मनोज ठाकुर
कथित आंदोलन के एक साल पूरा होने के उपलक्ष्य में दिल्लीं को घेरने के मुद्दे पर किसान नेताओं में फूट पड़ गई है। खुद को एक-दूसरे से बड़ा साबित करने के लिए कथित किसान नेता एक-दूसरे को फर्जी बता रहे हैं। गुरनाम सिंह चढूनी का आरोप है कि पंजाब के लोग आंदोलन को खराब कर रहे हैं। हरियाणा में नकली संयुक्ती किसान मोर्चा बनाया जा रहा है। इसी के साथ चढ़ूनी ने 25 नवंबर को दिल्ली कूच का अपना फैसला वापस ले लिया है। इससे एक बात तो साफ है कि किसान आंदोलन की आड़ में जो फर्जी किसान संगठन खडे़ किए गए थे, उनका सच अब सामने आने लगा हैं।
गुरनाम सिंह चढूनी ने एक वीडियो जारी किया है। इसमें उन्होंने पंजाब के लोगों पर खुल कर आरोप लगाया। यह भी कहा कि हरियाणा में भी फर्जी संयुक्त किसान मोर्चा खड़ा किया गया है। चढ़ूनी का कहना है कि सबसे पहले 25 नवंबर को उन्होंने किसानों के दिल्ली कूच का फैसला लिया था। लेकिन बाद में कुछ लोगों ने भी दिल्ली कूच का फैसला लिया। इसलिए वे अपना फैसला वापस ले रहे हैं। वहीं, जानकारों का कहना है कि कथित किसान नेता बेनकाब हो गए हैं। उनकी पोल खुल रही है। अब न तो किसान उनके बहकावे में आ रहे हैं और न उन्हें पहले जैसा समर्थन ही मिल रहा है। आलम यह है कि किसान इनके बार-बार बुलाने के बावजूद नहीं आ रहे हैं। इसलिए अलग-थलग पड़ चुके कथित किसान नेता अब फड़फड़ा रहे हैं। अपने मंसूबों पर पानी फिरता देख वे एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं।
इससे यह भी साबित हो रहा है कि यह कोई आंदोलन नहीं है। विदेश में बैठे खालिस्तान समर्थकों के चंदे और सत्ता की भूख के चलते किसानों को ढाल बना अपना स्वार्थ साधने की विपक्ष की कोशिश भर है। जो देश के किसानों का प्रतिनिधित्व करने का दावा कर रहे हैं, वे अपने गुट को ही संभाल नहीं पा रहे हैं। कथित आंदोलन अब उत्तहर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में बंट गया है। गुटों में बंटे नेता राजनीतिक धरातल तलाश रहे हैं। लेकिन इसमें भी उन्हें सफलता मिलती नहीं दिख रही है। इसके कारण भी वे आपा खो बैठे हैं। अर्थशास्त्र के पूर्व प्रोफेसर डॉ. संदीप शर्मा ने बताया कि इसे आंदोलन कहना गलत होगा। यह सत्ता के भुखे कुछ समाज विरोधी तत्वों का गुट है, जो लोगों को बहका कर अपना स्वार्थ साधना चाह रहा है। अब क्योंकि ये बेनकाब होने लगे हैं तो एक-दूसरे पर आरोप मढ़ रहे हैं।
गुरनाम सिंह चढूनी एंड कंपनी को डर है कि पंजाब गुट ज्यादा लोगों को अपने साथ न जोड़ ले। पंजाब में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, इसे देखते हुए चढ़ूनी को लगता है कि कहीं पंजाब का गुट कही वहां की सत्ता में अपना हिस्सा न बांट ले। इसी तरह, राकेश टिकैत और गुरनाम सिंह चढूनी एक-दूसरे को फूटी आंख भी देखना नहीं चाहते। चढ़ूनी को लगता है कि टिकैत हरियाणा की राजनीति में अपनी पैठ बना रहे हैं। प्रोफेसर संदीप शर्मा का कहना है कि चूंकि राकेश टिकैत जाट समुदाय से हैं, इसलिए चढ़ूनी को यह डर सता रहा है कि टिकैत कहीं प्रदेश में जाटों के नेता न बन जाएं। टिकैत ने सिरसा जिले के ऐलनाबाद विधानसभा में हुए उपचुनाव में ही अपनी राजनीतिक मंशा जाहिर कर दी थी। मतदान की पूर्व संध्या पर टिकैत ने सभा कर लोगों से इनेलो उम्मीदवार की मदद करने का आह्वान किया था। इसके तुरंत बाद चढ़ूनी ने इस चुनाव में विपक्षी उम्मीीदवार को मतदान करने की अपील की। इससे भी साबित होता है कि कथित किसान नेता एक-दूसरे पर भरोसा नहीं करते हैं।
