देवगिरी प्रांत की समन्वय बैठक संभाजी नगर में 14 नवंबर को सम्पन्न हुई. इस दौरान बैठक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत प्रमुख रूप से उपस्थित थे। उन्होंने देवगिरी प्रांत के कार्यकर्ताओं से बातचीत की और संगठनात्मक विषयों सहित पर्यावरण, सामाजिक सद्भाव, गोसेवा और परिवार प्रबोधन पर मार्गदर्शन किया। उन्होंने कहा कि, “सुखवाद से दूर रहने के लिए संयम का संस्कार होना चाहिये। हमें संघ के विभिन्न संगठनों की सामूहिक सहभागिता के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए कड़ा परिश्रम करना होगा। ‘विकास’ और ‘पर्यावरण’ दोनों आवश्यक हैं, लेकिन ऐसे तंत्र ज्ञान लाने होंगे जिससे पर्यावरण को नुकसान न हो और जिसमें अक्षय ऊर्जा का अधिकतम उपयोग किया जाए। साथ ही, गो-आधारित ऊर्जा प्रणाली को विकसित करना होगा। श्री भागवत ने परिवार प्रबोधन पर कहा कि समाज में परिवार के सदस्यों के बीच अच्छे संवाद को बढ़ाया जाना चाहिए. भाषा, वस्त्र, भोजन, भजन, भवन, भ्रमण के माध्यम से परिवार में संस्कार होने चाहिए। समाज के सभी जाति—वर्ग के साथ हमारी मित्रता बढ़े और पारिवारिक आदान-प्रदान हो। हमारे विभिन्न संगठनों में विषयों के प्रशिक्षण पर विचार किया जाना चाहिए। इस मौके पर उन्होंने क्रांतिगुरु लहूजी वस्ताद साळवे के योगदान का स्मरण किया। बता दें कि क्रांतिगुरु लहूजी वस्ताद का जन्म पुरंदर किले की गोद के ‘पेठ’ गांव में एक मातंग परिवार में हुआ था। मातंग समुदाय में जन्मे लहूजी ने अपने परिवार के बहादुर लोगों से मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण प्राप्त किया। लहूजी साळवे के पिता राघोजी बहुत शक्तिशाली व्यक्ति थे और वे बाघों से लड़ने की अपनी क्षमता के लिए प्रसिद्ध थे। राघोजी साळवे ने एक बार एक बाघ से युद्ध किया और उस बाघ को अपने कंधे पर ले जाकर राज दरबार में भेंट किया और अपनी अपार शक्ति का प्रदर्शन किया।
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