मार्गशीर्ष महीने का धार्मिक महत्व
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मार्गशीर्ष महीने का धार्मिक महत्व

by WEB DESK
Nov 20, 2021, 09:59 am IST
in भारत, धर्म-संस्कृति
भगवान विष्णु

भगवान विष्णु

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आज यानी 20 नवंबर से भगवान विष्णु का सबसे प्रिय महीना मार्गशीर्ष (अगहन) शुरू हो गया। मार्गशीर्ष का महीना हिन्दू धार्मिक पंचांग का नौवां महीना होता है। इसे अग्रहायण या अगहन का महीना भी कहा जाता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार मार्गशीर्ष का महीना अत्यंत पवित्र माह माना जाता है। इसी महीने से सतयुग का आरंभ माना जाता है। श्रीमद्भगवतगीता में योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- "मासानां मार्गशीर्षोऽयम्" अर्थात् सभी बारह महीनों में मार्गशीर्ष मैं स्वयं हूं   

अरुण द्विवेदी 

साल 2021 में मार्गशीर्ष (अगहन) का महीना 20 नवंबर से शुरू होकर 19 दिसंबर, 2021 तक रहेगा। अनेक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि कश्यप ऋषि ने मार्गशीर्ष के महीने में ही कश्मीर की रचना की थी। यह महीना भगवान श्री विष्णु जी का प्रिय व पवित्र महीना माना जाता है। अगहन मास में जप, तप और ध्यान करना शीघ्र फलदायी माना जाता है। भगवान श्रीकृष्ण की उपासना और पवित्र नदियों में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति एवं इच्छाएं पूरी होती हैं। संतान सुख की कामना पूरी होती है। चन्द्रमा की पूजा करने से अमृत तत्व की प्राप्ति भी होती है।
मार्गशीर्ष के महीने में तेल की मालिश बहुत उत्तम होती है। स्निग्ध चीज़ों का सेवन आरम्भ कर देना चाहिए। अगहन मास में जीरे का सेवन नहीं करना चाहिए। मोटे वस्त्रों का उपयोग आरम्भ कर देना चाहिए। नित्य श्रीकृष्ण की पूजा के बाद या पहले श्रीमदभगवत गीता का पाठ करना चाहिए। तुलसी के पत्तों का भोग लगाएं और उसे प्रसाद की तरह स्वयं भी ग्रहण करना चाहिए। पूरे मार्गशीर्ष महीने में इस मंत्र- "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" का 108 बार रोज जप करना चाहिए। इसके साथ ही 'ओम नमो नारायणाय' या 'गायत्री मंत्र' का जप करना चाहिए।
भगवान श्रीकृष्ण ने मार्गशीर्ष मास की महत्ता गोपियों को बताते हुए कहा था कि इस मास में यमुना के जल में स्नान करने से मैं सहज ही सभी को प्राप्त हो जाऊँगा। इसलिए श्रीकृष्ण के समय से इस मास में स्नान का खास महत्व है। इस मास में स्नान करने के लिए तुलसी के पौधे का विशेष महत्व है। जल में तुलसी के पौधे की मिट्टी, जड़ और उसके पत्ते मिलाकर स्नान करना चाहिए।
मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी को उपवास प्रारम्भ कर हर महीने की द्वादशी को उपवास करते हुए कार्तिक मास की द्वादशी तक इसका उपवास करना चाहिए। द्वादशी तिथि का उपवास करते हुए हर द्वादशी को श्रीहरी के केशव से लेकर दामोदर तक 12 नामों में से हर नाम की एक-एक मास तक आराधना करनी चाहिए।
मान्यता है कि मार्गशीर्ष माह में भगवान विष्णु की आराधना करने से उपासक को पूर्व जन्म की घटनाओं का स्मरण होने लगता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को चंद्रमा की पूजा करने का विधान है। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा को अमृत से सींचा जाता है। मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा के दिन गायों को नमक और परिवार की महिलाओं को सुंदर वस्त्र प्रदान किए जाते हैं। इसी दिन भगवान दत्तात्रेय जन्मोत्सव भी मनाया जाता है।
इसके अलावा इस महीने में शंख पूजन का विशेष महत्व है। साधारण शंख को श्रीकृष्ण के पांचजन्य शंख के समान समझकर उसकी पूजा करने से सभी मनोवांछित फल प्राप्त हो जाते हैं। अगहन मास में शंख की पूजा इस मंत्र से करनी चाहिए- 
त्वं पुरा सागरोत्पन्न विष्णुना विधृत: करे।
निर्मित: सर्वदेवैश्च पाञ्चजन्य नमोऽस्तु ते।
तव नादेन जीमूता वित्रसन्ति सुरासुरा:।
शशांकायुतदीप्ताभ पाञ्चजन्य नमोऽस्तु ते॥

(लेखक मासिक 'सनातन संदेश' पत्रिका के सम्पादक हैं)
 

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