अभी हाल ही में सिंघु बॉर्डर पर किसान संगठनों की बैठक हुई थी। इसमें चढ़ूनी के समर्थकों ने जमकर हंगामा किया था। टिकैत को बोलने तक नहीं दिया था। तभी तो राकेश टिकैत अब कहते फिर रहे हैं कि बैठक की बात बाहर नहीं आनी चाहिए। टिकैत को यह डर सता रहा है कि बैठकों में जिस तरह कथित किसान नेता अपना-अपना राग अलाप रहे हैं, यदि लोगों को इसका पता चल गया तो इनकी पोल खुल जाएगी। हरियाणा की राजनीति की समझ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार ओम कुमार खुराना बताते हैं कि गुरनाम सिंह चढ़ूनी कई बार राजनीति में सक्रिय होने की कोशिश कर चुके हैं, लेकिन हर बार मतदाताओं ने उन्हेंर खारिज किया। उत्तर प्रदेश बॉर्डर पर भी अब किसान नहीं हैं। इनके गुट के कुछ लोग वहां हैं। कथित किसान नेताओं को लग रहा था कि वह दिल्ली मे उपद्रव मचा कर खुद को नेता के तौर पर स्थापित कर लेंगे। लेकिन इनकी यह साजिश कामयाब नहीं हो पाई। अब इन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि क्या किया जाए।
हालांकि आंदोलनजीवी एक बार फिर से ट्रैक्टर आतंक फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके पीछे इनकी मंशा एक तो यह है कि लोगों को बहकाने व अफवाह फैलाने का मौका मिल जाए। दूसरा, विदेश में बैठे आतंकी संगठन और उनके साथ सहानुभूति रखने वाले विदेशियों का चंदा लगातार आता रहे, इसलिए इन्हें कुछ न कुछ करते रहना है। तीसरी मंशा यह है कि उत्तर प्रदेश और पंजाब में चुनाव में विपक्षी दलों से टिकट और मोटा चंदा वसूला जाए। यह तभी संभव है, जब कथित किसान नेता उनके इशारे पर विपक्षी दलों के लिए काम करते रहेंगे। प्रोफेसर संदीप शर्मा का कहना है कि एक बात और है, जो मोटा चंदा इन लोगों को मिला है, उसकी बंटरबांट हो गई। अब ये एक-दूसरे को इसका हिसाब नहीं दे रहे हैं। यह भी एक कारण है कि कथित किसान नेता एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। यह पहला मौका नहीं है, जब इनकी फूट सामने आई है। इससे पहले भी कई मौकों पर यह फूट सामने आई है। किसान भी इस बात को समझ रहे हैं कि उन्हें आंदोलन के नाम पर बहकाया जा रहा है। इसलिए वह वापस अपने अपने घरों की ओर लौट भी गए हैं। इसलिए यह कथित किसान आंदोलन धीरे-धीरे कमजोर हो रहा है।
कहना गलत नहीं होगा कि अब इनकी साजिश का पर्दाफाश हो गया है। किसानों के नाम पर समाज को बांटने का काम बहुत हो गया है। अब यह खुद ही समाप्त होने के कगार पर हैं। मरते हुए इस कथित आंदोलन को जिंदा रखने की कोशिश में ये लोग आरोप-प्रत्या रोप लगा कर खुद को सही साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। जो समाज को तोड़ने चले थे और अब खुद टुकड़ों में बंट गए हैं। इनकी इस कोशिश से किसानों का जो नुकसान हो गया, उसकी भरपाई में समय लगेगा।
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