला करने के लिए अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल करते रहे हैं। ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट अफगानिस्तान नामक गुट चीन के लिए सिरदर्द पैदा करता रहा है और उइगरों के उत्पीड़न के विरुद्ध चीन की सत्ता को चेतावनी देता आ रहा है।
गत जुलाई माह में अमेरिकी सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी के दौरान चीन इस बात को लेकर चिंतित था कि तालिबान का राज आया तो ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट अफगानिस्तान में अपना गढ़ बना लेगा, और उइगर उप्तीड़न के लिए चीन को सबक सिखाएगा। इसीलिए चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने तालिबान लड़ाकों की मिजाजपुर्सी करनी शुरू कर दी और दुनिया में उसे 'अफगानिस्तान के हमदर्द' बताने की चाल चली। इधर चीन से 'मदद' मिलने पर चीन की चिंताओं को दूर करते हुए तालिबान ने कहा कि वे चीन को 'अफगानिस्तान के एक मित्र' के नाते देखते हैं, वे चीन के उइगर मुस्लिमों अफगानिस्तान में आने की इजाजत नहीं देंगे।
तालिबान लड़ाके पिछले महीने चीन में कुरान एप पर रोक लगाने की खबरों से भी बौखलाए हुए हैं। इराक की एक वेबसाइट के अनुसार, चीन विरोधी तालिबान धड़े के लड़ाके इस्लामिक स्टेट-खुरासान या आइएस-के में शामिल होते जा रहे हैं। उनका मकसद है मुसलमानों को चीन के दमन से आजाद कराना। इस्लामिक स्टेट—खुरासन ने चीन को उइगरों पर अत्याचार का दोषी मानते हुए उसे सबक सिखाने की पैरवी की है।
जबकि दूसरी तरफ इस्लामिक स्टेट—खुरासन ने चीन को उइगरों पर अत्याचार का दोषी मानते हुए उसे सबक सिखाने की पैरवी की है। उसने चीन को चेतावनी दी है। तालिबान के 'मुस्लिम हित के पैराकार' तालिबान लड़ाके इसीलिए आइएस—के गुट की तरफ जा रहे हैं, जिसका मानना है कि चीन अफगानिस्तान से उइगरों को वापस चीन भेजने को लेकर तालिबान लड़ाकों की सरकार पर दबाव बना रहा है ताकि वह उन्हें वापस लेकर उन्हें 'उचित पाठ' पढ़ा सके। जानकारों का कहना है कि आइएस—के उइगर मुस्लिमों की आड़ में तालिबान और चीन पर निशाना साध रहा है।
टिप्पणियाँ