तिरुपति बालाजी मंदिर में पूजा पद्धति को लेकर दाखिल याचिका पर मंगलवार को सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि संवैधानिक अदालतें पूजा की विधि में दखल नहीं दे सकती हैं। अदालत यह नहीं बता सकती कि मंदिर में अनुष्ठान कैसे किया जाना चाहिए, नारियल कैसे फोड़ा जाना चाहिए या किसी देवता को माला कैसे चढ़ाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि मांगी गई राहत के लिए पूजा अनुष्ठानों के दिन-प्रतिदिन के मामलों में हस्क्षेप की आवश्यकता है। ऐसे मामलों में संवैधानिक अदालतें दखल नहीं दे सकती हैं। अगर इसमें कोई कमी है तो हम उसे ठीक करने के लिए कह सकते हैं, लेकिन मंदिर में दिन-प्रतिदिन पूजा करने के तरीके में हस्तक्षेप नहीं कर सकते।
इसी के साथ पीठ ने शिकायतकर्ता से कहा कि यदि कोई प्रशासनिक कमी है तो मंदिर प्रशासन को ज्ञापन दें। साथ ही, प्रशासन 8 सप्ताह में उसका जवाब देने को कहा। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि पूजा पद्धति के मामले में याचिकाकर्ता सिविल अदालत जा सकता है। इस पीठ में न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हिमा कोहली भी शामिल थे। न्यायमूर्ति बोपन्ना ने कहा कि यह जनहित से जुड़ा मामला है। इसे एक रिट याचिका में तय नहीं किया जा सकता है। याचिकाकर्ता का तर्क था कि यह मौलिक अधिकार है। लेकिन न्याययमूर्ति हिमा कोहली ने कहा कि यह मौलिक अधिकार नहीं है।
बता दें कि भगवान वेंकटेश्वर स्वामी के एक भक्त सरवरी दद्दा ने तिरुपति बालाजी मंदिर में 'सेवाओं' और अनुष्ठानों के संचालन में अनियमितताओं का आरोप लगाया है। शीर्ष अदालत ने 29 सितंबर को तिरुमला तिरुपति देवस्थानम को एक हफ्ते में यह स्पष्ट करने को कहा था कि क्या तिरुपति बालाजी मंदिर में अनुष्ठान के दौरान कोई अनियमितता हुई थी? याचिकाकर्ता ने इससे पहले आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल की थी, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया था।
टिप्पणियाँ